सोमवार, 12 अगस्त 2013

[ राजकिशोर ] अतिशयोक्ति by - - -

* [ कविता ?]
हाँ मैं बीमार हूँ
लेकिन आपको बता दूँ
मैं आपकी जाति का नहीं हूँ
आप मेरी नाड़ी देखें या नहीं ,
हाँ मैं बीमार हूँ
लेकिन आपको बता दूँ
मैं आपके धर्म से सम्बंधित नहीं हूँ
आप मेरा सर दबाएँ या न दबाएँ ,
हाँ मैं निश्चित अस्वस्थ हूँ
लेकिन मैं आपको बता दूँ
मैं आपके सम्प्रदाय का नहीं हूँ
आप मेरे लिए दवा लायें या न लायें ,
हाँ मैं मरण शैया पर हूँ
लेकिन आपको बता दूँ
मैं आपकी पार्टी का नहीं हूँ
चाहे आप मुझे दफनायें या न दफनायें ,
अलबत्ता मैं आदमी हूँ
और फिलहाल बीमार हूँ |
#  #
* मजाक नहीं , मैं गंभीरता पूर्वक कह रहा हूँ कि विवाह का अधिकार आवश्यक होना चाहिए | भले वोट देने का अधिकार मिले न मिले | यौन तुष्टि व्यक्ति का सहज प्राकृतिक मौलिक अधिकार है | इसे सुनिश्चित करना सरकार का दायित्व है |

* उनके भी दिन बहुरें :-
जैसे आदिवासी जन नक्सल वादी बने हुए हैं , उसी प्रकार नक्सल वादी जन आदिवासी बनें !

* नास्तिकता के मामले में मैं गंभीरता से आस्तिक हूँ |

* सेक्सुअल आज़ादी के लिए शुरुआत यहाँ से कीजिये कि जो कोई आपका परिचित या परिवार का सदस्य इस मामले में उन्मुक्त हो, जिसे सामान्य भाषा में धोती (साड़ी ) का ढीला कहते हैं, उसे अपमानित न कीजिये, अपमान की दृष्टि से न देखिये, उसके सम्मान में कोई कमी न होने दीजिये | और यदि  कोई दूसरा उसके साथ ऐसा व्यवहार करे तो उसे रोकिये | इस आज़ादी को स्वयं अपने उपभोग भर के लिए मत रखिये |    

* चिंतन के क्षेत्र में जब मेरा चित्त उतरा [ लगभग 1964-66, 18 - 20 की आयु में ] तब मैंने सबसे पहले यह विचार बनाया कि आदमी की कोई नीति तो होनी चाहिए | नीतिविहीन आदमी भी भला क्या ? भले वह नीति वह किसी दुसरे से ले, अपना स्वयं कोई न बनाये तो |
अब इतने वर्षों बाद [ 66 - 67 की आयु तक ] तनिक मेरी योग्यता और उपलब्धि तो देख लीजिये [ बिलकुल शून्य अंक न दे दीजियेगा, थोडा कृपांक बनाये रखियेगा ] कि अपने एक सहकर्मी मित्र के साथ दैनिक जीवन संबंधी एक वैचारिक - व्यावहारिक विवाद उठा था - उनका कहना था कि कपडे सस्ते किन्तु कई होने चाहिए | जब कि मेरा विचार था कि कपड़े कम हों किंतु अच्छे हों, उन्हें जल्दी जल्दी धुल कर बिना इस्तरी कराये पहन सकते हैं | स्वीकार करता हूँ कि इस प्रश्न का अंतिम निर्णय मैं आज तक नहीं दे पाया | कहता हूँ मैं महान विचारक हूँ |

 [कविता ]

* मैं उसके
बालों के लिए फूल
तोड़कर लाता हूँ ,
वह उसे
बाज़ार में बेच आती है |
#   #

* अहा गरीब !
तुम न होते
तो हम
दानी कैसे होते ?
#   #
* जवानी ?
जी हाँ , जिसके
आगे है अभी -
जीवन आनी |
#   #
* झूठ ही है
राजनीति का आधार
सच मानिए !
#   #
* क्या उम्र का असर ?
चीज़ें सामने रखी होती हैं
उन्हें ढूंढता रहता हूँ ,
तुम भी क्या चीज़, जानेमन !                                                                                    #   #              

* जब से ही 
शुरू किया ,
शुरू हुई 
ज़िन्दगी |

# #

* देख तो लो ही
देखने की चीज़ है
खरीदो नहीं |

* किसी से भी तो
मैं सहमत नहीं
क्या बने संस्था ?

* मैं किसी भी काम का नहीं ,
बिना काम कोई महब्बत क्या करे ?

* चलिए मान लेते हैं कि ईश्वर एक हकीकत है | लेकिन हमारी भी थोड़ी सी तो मान ही लीजिये कि ईश्वर , देवी -देवताओं के चित्र तो काल्पनिक हैं ! देखा तो किसी ने नहीं न ?

* ठीक है, खूब उछालिये, और ऊपर तेजी से उछालिये मंदिर का मुद्दा ! जिससे आपके सारे वोट आपकी झोली से बाहर जा गिरें !

* मुस्लिमो, कुछ सन्देश सुनो, सबक लो और तैयार रहो | दुर्गा शक्ति नागपाल का निलंबन इसलिए किया गया है क्योंकि उनकी कार्यवाही से साम्पदायिक सौहार्द्र बिगड सकता था | शायद मतलब यह कि माहौल बिगड़ा इसलिए नहीं क्योंकि फ़ौरन निलंबन हो गया | निलंबन न होता तो स्थिति बिगड़ ही जानी चाहिए थी | सपा का निहितार्थ यह कि अब आप को तैयार इस बात के लिए रहना है कि कहीं ऐसा न हो कि अधिकारी का निलंबन न हो और आप साम्प्रदायिक  तनाव बनाने से भी चूक जाएँ | अपने प्रिय राजनीतिक दल की लाज तो रखनी है आपको , जिसने आप के लिए इतनी तत्परता दिखाई !

* सी एम ने दी इफ्तार पार्टी ( समाचार ) ५ / ८ /१३
- क्या यह भी सेक्युलर राज्य कि संवैधानिक ज़िम्मेदारियों में शामिल है जिसे यू पी सी एम ने निभाया ? है तो उन्हें भी ईद कि मुबारकबाद |
* - U P को IAS अधिकारियों कि कोई ज़रुरत नहीं है ( स्पा सरकार दुर्गा शक्ति नागपाल के सन्दर्भ में केंद्र सर्कार से )
इस पर [ भले हमारी नापसंद भाजपा के ] मुख़्तार ने एक साहित्यिक बौद्धिक टिप्पणी की है कि ऐसा विकल्प हो तो यू पी कि जनता भी निश्चित रूप से कह सकती है कि [सपा ] सरकार के बगैर भी प्रदेश का काम काज चल सकता है |
लेकिन वैसे सरकार को इसे इस तरह से कहना चाहिए था कि हमारे पास शिक्षित यादव जनशक्ति कि कोई कमी नहीं है और उन सबको केवल राजनेति में खपाया नहीं जा सकता | उनका हम एक यादव प्रशासक अकादमी बनायेंगे और उनसे यूपी का तो काम चलाएंगे ही, केंद्र सरकार को भी निर्यात करेंगे | केंद्र नहीं मानेगा तो खाद्य सुरक्षा बिल को हम समर्थन नहीं देंगे |

* निश्चय ही मैं हिन्दू इसलिए तो हूँ क्योंकि मैं इसमें पैदा हुआ , लेकिन अब नास्तिक होने के बाद केवल इसलिए हिन्दू नहीं हूँ कि मैं हिंदुत्व में अपनी नास्तिकता बरक़रार रख सकता हूँ , और भाई बंधु  दोस्त अहबाब, परिवार को नास्तिक बना सकता हूँ | बल्कि मेरे हिन्दू, भले नामशः , होने के पीछे एक गंभीर कारण है | वह यह कि मैं केवल हिन्दू से खुलकर संवाद कर सकता हूँ | और संवाद तो बहुत आवश्यक वस्तु है जिंदगी के लिए | भले हिन्दू युवक कुछ धमकियां देते हैं पर उनसे मूलतः  कोई भय नहीं लगता , जब कि ( नाम लेकर कहूँ मुस्लिम मित्रों कम से कम धर्म और ईश्वर विषयक मुद्दों पर ) बात करने में डर तो नहीं कहूँगा, लेकिन एक अनजाना सा संकोच तो होता ही है | इसलिए शिष्टतावश सिर्फ हाँ हूँ से काम चलाना पड़ता है जिससे बौद्धिक असंतोष उपजता है अपने मन में |

* राष्ट्रपति शकर दयाल शर्मा ने मुलायम सिंह यादव को ४ दिसंबर १९९२ को ही बता दिया था कि बाबरी मस्जिद गिरेगी | मुस्लिम हितैषी नेता जी तब दो दिन तक क्या करते रहे, हाथ पर हाथ धरे ? वे  क्या कर सके जो ६ दिसंबर को मस्जिद गिरा दी गयी और वह उसे बचा नहीं पाए ? दो दिन पर्याप्त थे अपने यूथ ब्रिगेड से मस्जिद को घेर कर सुरक्षित करने के लिए | फँस गए मुलायम सिंह यह बताकर, खुलासा कर, उदघाटन कर कि उन्हें मस्जिद के मिसमार होने की बात पता थी | अब उनका अपराध और गंभीर हो गया और वे भी लगभग कारसेवकों की श्रेणी में आ गए | अब वह मुसलमानों के कल्याणी बनने का दावा ना ही करें तो अच्छा है | किसी को विश्वास नहीं आएगा | ज्यादा परेशान न हों, न कोई ग़लतफ़हमी पालें | बावजूद इसके कि मस्जिद की कथित दीवार गिरवाने का आरोप लगाकर उन्होंने आई ए एस अधिकारी को निलंबित करवा दिया है |

* कभी लिखा था कि मुसलामानों के (वोटों के) डर से इनकी रूह काँप रही है , और चले हैं सेक्युलर बनने ! अब थोडा बात बदल लें – “चले हैं शासन करने ” !
* मुलायम सिंह सेक्युलर नहीं सांप्रदायिक राजनीति कर रहे हैं | इससे देश कमज़ोर होता है | आश्चर्य नहीं जो अम्बी ने लिखा कि सपा समाप्त होने वाली है !

* आज पृथक ने बहुत अच्छा पोस्ट लिखा - साहित्यिक राजनीतिक | मन खुश हो गया :-
गरीब मुल्क में दो लाख करोड़ का सालाना बजट प्राप्त करने वाली दस लाख सैनिको वाली भारतीय सेना क्या शहीदो के सम्मान में बिगुल बजाने के लिए है?
७/८/१३ 

* लखनऊ से भी सद्यः प्रकाशित NBT में हमारा निम्नवत विज्ञापन दि . ८ , ९ , ११ , और १३ अगस्त के अंकों में प्रकाश्य :-
   " नास्तिकता  अपनाएँ |  इससे आत्मविश्वास बढ़ता है | - उग्रनाथ 'नागरिक ' एवं मित्रगण | 9415160913 | priyasampadak@gmail.com
"अगली बार इसे अपने नाम से नहीं किसी संस्था समूह, जैसे " नास्तिक हिन्दुस्तानी दल " / " नास्तिकता प्रचारक दल " के नाम से प्रकाशित कराना अभिचिन्तित |

* आपने अभी मुझे देखा है | मेरे मित्रो को देखिएगा, उनसे मिलिएगा तो दाँतों तले उँगली दबा लेंगे आप ! इतने निःस्वार्थ इतने नैतिक कि क्या कहना ! मैं उनके पीछे हो लेता हूँ , दिल से | लेकिन आप उन्हें पहचानेंगे कैसे ? वे दिखने में बहुत छोटे लोग हैं |

" नास्तिकता अपनाइए " वाले आज के NBT में हमारे पहले दिन के विज्ञापन पर आज तीन फोन आये | एक भाई ने घर बुलाया है, दूसरे  ने प्रथम वाक्य में ही पूछा - मेरे लिए क्या आदेश है ? कब मिलने आऊँ ? तीसरे के बारे में कहने में कोई हर्ज़ नहीं है कि जिनसे कम उम्मीद की जाती है , शादाब भाई ने कहा हम साइंटिफिक सोच के लोग संख्या में अत्यल्प हैं | इनकी बातों से बड़ा आनंद आया, उत्साहवर्द्धन हुआ, प्रोत्साहन मिला | विशवास उपजा किसी भी काम में अनवरत लगे रहो तो कुछ सफलता मिल ही जाती है | मिलने , मिलते रहने की योजना बनी |  

* मुबारकबाद के मामले में हम नास्तिक सेक्युलर जन ज़रूर कुछ पशोपेश में होते हैं | मैं एक तरीका सोच रहा हूँ , आप भी सोचये | शुरू यूँ करें - जैसे हम लोग जन्म और नाम से हिन्दू होते ही हैं , लेकिन क्या होली दीवाली हम लोग उसी तरह दिल से मानते हैं ? शुभकामना मिलने पर क्या उसी तरह उछलते हैं ? नहीं, बिल्कुल नहीं | बस एक औपचारिकता निभाते हैं |स  उसी प्रकार ईद की शुभकामना प्राप्त करने के उचित पात्र होने के लिए उनका "मुसलमान " होना ज़रूरी है | केवल पैदा होना या नाम से मुस्लिम लगना पर्याप्त नहीं है | तो शिष्ट संस्कृति के तहत हम मुस्लिम मित्रों को तो मुबारकबाद कह सकते हैं , लेकिन जिन मुस्लिम मित्रो को हम जानते हैं कि वे मुस्लिम नहीं हैं , उनके साथ यह नाटक करना मुझे गैरज़रूरी लगता है | उम्मीद करता हूँ जो मुस्लिम दोस्त हमें नास्तिक जानते हैं वे भी हमें हिन्दू त्योहारों कि शुभकामना न दें | मैं तो बस यह करता हूँ कि अपनी और से किसी की तरफ कोई पहल नहीं करता | कोई बोलता है तो उसे " धन्यवाद / शुक्रिया | आपको भी " कह कर एक रिवाज़ का पालन करता हूँ |
{ ' मुँह ' से शुभ शुभ बोल देने में क्या बुराई है , यदि इससे आपका शुभ होता हो ? इसलिए आपको भी ईद मुबारक ! और हाँ, शुभ बोल देने से होली दीवाली , क्रिसमस भी शुभ हो जाते हैं मित्र ! इनके आधार कुछ भी हों | निराधार होते हैं सरे त्यौहार , बस खान पान, गुझिया सिवैयां, छुट्टियां और मौज - मस्ती पर आधारित | (To Neel )}

* आज अख़बारों से सूचना मिली | मेरे प्रिय एक गीतकार शिव बहादुर सिंह भदौरिया [ रायबरेली ]का  मंगलवार को निधन हो गया | उनका एक प्यारा गीत यूँ है कि -
" मैं राह बदलने वाला था ,
बस इतने में
ध्रुव तारा दिखा गया कोई | "
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इस पंक्ति ने मेरे ह्रदय को इतना छुआ कि मैंने भी इस गीत पर अपना भाव चस्पा किया |
और गाया - " मैं जग में रमने वाला था
बस इतने में
मृगछाला बिछा गया कोई |"
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इन्ही पंक्तियों के साथ उस शीर्ष गीतकार कवि को मेरी हार्दिक श्रद्धांजलि |
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कब से तो कहावत के रूप में कहा जाता है और प्रचलित भाषा है कि - वह ऐसा पानी पीता है कि खुदा भी नहीं जान सकता | लेकिन इसमें अब रामपुर के अति धर्मिष्ठ मौलानाओं को इस्लाम का अपमान दिखने लगा है | तभी तो ऐसा ही कुछ अपने फेसबुक पर लिखने के कारण वे लेखक कँवल भारती को कड़ी सजा दिलाने की मांग कार रहे हैं | अभी तक उनके ऊपर हलकी धाराएँ लगायी गयी थीं |

त्योहारों से ही धर्मों का मन बढ़ता है , चाहे वह कि भी धर्म हो | त्यौहार उसकी ताक़त हैं | इससे उन्हें बल ख्याति और प्रचार प्रसार बल्कि राजनीतिक शक्ति भी प्राप्त होती है | इसलिए शुभ करना है तो हर दिन कीजिये | शुभ कामना के साथ होली दीवाली , दशहरा , ईद बकरीद रमजान मुहर्रम न जोड़िए |

* कुछ लोग वह वाले सेक्युलर हैं जिनसे ' हिन्दू ' चिढ़ते हैं , लेकिन 'मुसलमान' मोहब्बत करते हैं | वे उन्हें अपना मित्र / हितैषी मानते हैं | हम वैसे हैं जिनसे ' हिन्दू ' भी कुछ गैर - गैर रहते हैं और ' मुसलमान ' तो खैर दूर ही रहते हैं | हाँ जो केवल आदमी और इंसान हैं वे हमारी बात की सच्चाई समझते हैं और हमसे स्नेह रखते हैं , हमारा समर्थन करते हैं |
{ हम ईद की सिवैन्यान , होली का गुझिया खाने कि तत्परता प्रदर्शित करके भाई चारा का नाटक नहीं करते |}

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