रविवार, 28 अप्रैल 2013

Nagrik Blog 29 / 4 / 2013


* क्यों भला लूँ मैं तुम्हारा नाम ?
कोई अपने पूज्य का 
नाम लेता है कहीं ?
# #

* धर्म के रक्षक बहुत हैं ,
प्राण के भक्षक बहुत हैं |

* भय बिनु होय न प्रीत "
जब मुझे प्रीत करानी हो तब न भय दिखलाऊँ ! नहीं कराना मुझे उनसे अपनी प्रीत | वह रहें निर्भय |

I FANCIED FOR YOU . AND YOU, FOR FANCY CLOTHES .
मैंने तुम्हे चाहा, और तुमने फैंसी कपड़े |

सू सू की सीटी बजाकर बच्चों के पेशाब उतारने की कला भला माँओं ने किस विधि से सीखा 

Is it not a shame on us that many of our fellow brethren and sisters are very poor , and we some are enjoying a lavish life ? Some of our children are unfed, un-clothed  and some have all the facilities of education , plays and entertainment ?
[ Secular Gods' Union ]

* लगता है हम लोग कुछ ज्यादा ही तिल का ताड़ बना लेते हैं | जैसे यही कि हिन्दू गाय को माता मानते हैं | अरे हिन्दू तो अपनी माता को ही माता नहीं मानते, गाय को क्या मानेंगे | लेकिन है एक मान्यता, कथन या कहावत | और माने तो अच्छा ही है | इस पर इतनी हुज्ज़त की क्या ज़रूरत ? 
देखा ? यही तो हमने कहा था | हम लोग कुछ बातों को अनावश्यक तूल देते हैं | वही हो रहा है आपके वाल पर | इसमें कोई दम, कोई सार तत्व नहीं है, सिवा बिलावजह की कटुता बढ़ाने के | फिजूल की बहस | फिर भी जिसके पास समय और शौक है, करते ही हैं |    [ Prachand Nag ]

* तोहरे घरे निकार के बैठेन | 
बूझो काव है ? [ जूता ] 
तोहरे घरे खडियाय के बैठेन |
बूझो काव है ? [लाठी ]
और भी कुछ हैं, याद नहीं आ रहा है |
Wish U a विस्थापन ?  
[ Samar Anary]

* संस्कृति के बारे में ज्यादा सोचा विचारी मत कीजिये | सिनेमा और टी वी जैसे जैसे बताते जायँ, करते जाइये | वही संस्कृति है |

* कोर्ट ने तो अभी कुछ कहा ही नहीं , आपने तो पहले ही उन्हें "निर्दोष" करार दिया !

* Rajneeti Hauva nahi hai .
 राजनीति की नहीं जाती | सही बात है कि उसके करने वाले और होते हैं पूर्णकालिक, 'राज्य' के मामले देखने वाले | साधारण मनुष्य / नागरिक को राजनीति करनी नहीं होती | उससे हो जाती है, होनी ही होती है | क्योंकि जीवन का कोई भी अंग उससे अछूता  नहीं | घर से निकले तो सड़क बाज़ार दफ्तर , सब राजनीति है |  घर परिवार में भी राजनीति है | राजनीति जीवन की एक कला एक व्यावहारिक कौशल भी है | आपने हमसे कैसे बात की ? कैसे अपने रूठे बच्चे को मनाया ? पत्नी को समझाया , माता पिता को प्रसन्न किया , पड़ोसी ,मित्रों -अफसर -मातहतों से निपटे ? सबमे राजनीतिक बुद्धि चाहिए | इसी को थोडा आगे बढ़ा कर सोचा , समाज और राज्य पर गौर किया तो वह राजनीति हो जायगी जिसके बारे में यह पोस्ट है | न भी करें तो अपने आस पास आपके खिलाफ जो खेल चल रहे हैं उसे तो समझें , अन्यथा धोखे खायेंगे, नुक्सान उठाएंगे |   

* नग्न होना शर्म की बात नहीं है बिल्कुल | जिस बात पर शर्म आनी थी उस पर तो किसी ने सोचा ही नहीं | वह यह कि ऐसी स्थिति - परिस्थिति क्यों बनी ? मुसलमानों को सोचना था कि किस तरह उन्होंने अपने लिए पूरी दुनिया में यह संदेहास्पद स्थिति बना ली कि उनके समुदाय का उच्च पदस्थ ख्यातिप्राप्त व्यक्ति भी बिना गहन जाँच के किसी देश के भीतर नहीं जा पाता ?     

* हिन्दू कहाँ कटाते थे पहले चुटिया ? अब कितने लोग रखते हैं चुरकी ? ऐसे ही बाकी भी कुछ बदलेगा , कुछ कटे पिटेगा ,मिटेगा | 


* मैं अभी अभी ही सोच रहा था कि आप का पोस्ट आ गया | कुछ और सीधी सच्ची बात कह दो तो वह भड़क जाएगा | प्रेम, प्यार, दोस्त वगैरह कह दो तो वह बड़े आराम से झाँसे में आ जायगा , जाल में फँस जायगा | फिर तो वही होना है जो होता है | [ Atul Singh]

वदामि सत्यं 
- - - - - - - - 
सच कहूँ तो 
नहीं लगता मेरा    
यद्किंचित भी    
मन पूजा पाठ में
किसी अनुष्ठान में |

* कूड़ा कबाड़ 
मेरा पढ़ते हैं आप 
आप धन्य हैं ,
आभारी हूँ आपका 
मुझे स्नेह देते हैं |

* बहुत अच्छी 
स्मृति नहीं जिसकी  
वह मज़े में |

* लोग सिद्धांत 
बघारते ज्यादा हैं 
पालते कम |

* उन्हें न देखो 
अपनी राह चलो 
वही सही है |

* मेरे तो लेखे 
वही राम नाम है 
जो मेरा काम |

* हमारी दृष्टि 
कुछ गलत तो है 
नारी के प्रति |

* छिपते रहो 
मैं तुम्हे ढूँढ लूँगा 
सात पर्दों में |

* उदास होता 
कुछ खो जाने पर 
पाने पर भी 
उदासी छा जाती है 
ऐसा क्यों होता भला ?

* सोच रहे थे  
कहाँ जाएँ धूप में
सूर्य ने कहा 
आओ मेरी छाँव में  
मैं चला गया |

* वोट देना भी 
एक राजनीति है  
करनी होगी |
* राजनीति है
एक वोट देना भी
करनी ही है | 

* बड़ाई करो 
मार्क्सवाद की,बड़े 
बन जाओगे |

* सच कहता हूँ 
मैं बहुत दुखी हूँ 
किससे बोलूं ?

* हैं न हमारे 
बगल में छुरियाँ
मन में राम !

* प्यार करूँ हूँ 
कितनी बार कहूँ ?
कहता रहूँ ?

* हरी बत्ती है 
देखकर चलो 
तिस पर भी |

* नहीं लिखता  
मैं हाइकु या तांका
ज़िन्दगी जीता,
मैं ज़िन्दगी लिखता 
ज़िन्दगी जीते हुए |

लघु मानव 
छोटी सी है ज़िन्दगी 
छोटे हाइकु |

* कोई खिचड़ी
मचानों पर टँगी
पक रही है |   

* यही क्या कम 
अब भी याद उन्हें  
है मेरा नाम 
जानते हैं अब भी   
मुझे पहचानते |

* मुक्ति का रास्ता 
बंधनों से पूछिए 
यही बतायें  
कहाँ से बँधी हैं ये
कहाँ से खुलेंगी ये ?

* बात रहेगी 
तो चीत भी होगी ही 
इसे बचाओ | 

* अभी आपने 
धर्म देखे कहाँ हैं 
लहूलुहान ?

* अब तो भाई 
मेरा काम हो गया 
मैं चलता हूँ |

* देख आईना
तू ही मेरी दुर्दशा 
उनके बिना |

* हाइकु मैंने 
अनगिनत डाले हैं 
इस ब्लॉग में 
कापीराइट मुक्त 
समस्त रचनाएँ |
 
* मैं उग्रनाथ नागरिक, महापुरुष 
एक आदमी 
ठिकाना ढूँढता हूँ  
अपनी पसंद का 
ठीहा बदलना चाहता हूँ 
नहीं रहना चाहता यहाँ 
अगरु के धुओं में दम घुटता है |
नया " घर करना " चाहता हूँ 
जहाँ ईश्वर न हो 
आदमी हो, औरत हो,
जानवर भी स्वीकार 
पर पंडा पुजारिन नहीं   
न देवी देवता 
मैं ढूँढता |
[ 09415160913]

गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

Nagrik Blog 25/4/2013


* Work is worship 
Alright !
But ,
Worship is not ' work' .

* मानववादी या मानवतावादी  =
* हमारी संख्या बहुत है | हमारे मानववादी घुसपैठिये विश्व के हर कोने में, संसार के सभी धर्मों में व्याप्त हैं जो इंसानियत को सर्वोपरि मानते हैं और कर्मकांड, पाखण्ड में कम विश्वास करते हैं | अलबत्ता वे कहते अपने को ज़रूर हिन्दू - मुसलमान वगैरह हैं |

* ज्ञानी होने का अहंकार या ज्ञानी बनने / दिखने / कहलाये जाने की लालसा ही व्यक्ति को विवादप्रिय बनती है | वरना ज्ञानी जन तो अधिकाँश चुप रहते हैं |

* लडकियाँ इतना तो अपने पहनावे पर ध्यान देती हैं, वेशभूषा को लेकर सतर्क रहती हैं | फिर भी कुछ पुराने ख्याल के लोग कहते हैं कि वे कम कपडे पहनती हैं !   

* अक्ल बड़ी या भैंस ?
- बड़ी नहीं , बहुत बड़ी होती है भैंस |

* आइये हम लोग भी अपने लिए एक एक वाद चुन लें और उसके वादी बन जाँय | कुछ वादों की सूची इमाग से निकाल रहा हूँ , आप को जो अपने लिए पसंद आये ले लें | अपवाद , आशीर्वाद , अनेक्वाद . अनुवाद , गुणानुवाद , संवाद , परिवाद , अनापवाद, धन्यवाद ,  

* हम करें तो क्या करें ? मार्क्सवाद के अलावा और कोई बौद्धिक वाद भी तो नहीं दिखाई पड़ रहा है जिसकी कोई नीति हो ? और जो हैं भी वे राजनीति में नहीं हैं | 


*अन्यथा न लेंगे कामेश्वर जी ! आपके बहाने अपना भी याद करना सुखद लगा, कि 1966 से 2004 तक 38 वर्ष की सेवा अकलंक बिता ले गया, वह भी जूनियर एवं सहायक इंजीनियर जैसे खतरनाक पदों पर | फिर ज़रुरत न रहने पर समय से पहले त्यागपत्र दे दिया |   

* न्यायाधीश बनते बहुत हैं अपने आप को, लेकिन उनके यहाँ बहुत खोट है |
[ बनते की जगह " लगाते " भी अच्छा हो सकता था ]

 Till there are nations , nationalism can not be done away, however soft or broadminded it be . The quote shows humanism and intelligence, but beyond practice . Hence obsolete .
Rather, Internationalism - Marxism,Islamism,globalization etc are developing diseases. 

* पोर्नो इतनी दिखेंगी की वे बेमतलब हो जायेंगी | 

* कोई आदमी जब विशिष्ट बन जाता है, मेरी नज़रों से गिर जाता है | मैं उससे कटा - कटा रहने लगता हूँ | [ इसे मेरा दोष माना जाय ]   
Shriniwas Rai Shankar दोष और द्वेष दोनों माना जायेगा सर |
- इच्छा तो थी इन्कार करने की, लेकिन सोचता हूँ ऐसी बात नहीं कहनी चाहिए जिस पर सामान्यतः कोई विश्वास न करे | फिर यह भी तो हो सकता है कि आप की ही बात सूक्ष्मतः सत्य हो ! आभारी हूँ आपका |  
- मेरी कामना है सब सामान्य हों, सामान्य तरीके से रहें, उनके साथ सामान्य व्यवहार हो |
मैंने अपने Visiting Card पर दो वाक्य छपवायें हैं - 1 - Always in love , always at war , 2 - विशिष्टता के खिलाफ मेरी विशेष लडाई है | 

* अभी अनायास मार्गरेट थैचर जी की याद आ गयी | कुछ ही दिन पूर्व वह दिवंगत हुईं | उन्हें ब्रिटेन का आयरन लेडी कहा जाता है | पलट हमारे मनमोहन जी की दशा देख लीजिये, उन्हें क्या कहा जाता है ? अब मेरी बात यह है की ये दोनों ही डिमोक्रेसी की वेस्ट मिनिस्टर प्रणाली के मुखिया थे या रहे हैं | फिर दोनों में इतना अंतर क्यों ? कि जिसके चलते भारत में राष्ट्रपति प्रणाली का सुझाव दिया जा रहा है | जब कि यह इंग्लैण्ड में भली भाँति चल रहा है ?    

* अपनी अपनी चिंता -
मैं दो चिंताओं की आग में जलता रहता हूँ | एक तो महिलाओं के बारे में है, जिसे तो मैं बताने से रहा |  दूसरी यह कि संदीप, अंशुमान और कुछ अन्य उन जैसे टी टोटलर साथी कैसे चौबीस के चौबीस घंटे बिना एक भी सिगरेट पिए जीवित रह लेते हैं ?    


* मैं त्रुटिमुक्त नहीं हूँ | मैं गलतियाँ करता हूँ और गलती को गलती मान भी लेता हूँ | उसे हर हाल में सही साबित करने का जिद नहीं करता |

* Sorry भाई, आप तो दलित हो गए . I am not so privileged .

* [ संस्था ]  ? ?
तमाशा ( TAMASHA)
तार्किक मानववादी Secular - Humanist - Atheist

* उग्रनाथ नागरिक 
" मानवमात्र " 
L - V - L / Aliganj , Lucknow - 226024 { U . P .}  
or " पूर्ण निरपेक्ष "
L - V - L / Aliganj , Lucknow - 226024 { U . P .}

* उग्रनाथ 
नागरिक धर्म , अलीगंज , 
लखनऊ , 226024 [उ.प्र.]

* गलत जगह पर सही बात कहना भी गलत बात कहना है |

* जाने का मन न हो तो जाने की तैयारी में कुछ न कुछ छूट ही जाता है |

* मोलभाव नहीं कर पाता तो बाद में कचोटता है - हाय , इतना बोला होता तो भी शायद दे देता !

* घाव को यूँ खुला तो छोडो मत ,
मक्खियाँ भिनभिना रही हैं बहुत |

* जो मन में कुछ खटास भरे वह अधर्म है ,
जो मन को कुछ उदास करे वह अधर्म है |


[ कविता ]
* तथ्य तमाम हैं 
कुछ कथ्य हैं 
और कुछ -
न कहने लायक ,
न सुनने लायक |
# #

* हम दोनों 
दो समानांतर रेखाएं है 
मिल नहीं सकते तो क्या 
प्यार के देश की तो 
संरक्षित सीमायें है ?
थोडा मैं दूर हटा 
थोडा सा तुम भी परे 
फिर , बढ़ ही तो गया 
क्षेत्रफल , हमारे प्यार का ?
# # 

* सिंहासन खाली करो क्या ?
सिंहासन तो खाली है 
बस कोई सुपात्र हो 
तो बैठ जाये 
जनता तो चाहती है 
उसके मन के सिंहासन पर 
कोई विराजमान हो ,
वह तो खाली है 
कोई बैठने वाला तो हो ! 
# #

# Ramji Tiwari =
प्रस्तुत है सिताब दियारा ब्लॉग पर युवा कवि नवनीत की कविता

* एक दिन घृणा
प्रेम किये जाने की तरह
आसान हो जाय,
और बुराईयो को याद करना
किसी को याद करने
जैसा सुखद,

एक दिन
युद्ध से भागने की मजबूरी
कायरता नही,
साहसी होने की शुरूआत कही जाय
और तटस्थता सबसे बङा अपराध

एक दिन
धर्मनिरपेक्षता अपने चेहरे से
मुखौटे को हटाये
और दुनियाँ के सारे कट्टरपंथी शब्द
एक नये शब्द के स्वागत मे
खङे होकर तालियाँ बजाये

मुमकिन हो एक दिन |
_________________

[ कविता ]
* सच कहता हूँ 
गहरे मन की बात 
मैं प्रेम करना 
नहीं सीखना चाहता 
मैं घृणा प्रदर्शित 
करना चाहता हूँ ,
मैं मंदिर - मस्जिद 
जाने वालों से 
घृणा करना चाहता हूँ |
# # #   

* अपना होना 
सिद्ध करना होगा 
जीने वालों को |

* समस्याओं के 
मूल में तो है पैसा
समाधान भी |

* कोई भी सार
तत्त्व जग में नहीं
प्रेम (नेह) सरीखा |

* थोडा तो पास
रहूँगा मैं आपके
थोडा दूर भी |

* कूदो आग में
कूदो, कूदो आग में
पानी मिलेगा |

* अपने प्रति
क्यों नहीं होता कोई
ईमानदार ?

* कितना झूठ
कितना खूब झूठ
बोलोगे यार ?

* कविताई में
मैं कहाँ टिकता हूँ
सबसे पीछे |

* इन्सानी बातें 
अव्यावहारिक हैं 
इस काल में |

* कैसे तो आयें 
बेहतर विचार 
या वृहत्तर 
माँजना होगा मन,
दिल - दिमाग |  

* झूठा प्यार ही 
मुझे तो चाहिए था 
सो मुझे मिला |

* इस्लाम है न 
हिन्दू राजनीति की  
पवित्र गाय !

* दिल दे आया 
एक अजनबी को 
अब क्या होगा !

* प्रकृतिपूजा 
उसके सम्मुख मैं 
नतमस्तक |

* नया फार्मूला 
पैसा न खर्च करें 
दानी कहाएँ |

* मुझे पता है 
तुमने वह सब 
लिखा हास्य में |  

* दुस्साध्य कर्म 
मौन निश्चल मन 
हो भावशून्य |

* तज संदेह 
देह निस्संदेह है 
नेह का गेह | 

* बोल करके 
मन में पछताती 
कठोर जिह्वा |

* बड़ा कठिन 
मन को समझाना 
माने तब न !

* फ़ौरन जाओ 
उनकी शरण में 
जो हैं ही नहीं |

* यह तो मैंने 
किसी के कहने से 
लिखा नहीं है !

* रह ही जाता 
कितना भी चुनिए 
दाल में काला | 

* नवागंतुक 
नेह का स्वागत है 
मन के द्वारे | 

* कल करेंगे, 
आज मन नहीं है,
प्रेम की बातें |

* मूल संस्कृति 
पसंद करता हूँ 
पालन नहीं |

* डाला तुमने  
नींद में व्यवधान 
जुर्माना भरो | 

* सत्य और है 
प्रकट कुछ और 
नर नारी का |

* बुद्धि लगाओ 
चाहे जहाँ भी जाओ 
हिन्द या पाक |

* अजूबा हुआ ?
यह तो होता ही है 
ऐसा समझो |

* क्या कर लेते ?
लेकिन करते तो 
भरसक हैं |

* भेड़िया आया   
देखो इधर देखो
ईश्वर आया |

* भूल जाइये 
कभी भ्रष्टाचार था 
इस देश में 
भ्रष्टाचार नहीं है 
इस देश में |

* जो ही कोई इसे लूटे, बेइज्ज़त करे , यह देश उसी का है |

* उनका कहना है कि मेहतर या भंगी को यदि कचरा प्रबंधन समिति का अध्यक्ष कहा जाय तो स्थिति बदल जाती है |

* बाकी सब लोग तो शरीक हुए ,
जिनसे उम्मीद थी , नहीं आये |

लड़की होना, या न होना |
* लड़की होना कितना त्रासद ! प्रेमी से विवाह करे तो बाप मार डाले | न करे तो प्रेमी गला काट दे !
* पुत्री का होना माँ- बाप के लिए इस मायने में अच्छा है कि वह उन पर बोझ नहीं बनती | विवाह के बाद वे बोझ से मुक्त हो जाते हैं | जब कि पुत्र जीवन भर उनके सर का भार, उन्हें सताता रहता है | 

* जो पति - पत्नी शक्की नहीं होते, उनका यौनिक जीवन सुखमय बीतता है | 

एक नयी संविधान सभा व नये संविधान की मांग व‍ाजिब है

संविधान-विषयक कांग्रेसी विश्वासघात को उजागर करने के लिए एक तथ्य को याद दिलाना जरूरी है। मेरठ अधिवेशन में 'सब्जेक्ट्स कमेटी' की बैठक में बोलते हुए जवाहरलाल नेहरू ने वायदा किया था कि आजादी मिल जाने के बाद सार्विक वयस्क मताधिकार पर आधारित एक नयी संविधान सभा बुलायी जायेगी (एस. गोपाल सम्पादित 'सेलेक्टेड वर्क्‍स ऑफ जवाहरलाल नेहरू', खण्ड1, पृ. 19)। लेकिन तमाम वायदों की तरह यह वायदा भी भुला दिया गया। इसके बाद कांग्रेस ने कभी भी सार्विक वयस्क मताधिकार आधारित संविधान सभा बुलाने की बात नहीं की।

आज बहुत कम लोगों को ही इस तथ्य की जानकारी है कि जो संविधान भारतीय लोकतन्त्र (जनवाद) का ''पवित्र'' आधार ग्रन्थ है, जो हर नागरिक के लिए अनुल्लंघ्य और बाध्‍यताकारी है, उसका निर्माण भारतीय जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों ने नहीं किया था, न ही चुने हुए प्रतिनिधियों के किसी निकाय द्वारा उसे पारित ही किया गया था। संविधान बनाने वाली संविधान सभा को उन प्रान्तीय विधानमण्डल के सदस्यों ने चुना था, स्वयं जिनका चुनाव देश की कुल वयस्क आबादी के मात्र 11.5 प्रतिशत हिस्से से बने निर्वाचक मण्डल ने किया था। जाहिर है कि इनमें से चन्द एक कांस्टीच्युएंसी से चुने गये प्रतिनिधियों को छोड़कर शेष सभी सम्पत्तिशाली कुलीनों के प्रतिनिधि थे। यानी संविधान सभा सार्विक नहीं बल्कि अतिसीमित वयस्क मताधिकार के आधार पर चुनी गयी थी और प्रत्यक्ष नहीं बल्कि परोक्ष चुनाव के आधार पर चुनी गयी थी। इन चुने गये प्रतिनिधियों के अतिरिक्त उसमें राजाओं-नवाबों के मनोनीत प्रतिनिधि थे। कुछ उच्च मध्‍यवर्गीय विधिवेत्ता और प्रशासकों को भी उसमें मनोनीत किया गया था। यहाँ यह भी जोड़ दें कि इस संविधान सभा को चुनने वाले प्रान्तीय विधान मण्डलों का चुनाव (अतिसीमित मताधिकार पर आधारित होने के अतिरिक्त) धार्मिक एवं जातिगत आधार पर पृथक् निर्वाचक-मण्डलों द्वारा किया गया था। चुनाव के इन आधारों और प्रक्रिया का निर्धारण 'गवर्नमेण्ट ऑफ इण्डिया ऐक्ट, 1935' के द्वारा औपनिवेशिक शासकों ने किया था। संविधान सभा ने 1946 में जब काम करना शुरू किया तो देश अभी ग़ुलाम था। 1950 में संविधान जब बनकर तैयार हुआ तो देश आजाद हो चुका था। लेकिन सार्विक मताधिकार के आधार पर चुने गये किसी नये निकाय द्वारा पारित या पुष्ट किये जाने के बजाय उसी पुरानी संविधान सभा द्वारा इसे पारित करके पूरे देश की जनता पर इसे लाद दिया गया।


दुनिया को नर्क बना रखा है देवों के देव महादेव ने


  •   'रामायण' धारावाहिक के बाद इधर टी वी पर इस तरह के मिथकीय धारावाहिक कुकुरमुत्ते की तरह उग आये हैं. अंधविश्वास और पूरी तरह सामंती तथा कबीलाई मानसिकता से भरे इन धारावाहिकों ने समाज की मानसिकता को अपने तरीके से प्रभावित तो किया ही है साथ में वह संकटों से घिरी इस व्यवस्था के लिए भी बड़े मुफीद हैं. अप्रासंगिक हो गयी जादू-टोने की किताबों से किये 'शोध' के ये परिणाम समाज के भविष्य और वर्तमान दोनों के लिए घातक हैं. जाने माने लेखक और पेशे से चिकित्सकराम प्रकाश अनंत का यह आलेख इन चमकदार धारावाहिकों के इन्हीं प्रभावों पर केन्द्रित है.


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        २८ मार्च को राजस्थान के स्वामी माधोपुर जिले के गंगापुर सिटी के रहने वाले एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी,भाई,पुत्र व पुत्री के साथ मिलकर ज़हर खाकर आत्महत्या कर ली। उसने मरने से पहले एक विडियो बनाया और उसमें बताया कि वे लोग क्यों आत्महत्या कर रहे हैं. पुलिस छानबीन से पता चला कि वह परिवार अति धार्मिक प्रवृत्ति  का था .धार्मिक आयोजनों में काफी हिस्सा लेता थायहाँ तक कि टीवी पर भी धार्मिक सीरियल ही देखता था। वह महादेव सीरियल से बहुत प्रभावित था। बहुत से लोग ये तर्क दे सकते हैं कि महादेव सीरियल तो पूरा देश देखता है और किसी ने तो आत्महत्या नहीं कीअब वह परिवार मूर्ख था तो इसमें महादेव सीरियल का क्या दोष है।  
हम इक्कीसवीं सदी में जी रहे हैं और यह विज्ञान का युग है। विज्ञान ने आज चाँद सितारों तक की दूरियां तय कर ली हैं लेकिन विडम्बना है कि तमाम तरक्की के बाद भी आज समाज की सोच आदिम सामंती संस्कृति की सोच से ऊपर नहीं उठ पाई है। उसकी बड़ी वजह यह है कि शासक वर्ग ने समाज का ऐसा ताना वाना बुन रखा है कि वह अपने हित के लिए समाज की सोच को ऊपर नहीं उठने देना चाहता। यही वजह है कि तमाम वैज्ञानिक प्रगति के बाद भी समाज का पढ़ा लिखा तबका भी अपनी पुरातनपंथी सोच से बाहर नहीं आ पाया है। उसकी वजह यही है कि  शासक वर्ग के पास जनता की चेतना को कुंद करने के तमाम हथियार हैं। वह चाहता है कि जनता की समझ वहीं तक विकसित हो जहां तक उसके हित में है। यह बिला वजह नहीं है कि निर्मल बाबा(और ऐसे तमाम बाबाओं)के दरबार में जनता की काफी भीड़ जुटती है,पढ़े लिखे लोग उसके बेहूदे उपायों पर विश्वास करते हैं, टीवी चैनलों पर निर्मल बाबा के कार्यक्रम छाए रहते हैं।

विजुअल मीडिया का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है। तमाम चैनल जिस तरह राशिफल, तंत्र-मन्त्र, बाबाओं और धार्मिक सीरियलों को परोसते हैं उसने जनता की सांस्कृतिक चेतना को मटियामेट कर दिया है और वह उसे फिर उसी आदिम युग में ले जाना चाहते हैं। ऐसे में किसी परिवार के पांच सदस्य ज़हर खाकर देवों के देव महादेव से मिलने चले जाते हैं या हज़ारों महिलाएं डाइन बता कर मार दी जाती हैं या तंत्रमन्त्र के चक्कर में लोग पड़ौसियोंजहां तक कि अपने ही बच्चों की बलि दे देते हैं तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए।  अन्धविश्वास से लेकर परम शक्ति यानी ईश्वर से सम्बंधित जो सीरियल टीवी पर दिखाए जाते हैं वे हमारी सांस्कृतिक चेतना को एक ही जगह ले जाते हैं परन्तु इनमें एक बहुत बड़ा अंतर है। हो सकता है एक धार्मिक व्यक्ति तंत्र मन्त्र को सही मानता हो और दूसरा ग़लत या एक धार्मिक निर्मल बाबा को ढोंगी मानता हो और आशाराम बापू का भक्त हो जबकि दूसरा आशा राम को ढोंगी मानता हो और निर्मल बाबा का भक्त हो लेकिन जो इस तरह के धार्मिक सीरियल हैं उनमें सभी धार्मिक  अंधी श्रद्धा रखते हैं। इस बात को एक उदाहरण से समझते हैं।
         
कुछ दिन पहले टीवी पर ऐसे बहुत से विज्ञापन आ रहे थे जो विशेष छूट के साथ तीन-साढ़े तीन हज़ार में लक्ष्मी यंत्र कुबेर की चाबी आदि देते थे जिसकी स्थापना के बाद खरीदने वाले का घर दौलत से भर जाएगा। बहुत से धार्मिक व्यक्ति इस पर विश्वास नहीं करते होंगे। लेकिन यही बात महादेव सीरियल में कुबेर वाले एपीसोड में दिखाया गया है जिस पर हिन्दू माइथोलोजी में विश्वास करने वाला हर व्यक्ति विश्वास करेगा। जहां तक कि उसके विश्वास करने या न करने का कोई सवाल ही नहीं उठता यह बात उसके अवचेतन में सीधे प्रवेश कर जाती है। कुबेर में अपने धन के प्रति लोभ पैदा हो जाता है। महादेव उसे फटकारते हैं कि लोगों में असंतोष बढ़ रहा है,दुनिया में जिनके पास धन है उनका दायित्व है कि वे अपना धन संसार आवश्यकताओं में लगाएं। दरअस्ल यहाँ महादेव पूंजीवाद के असमानता के अन्तर्विरोध को उसी उपदेशात्मक तरीके से हल कर देते हैं जैसे अब तक गली मोहल्ले के कथा वाचक हल करते आ रहे हैं। साथ ही वे निर्धनों को आश्वस्त करते हैं की वे अपने काम में लगे रहें उन्होंने कुबेर को डांट कर ठीक कर दिया है वह एक दिन आपके लिए भी अपना खजाना खोल देगा।
             
राजा- महाराजाओं के समय में लिखी गईँ ये  धार्मिक कथाएं शासक वर्ग के हितों के लिए वर्तमान समाज को पुराने सामंती मूल्यों की जकडबंदी में जकड़े रखना चाहती हैं। देवताओं का राजा इंद्र है।उसमें वे सारे गुण हैं जो उस समय राजा महाराजाओं में होते थे। धूर्तता,मक्कारी,अय्याशी और हमेशा अपने राज्य के लिए चिंतित। इससे यही पता चलता है कि जिस दौर में ये कथाएँ लिखी गईं उस दौर में इन्हें इसी तरह सोचा जा सकता था। लेकिन अफ़सोसजनक यह है कि इन कथाओं का धार्मिक जनमानस में काफ़ी प्रभाव है और शासक वर्ग जनता की मानसिकता को उन्हीं सामंती मूल्यों में जकड़े रखने के लिए इन कथाओं का इस्तेमाल कर रहा है। 
       
महादेव बार -बार यह बात दोहराते हैं कि कैलाशउनका परिवार सिर्फ उनका परिवार नहीं है,वह संसार के लिए एक आदर्श है। सही भी है। महादेव यानी इस सृष्टि के ईश्वर को शादी और बच्चे पैदा कर परिवार बसाने की भला क्या ज़रुरत है। उन्होंने यह सब संसार के लिए आदर्श स्थापित करने के लिए किया होगा। तब कुछ महिलाएं व पुरुष विवाह नाम की संस्था को स्त्री के विरुद्ध बताते हैं वे भी सही ही बताते हैं। क्योंकि महादेव ने परिवार का जो आदर्श स्थापित किया था वही अभी तक चला आ रहा है और उसे बदलने की ज़रुरत है। इस पारिवारिक व्यवस्था में महादेव विवाहित पुरुष का आदर्श हैं और पार्वती विवाहित स्त्री का। महादेव एक दूसरे ईश्वर नारायण के साथ मिलकर संसार की फर्जी चिंताओं (ध्यान रहे ईश्वर दुनिया की वास्तविक चिंताओं से निरपेक्ष है) में व्यस्त रहते हैं और पार्वती के तीन काम हैं- स्वामी के मूड को दुरुस्त रखना, बच्चों के भरण पोषण के लिए लड्डू बनाना और उनकी सुरक्षा का ध्यान रखना। वे एक अच्छी गृहणी की तरह हमेशा चिंतित रहती हैं कि बच्चों की सुरक्षा के लिए एक भवन का निर्माण कर लिया जाए। वे बार -बार रट लगाए रहती हैं स्वामी बच्चों की सुरक्षा के लिए भवन का निर्माण कर लिया जाए। महादेव प्रकृति के निकट रहने का आदर्श स्थापित करते हैं कि इंसान को भवन की आवश्यकता ही नहीं है। आज जब करोड़ों लोगों के सर पर मकान नहीं है उनके लिए महादेव का यह आदर्श कितना सुन्दर है। कभी कभी महादेव यह कह कर कि पार्वती तुम आदि शक्ति हो यह सन्देश देते हैं कि दिव्य शक्तियों से संपन्न ईश्वर पुरुष रूप में ही नहीं स्त्री रूप में भी होता है। लेकिन पार्वती की शक्ति का संचालन महादेव के अधीन तो है ही वे अपनी शक्ति का उपयोग तभी करती हैं जब महादेव उसकी भूमिका बना देते हैं और उनके बच्चों पर कोई गहरा संकट आने को होता है। वे दुर्गा बन कर महिषासुर को मारती हैं क्योंकि वह उनके पुत्र कार्तिकेय पर हमला करता है।वे काली का रूप धरती हैं क्योंकि हुन्ड नाम का असुर उनके भावी दामाद नहुस को मारना चाहता है। वे एक अच्छी माँ की तरह बेहद चिंतित रहते हुए नहुस को  तत्काल विवाह योग्य बनाने की जिद पकड़ लेती हैं। महादेव के समझाने के बावजूद पार्वती का बार बार जिद पकड़ना समाज में प्रचलित कहावत तिरिया हठ और बाल हठ की ही पुष्टि करता है।  पार्वती की जिद पर महादेव अपने जादू से दस-बारह साल के दिखाई देने वाले नहुस को विवाह योग्य पूर्ण युवा बना देते हैं। स्त्री होते हुए भी पार्वती का नहुस को विवाह योग्य बनाने के लिए इतना चिंतित होना और महादेव का उसे विवाह योग्य बना देना सामंती युग में अधिक उम्र के पुरुषों द्वारा कम उम्र की नाबालिग लड़कियों से विवाह करने की प्रवृत्ति का ही प्रतीक है। कैसी विडम्बना है की देश में जब बहस छिड़ी हुई है कि लड़की की यौन स्वीकृति की उम्र सोलह साल हो या अठारह साल हो ऐसे समय में महादेव एक  कम उम्र के लडके को विवाह योग्य बना कर अपनी पुत्री जो विवाह योग्य नहीं है उससे शादी करने का आदर्श प्रस्तुत करते हैं। आधुनिक युग में भी लड़कियां अच्छे पति के लिए व्रत रखती हैं महादेव सीरियल इसकी सार्थकता की पुष्टि करता है। महादेव की पुत्री बाल्यावस्था में नहुस से विवाह करने के लिए तपस्या करने चली जाती है और लक्ष्मी की पांच बहनें अपने जीजा नारायण से विवाह करने के लिए घोर तपस्या करती हैं। जो कामकाजी महिलाएं यह शिकायत करती हैं कि उनके पति घर में सहयोग नहीं करते उन्हें समझना चाहिए की महादेव और पार्वती ने यही आदर्श प्रस्तुत किया है।
           
महादेव जैसे सीरियल समाज की चेतना का जिस तरह क्षरण करते हैं वह समाज की सोच को सदियों पीछे ले जाते हैं। धार्मिक संस्कार किस कदर व्यक्ति की चेतना में अन्दर तक घुस जाते हैं कि व्यक्ति चेतना के स्तर पर उनसे मुक्त भी हो जाए तब भी अवचेतन से ये संस्कार आदत के रूप में प्रदर्शित होते रहते हैं और व्यक्ति को उसका पता भी नहीं चलता। लोग डॉक्टर,इंजीनियर,वैज्ञानिक  बन जाते हैं फिर भी उनकी सोच इन्हीं संस्कारों की वजह से एक अनपढ़ अन्धविश्वासी व्यक्ति की सोच से ऊपर नहीं उठ पाती।उनकी इस सोच को बनाए रखने में रामायण,महाभारत,महादेव जैसे सीरियलों का बड़ा योगदान है।

सोमवार, 22 अप्रैल 2013

Nagrik Blog 22 April 2013


" इन्सानी धर्म "
मैं स्वीकार करना चाहता हूँ कि मानववाद Humanism भी भारत की हर भाषा में " इन्सानी " नाम से धर्म ही, बल्कि मज़हब भी कह सकते हैं, बनने जा रहा है | इसके बगैर इसकी सफलता की कोई सम्भावना नज़र नहीं आ रहा है | और अन्य धर्मों का यह धर्म बनने का अनुभव इसके भी काम आने जा रहा है | एक तरह से कहा जा सकता है कि मार्क्सवाद भी उतना तो फाफल हुआ ही जितना वह आस्था का विषय बना | और वह उतना ही असफल हुआ जितना वह धर्म नहीं बन सका | अतः " इन्सानी " को भी कम से कम भारत में " धारण करने योग्य " धर्म बनने में कोई खतरा नहीं है, तो इस्लाम के संग साथ इतने दिनों से रहने के नाते इसे " मज़हब " बनने में भी कोई परेशानी नहीं है | लेकिन, ज़ाहिर है सब कुछ अन्य धर्मों से अनेक मात्राओं में अंतर पर होगा | जैसे अन्य धर्म , उसी प्रकार मानव धर्म [ इन्सानी ] , अलबत्ता अलग मान्यताओं और आधुनिक वैज्ञानिक सोच के साथ | यहाँ ईश्वर नहीं होगा, और जो कुछ थोडा बहुत होगा उसका पूजा पाठ नमाज़ नहीं होगा | हम धर्मों की खिलाफत करेंगे, तिस पर भी हम धर्म बनेंगे | बनकर दिखायेंगे कि धर्म भी किस तरह रेशनल हो सकता है !  यह विस्तार की बात है | यहाँ संक्षेप में यह स्पष्ट करना है कि धर्मों की कुछ अनार्निहित बुराई की संभावना से हम इनकार नहीं करना चाहते | क्योंकि यह मनुष्यों द्वारा निर्मित और स्वार्पित धर्म है | इसका राज्य किसी स्वर्ग का वादा नहीं कर सकता, यद्यपि वह इसके प्रयास करेगा | वह झूठी राजनीति नहीं करेगा, और ऐसा भी नहीं कि वह मनुष्यों के साथ कोई सख्ती नहीं करेगा | आदमी विविध हैं तो उनके साथ बुद्धिपूर्वक ही व्यवहार होगा | फिर यह अलग नया धर्म क्यों ? अधिक स्पष्टीकरण न मांगिये | जवाब बस इतना है कि जिस प्रकार अन्य धर्म मार्किट में हैं और वे एक दूसरे से अलग हैं | उनसे पूछिए वे क्यों अस्तित्व में हैं ?    

* मैं जन्म से तो नहीं हो पाया लेकिन अब उम्र से तो मेरी श्रेणी [ Hierarchy ] बदल ही गयी | मैं SC हो गया | इसका अर्थ कोई Senior Citizen लगाये तो लगाये, लेकिन मैं तो Scheduled  Caste समझता हूँ | मैं न ST हूँ न OBC | 

* बड़ी लडाई लड़नी पड़ती है, अन्तर्द्वन्द्व से गुज़रना होता है अपनी पुरानी फफूंदों और काइयों से बाहर निकलने में | कभी कोलकाता आओ, किसी काम से कालीघाट जाओ, और मंदिर की पौराणिक महत्ता से परिचित होते हुए भी, बिना काली मंदिर गए या उधर सर करके माथा झुकाए वापस लौट आओ ! क्या समझते हैं इसमें कम मशक्कत करनी पड़ी मुझे पिछले 14 अप्रेल दिन रविवार को ?

* महिलायें, जो काबिल होती हैं, खूबसूरत होती हैं |        


* कुछ सशक्त 
कुछ कमजोर हूँ 
इंसान हूँ मैं |

* जो कुछ पढ़ा 
पीछे छूट गया है 
बची है याद |  

* हम दुखी हैं 
न कोई कारण है 
न निवारण |

* जोर से बोलो 
या धीरे, मत बोलो  
जय माता दी |

* क्या कीजियेगा ?
निर्वाह करना है 
किसी तरह |

* कर रहा हूँ 
सफ़र की तैयारी 
जल्दी चलूँगा |

* खून वाही है 
पानी भी वही होगा
स्वाभाविक है |

* सुंदर तो थी 
नहीं देख पाया मैं 
उसकी आभा |

* ज्यादा बोलना 
नहीं चाहिए, ज्यादा 
बोलना नहीं |

* काम चलता 
उसके बगैर भी 
काम चलायें |

* मासूमियत 
अज्ञानता समान
अज्ञानी बनूँ |

* वैसा ही चलो 
जैसा चल पाते हो 
तेज़ क्यों दोड़ो ?

* संबंध पक्का     
अब चाहे संबंध 
हो या नहीं हो |
[Haiku Poems]

[ कविता ]
* वेद मन्त्र कान में 
पिघले सीसे के 
समान पड़ते हैं ,
तिलमिलाता मन !

Gift तो देते रहे ,
Lift , लेकिन नहीं पाए |


* न ब्रूयात सत्यम अप्रियम | पोस्ट में लेखक की पसंद/ नापसंद पर कोई क्या कह सकता है ? उन्हें यह संस्कृति अच्छी लगी तो ठीक है , लगा करे | किसी को नहीं भी अच्छी लग सकती है, तो न लगे | सबका अपना निजी पैमाना हो सकता है | लेकिन ऐसे ही एक कथन को मैंने तब भी 'अश्लील उवाच' की श्रेणी में रखा था, जब एक भारतीय अंतरिक्ष यात्री से इंदिरा गाँधी ने पूछा था -" भारत कैसा लग रहा है ?" और उसने जवाब दिया था - " सारे जहाँ से सुंदर |"  अच्छा मुझे भी लगता है अपने देश, बल्कि मैं तो राष्ट्रवादी भी हूँ | लेकिन इस जवाब पर तब उबकाई आई थी मुझे | वैज्ञानिक - प्राकृतिक सौन्दर्य चेतना के सरासर विरुद्ध और अवांछित राजनीतिक वक्तव्य था वह | अफ्रीका के जंगल सहारा के रेगिस्तान क्या सुंदर नहीं है ?   [ on Ujjwal's ]

* उन्होंने शादी इसलिए नहीं की क्योंकि वह नारी को मुक्त रखने के पक्षधर थे |

* तिस पर भी -
बिगाड़ कर रख दिया सांस्कृतिक पर्यावरण को ! " तिस पर भी " लोग इन्हें कलाकार कहते हैं, इनके लिए क्षमा याचना करते हैं ! 

सोमवार, 15 अप्रैल 2013

Nagrik Posts 14 April 2013


कोई रक्त बीज राक्षस था क्या मैकाले ?
* न मैकाले का भूत भागेगा, न अंग्रेजों का प्रेत पीछा छोड़ने वाला | ऐसे में तो  गाँधी तो गाँधी, मैं भी आपके किसी काम न आऊँगा |  आहा ! कितना महान था - एक था  जो मैकाले और सशक्त उसकी औलादें, गाँधी और उनकी संततियों की तुलना में ? क्यों , यही तो कहना, बताना, भावना प्रतिष्ठित करना, चाहते हैं न नयी पीढ़ी में ?

* आज एक दलित महोदय के घर के किचेन में दाल  कच्ची रह गयी | बड़ी कोशिशों पर भी ठीक से नहीं पकी | सुना है उनके पानी को किसी ब्राह्मण ने छू लिया था | 

* मैं मुक्ति चाहता हूँ | मुक्ति दुनिया से नहीं | घर के झंझटों से , परिवार के तनाव से | संभवतः सत्यतः , इसी को तब भी मुक्ति कहते रहे होंगे, जब परेशान जन जंगलों की राह ले लेते रहे होंगे ! बाक़ी तप- तपस्या, भिक्षाटन तीर्थयात्रा आदि सब बहाने हैं |    

* हमारा धर्म = " इंसानी "  
[ Humanists in India ] 

* उतना ही तो किया जितना साधारण आदमी कर सकता था ! कुछ विशेष नहीं | इसलिए कृपया मुझे कोई विशेष दर्ज़ा न दिया जाय | 

बस वही 
--------------
* गोल चक्कर 
हम घूमते जाते 
कहीं न जाते |

* तरक्की के तो 
लक्षण ही नहीं हैं 
खाक करेंगे ?

* बस हो चुका
बहुत हुयी तलाश 
घर को लौटो \

* धीरे ही चलो 
नहीं चल पाते तो  
लेकिन चलो |

* बच्चे मम्मी को 
बहुत मानते हैं 
पापा को कम |


कविता  =  " मेट्रो "

* मैं रेलिंग पकड़कर 
सीढ़ियाँ उतर रहा था 
तुम्हे भी 
रेलिंग के सहारे की 
ज़रुरत थी ,
मेट्रो ट्रेन से उतारकर 
मैं लिफ्ट की तलाश में था 
तुम भी लिफ्ट के बगैर 
ऊपर नहीं चढ़ सकती थी |
इसी प्रकार हम मिलते हैं 
मेट्रो ट्रेन से 
आते हैं जाते हैं |
#####

* ब्राह्मण यही चाहता है 
नाचो गाओ 
जन्म दिन - जयन्ती मनाओ
किसी महामानव के 
पीछे भागो  
उसे देवता बनाओ ,
फिर तो ब्राह्मण की 
बन ही आएगी 
एक न एक दिन !
#####

* बच्चे बड़े हो रहे हैं 
उनसे दूरियाँ भी 
बढ़ रही हैं ,
उनका व्यक्तित्व 
विकसित हो रहा है ,
हम तो जो हैं, सो हैं 
उनसे कुछ तो भिन्न !
##### 

[कविता ?]
न इतनी डांट को डांट मानूँ  ,
न इतने गुस्से को गुस्सा ,
तो मै भी पीड़ा से 
बच जाता हूँ  
सर झटकता हूँ और 
भूल जाता हूँ 
कब किसने कितना 
मुझे कटुवचन बोला ! 
# # 

* हम आप की बात क्यों मानें ? हम अपनी बात आप से क्यों मनवाएं  ? आप अपनी बात बात मेरे झोले में रख दीजिये , मैं अपनी बात आप की जेब में डाल देता हूँ | जिसको जो ज़रुरत होगी, निकाल कर पढ़ लेगा, अन्यथा फेंक देगा | बस !

* आधुनिक पति पत्नी स्वयं तो नौ बजे तक या आगे भी सोते हैं, लेकिन चाहते हैं की काम वाली बिल्कुल सुबह घर क्र काम कर जाए | घर में कुछ न बने तो दोनों बाहर से खान खा आयेंगे, लेकिन नौकरानी को साथ नहीं नहीं ले जायेंगे | कह देंगे अपने लिए कुछ बना लेना |

ॐ ॐ ॐ  जीवनाय नमः !
ॐ मम्मी डैडी, गुरु -गुरुवानी, पति -पत्नी, प्रेमी प्रेमिका, बाल बच्चे नमः !
ॐ भावनाय,स्कूटर,मोटराय, टीवी फ्रिजाय, लेपटॉप-कम्प्युटराय नमः !
ॐ दूध अंडा ब्रेड मक्खन, अखबाराय नमः !
इत्यादि - - - - - - to be extended by readers -------                   


* दलितों ने 'लाखों ' वर्ष ब्राह्मणों की जो सेवा की है, अब "उसी " का फल खा रहे हैं तो बुरा क्या है ?

शनिवार, 13 अप्रैल 2013

Nagrik Blog 12 April 2013


* क्यों जल रहा है सूर्य तू 
साधारण पृथ्वी से 
ईर्ष्यावश ?
यह तो देख 
इधर शातिर मनुष्य 
चाहता है कि तू जले 
जलने में प्रसन्नता का 
अनुभव करे और यह आदमी 
तुम्हारे ताप से 
ऊर्जा प्राप्त करे और 
तुम्हारी मदद से वह  
जीवन सामग्री  जुटाए | 
यह देखो सूर्य 
वह तुम्हारा जल से 
अभिषेक कर रहा है |
तुम्हे अर्घ्य चढ़ा रहा है 
तुम क्यों जल रहे हो सूर्य ?
# # # 

* यह तो कहिये कि अभी कुछ अपढ़ बाक़ी हैं दुनिया में , जिनके भरोसे दुनिया चल रही है | वरना पढ़े लिखे लोग तो इसे कब का खोद खा कर बेच बिकिन चुके होते !

* यदि आपको अपनी बहुओं की शिकायतें सुननी अच्छी लगती हैं, तो आप अच्छे सास श्वसुर नहीं हैं |
  
* लोग गलत कहते हैं कि पुरुष ताक़तवर होता है | असली ताक़त तो होती है स्त्रियों की - - मुट्ठी में |


हिन्दू कहे सो हिन्दू होय |

* जात पात पूछे नहिं कोय ,
हरि को भजे सो हरि का होय |
- यह हम लोगों का , और हम लोगों का ही क्यों, हम सभी लोगों का, जो जात पात में विश्वास नहीं करते [ भले Absolute ढंग से बरत न पायें , अत्यंत प्रिय दोहा है | इसे किसने कहा मुझे तो यह भी नहिं मालूम | पता है तो बस कि जात पात मत पूछो  | 
अब इसमें थोडा फेर बदल करके इसका उल्था बनाया जाए तो भी आजकल के लिए प्रासंगिक एक अच्छा दोहा बनता है |]  
जात पात पूछे नहिं कोय ,
हिन्दू कहे सो हिन्दू होय |
[ इधर इस विषय पर कुछ चर्चा चल रही थी , इसलिए बोला ]

* हुकुम  के गुलाम  [ Evangelist ]
हम तो ईश्वर के हुक्म [हुकुम ] के गुलाम हैं | जो वह कहता है वह हम करते हैं | या जो कुछ हम करते हैं उसी के आदेश पर करते हैं | ऐसा माना जाना चाहिए |  इतना सामर्थ्यवान है वह |

* स्थिति बदल गयी है तो इतना मत इतराइए | ब्राह्मण भी कभी ऐसे ही इतराते थे |
[ To whom it may concern ]

* लेकिन ईश्वर है नहीं |

[ कहानी ]        " नासमझी  "
* न्यायाधिकारी  -- " तुमने जो पाप किया है उसके लिए मृत्युदंड  कुछ भी नहीं है | "
 पापी --- " जो मैंने आनंद पाया उसके लिए मृत्युदंड सचमुच कुछ नहीं है |"


* ज्यादा उत्साह में मत आइये | यही लिफ्ट नीचे भी ले जाने का काम करती है |

* अब वैवाहिक / पारिवारिक बंधन के अवसर पर पति -पत्नी, और यदि उनके पूर्व पत्नी / पति से बच्चे हों तो सबको एक साथ एक शपथ और जोड़नी  चाहिए कि = " हम केवल सेल पर लगे वस्तुओं, कपड़ों - जूतों और अन्य  सामानों  का ही प्रयोग करेंगे और उन्ही से काम चलाएँगे | नए सामानों पर फ़िज़ूल खर्ची नहीं करेंगे | " 

* लोग फ़िज़ूल बात करते हैं | कहाँ है स्वतंत्रता ? कभी नहीं होगी आज़ादी | सवेरे सवेरे या कभी भी फोन आता है | मैं धीरे से बात करता हूँ | पत्नी पूछताछ करती है - किसका फोन था ? अब कैसे कह दूँ [मैं लड़की होता तो Boyfriend ] मेरी गर्लफ्रेंड का ? सो कह देता हूँ - इंश्योरेंस / मोबाईल कंपनी की और से था | मैं झूठ बोलता हूँ | कहाँ है सच ? सच कभी नहीं आएगा |  


* सच कहें तो गीता भले ही हमारे पास हो लेकिन कर्म के मामले में हम उतने ही महा नाकारे हैं, जितनी  महान है यह पुस्तक | अब तो सिद्धांत ही उलट गया | हम फल की चाह करते हैं , कर्म की परवाह नहीं करते |

* जब मैं कोई साजिश रचता हूँ तो सोचता हूँ मैं सफल हो जाऊँ | लेकिन कोई दूसरा यदि मुझसे थोडा भी लाभ उठाना चाहे तो मैं उसे स्वार्थी कहकर उसकी भर्त्सना करता हूँ | है या नहीं यह, मेरा कमीनापन ? 

* यदि कोई मुझसे सिगरेट छोड़ने को न कहे तो मैं कहना चाहता हूँ कि वह बहुत मँहगी हो गयी है | और हर सरकार अपनी नैतिकता दिखाने के लिए इसकी कीमत बढ़ाती ही बढ़ाती है |

* पहले औरतें कहाँ लेती थीं अपने पति का नाम ? अब लेने लगीं न ? समय के अनुसार, अब दैनिक जीवन की आवश्यकता के दबाव में ?  तो , ऐसे ही और बदलेंगी, मजबूरन बदलेंगी औरतें | यह ज़रूर है कि इनका  बदलना ज़रा धीरे हो रहा है |


* * मान लिया जाय कि मोटे तौर पर अपनी निम्नतर अवस्था में हिन्दू अंधविश्वास का धर्म है | तो भी वह कोई हवा में तो रहता नहीं है, न किसी टापू Iceland  पर | वह भी अपने आस पड़ोस से प्रभावित होता है | वह देखता है कि इस्लाम तो परमविश्वासी मज़हब है | अतः दोनों में कोई दूध का धुला नहीं है | बल्कि हिन्दू का अंधविश्वास तो उसके अपने लिए ही घातक है , जब कि मुसलमान का इस्लाम पर परमविश्वास पूरी दुनिया को नचाये हुए है | इसलिए जब तक मुसलमान अपना विश्वास वैज्ञानिक नहीं बनाता, हिन्दू भी अपने विश्वासों से चिपका रहना चाहता है | प्रतिद्वंद्विता में या अपने स्वतंत्र सरवाईवल के लिए उसे वह छोड़ना नहीं चाहता | उसे संदेह है कि इस्लाम का घड़ियाल उसे खाने की ताक में हैं और खा ही जायगा यदि वह एकजुट ताक़तवर नहीं हुआ, जिस तरह उसने बाहर से आकर भारत पर कब्ज़ा जमा लिया | इसके लिए अब उसके पास कोई एक कुरआन तो है नहीं, जिसके ऊपर सब एक साथ मर मिटें ? न कोई एक मोहम्मद, न एकमात्र अल्लाह जिनके लिए वह आसमान सर पर उठाने को सन्नद्ध हो जाए ? दर्शन के स्तर पर तो उसके पास इतनी विविधता, इतने आयाम हैं कि उस धरातल पर तो वह एकताबद्ध हो नहीं सकता, विभाजित भले हो जाय | राजनीतिक विकल्प भी उसे असंभव दिख रहा है | उसने भाजपा का भी हश्र देखा, और बहुजन वादी मायावती को भी परखा | सो, उसके पास कुछ कामन/ साझा अंधविश्वास ही बचते है एकता का प्लेटफार्म बनने के लिए | तो कभी राम, कभी रामसेतु ही उसके हाथ आते हैं | इस महीन बात को भारत के महान हिन्दू विचारक नहीं समझते, अब तो वे अपने आप को हिन्दू ही नहीं बोलते  | या जान बूझकर उदघाटित नहीं करते क्योंकि इससे उनकी महामत्ता पर ग्रहण जो लग सकता है ! सही है, हिन्दू को बड़े दिल बड़े दिमाग का होना ही चाहिए | लेकिन हम छोटे विचार खिलाडियों का अनुमान है कि संसार के छोटे छोटे गुणांकों को नज़रअंदाज़ करना कोई बड़प्पन का चिन्ह नहीं है | आसुरी शक्तियों की साजिशों को समझना भी बुद्धिमानों की ज़िम्मेदारी में शामिल होना चाहिए |   
और मिस्टर हट्टीन्गटन कहते या नहीं कहते यह तो मानना ही होगा कि इस्लाम की गैर दुनियावी / अन्यसंसारपरक अवैज्ञानिक दृढ़ धारणाओं और कठोर मान्यताओं के खिलाफ हिन्दू या अमरीका- बर्मा- ब्रिटेन  क्या होंगे, स्वयं स्वस्थ मानस के मुसलमानों को भी होना पड़ेगा, यदि मानव सभ्यता को बचाना है तो | ऐसा नहीं कि इस्लाम में जो कुछ है वह सारा गलत ही है, या हम उनके नैतिक पक्षों के चिरविरोधी है,  बल्कि इसलिए कि वे जो कुछ भी मानते हैं उसे ही एकमात्र सत्य मानते हैं , उसके खिलाफ कुछ भी सुनना उन्हें गवांरा नहीं, उसे सबसे मनवाना भी चाहते हैं -मनुष्य को Free inquiry छोड़ मज़हबी बनाना अपना परम कर्तव्य मानते हैं | लादेन सिर्फ मुसलमान नहीं होते, वे बुश से भी इस्लाम कुबूल करने की तजवीज़ करते हैं | वह भी सहमति से नहीं, भय और आतंक का माहौल देकर | यह तो गलत ही है न ?            


* Ambrish Kumar
भारतीय कालबोध और कालगणना

सृष्टि छान्दोग्य है। इसका अन्तस् छन्दस् है। छन्द की अपनी लय होती है। प्रकृति सदा से है। यह लय में प्रकट होती है और प्रलय में अप्रकट। प्रलय में भी लय बची रहती है। ऋग्वेद के एक मंत्र में कहते हैं कि “वह वायुहीन स्थिति में भी अपने दम पर सांस ले रहा था - आनादीवातं स्वधया तदेंक। ‘स्वधा’ उस एक प्रकृति की अनंत प्राण ऊर्जा है। इसलिए वायु नहीं है तो भी सांस जारी है। ऋग्वेद का ‘वह एक-तदेकं’ बड़ा दिलचस्प है। इसी ‘वह एक’ को विद्वान-विप्र इन्द्र, मित्र, अग्नि मातरिश्वन गरूण आदि देव नामों से पुकारते हैं लेकिन वह ‘एकं सद्’ - एक ही सत्य है - एकंसद् विप्रा बहुधा वदन्ति। (ऋ0 1.164.46) सृष्टि सृजन परिवर्तन की ही कार्रवाई है। परिवर्तन के भीतर गति होती है। जहां गति है, वहीं समय है। सृष्टि के पहले देवता भी नहीं है। ऋग्वेद के ऋषि कहते हैं “देवानां युगे प्रथमऽसतः सद जायत - देवों के युग के पहले असत् से सत् की उत्पत्ति हुई। यहां असत् का अर्थ सृष्टि का पूर्वकाल है। यही व्यक्त होता है तो सत्।’

प्रकृति जन्म नहीं लेती। वह अजन्मा है। ऋग्वेद (10.82.6) के अनुसार “सृष्टि के आदि से ही विद्यमान वह एक अज-अजन्मा है। इसी अज की नाभि में सभी भुवन समाहित थे।” ‘अज’ आधुनिक ब्रह्माण्ड विज्ञानियों का ‘कासमोस’ है। वह एक अज गतिशील हुआ। गति से परिवर्तन आया। विज्ञान की दृष्टि से प्रत्येक सृजन/परिवर्तन के पीछे एक ऊर्जा है। ऊर्जा का रूपायन सृष्टि है। यही सृष्टि सर्जना है। प्रकृति की शक्तियां उगीं। ऋषियों के अनुसार वे देवता थीं। बृहस्पति कहते हैं “व्यापक जलों में देवता थे- यद् देवा सलिले सुसंरब्धा अतिष्ठत्। उनके नृत्य से तेज गति वाले रेणु अणु-परमाणु प्रकट हुए।” (10.72.6) ऋग्वेद (10.190.1, 2) में कहते हैं “तप से ऋत व सत्य (व्यक्त जगत्) प्रकट हुए। अंधकार-रात्रि और अगाध जल समुद्र आये। समुद्रों से संवत्सर प्रकट हुआ - समुद्रादर्ण वादधि संवत्सरों अजायत्।” सृष्टि के साथ काल उगा। इसी काल का प्रथम दर्शन ही संवत्सर है।

भारतीय दर्शन में सृष्टि और प्रलय का क्रम जारी बताया गया है। है लेकिन प्रलयकाल में भी समूची ऊर्जा का नाश नहीं होता। प्रलय के बाद फिर से सृष्टि होती है। गति का मूल ऊर्जा है। ऊर्जा अविनाशी है। गति का नाश नहीं होता। समय भी अविनश्वर है। प्रलय के बाद भी ऊर्जा, गति और समय शेष बचते हैं। सृष्टि बार-बार आती है। भारतीय दर्शन में इसीलिए ‘कालचक्र’ है। उसका पहिया घूमता है और बार-बार सृष्टि व प्रलय लाता है। सृष्टि और प्रलय के खेल प्रकृति की इकाईयों में भी चला करते हैं। प्रकृति में द्वैत दिखाई पड़ते हैं - यहां रात-दिन हैं। जीवन-मृत्यु हैं। प्रकाश-अंधकार हैं। रात्रि ऋत है, दिन सत्य है। दिन ज्ञान है, रात्रि तमस हैं। दिन सक्रियता है, रात्रि विश्रांति है। सृष्टि अपने छन्द्स में गतिशील है। काल रथ का पहिया घूम रहा है। पूर्वजों में कालबोध था। कालबोध ही दूसरे सीमित रूप में इतिहासबोध है।

खूबसूरत रथ पर सवार काल हर बरस मधुमय नवसम्वत्सर लाता है। वे काल सर्वशक्तिमान देवता हैं। अथर्ववेद (9.53) के ऋषि भृगु ने उनकी महिमा गायी है, “काल-अश्व विश्वरथ का नियन्ता है। वह सहस्त्र आंखों वाला है। सबको देखता है। समस्त लोक कालरथ के चक्र हैं। ज्ञानी इस रथ पर बैठते हैं। यह काल सात चक्रों का वाहक है। इसकी सात नाभियां हैं। इसकी धुरी में अमृत है। ज्ञानी इस काल को विभिन्न रूपों में देखते हैं।” कैसे देखते हैं? भृगु ने बताया है “काल से ही सृष्टि सर्जक प्रजापति आये। काल स्वयंभू है। वह स्वयं किसी से नहीं जन्मा। काल से ही विश्वजन्मा। काल में तप हैं। काल में मन है। काल में ज्ञान है। काल विश्व पालक और सबका पिता तथा पुत्र है। काल में पृथ्वी की गतिशीलता है। काल से ही सूर्योदय और सूर्यास्त हैं। काल में ही भूत, भविष्य और वर्तमान हैं।” सृष्टि का उद्भव शून्य से नहीं हो सकता। सृष्टि रचना के पहले कोई एक आदि द्रव्य है। इसी आदि द्रव्य में सृष्टि का समूचा पदार्थ-जड़ और समस्त ऊर्जा-चेतन एकत्रित है। फिर आदि द्रव्य में परिवर्तन हुआ, जो अव्यक्त था, अप्रकट था वह व्यक्त होने लगा। प्रत्येक परिवर्तन का मूल गति है। परिवर्तन से ही काल बोध होता है।

वैदिक ‘निरूक्त’ में यास्क ने ठीक ही काल का सम्बन्ध गति से जोड़ा है। काल अखण्ड सत्ता है। काल पिता है, वही पुत्र भी है। काल की अनुकम्पा आयु है, काल का कोप मृत्यु है। काल में सर्जन है, काल में ही विसर्जन है। भारतीय कालबोध ऋग्वेद से भी पुराना है। यही कालबोध प्राचीन काल में ईरान पहुंचा। अथर्ववेद का ‘काल’ ईरानी ग्रंथ अवेस्ता में ‘जुर्वान’ है। जैसे अथर्ववेद का काल प्रतिष्ठित देवता है, वैसे ही अवेस्ता का जुर्वान भी एक देव है। भारतीय काल सबका नियंता है और प्रजापति का पिता है। इसके भीतर प्रकाश और अंधकार है। दिवस और रात्रि है। ‘जुर्वान’ भी अनंत है। संसार के रचयिता अहुरमज्दा उसकी संतान हैं। अहुरमज्दा भारतीय प्रजापति हैं। इस विचार के अनुसार जब न आकाश था, न पृथ्वी, न कोई जीव तब ‘जुर्वान’ था। यहां सीधे ऋग्वेद के सृष्टि सूक्त की प्रतिध्वनि है। भारतीय नववर्ष की शुरूवात किसी ऋषि, महात्मा या महापुरूष की जन्मतिथि से नहीं होती। बेशक इस तिथि में अनेक महापुरूष उगे, अनेक निर्वाण को प्राप्त हुए। युधिष्ठिर विक्रमादित्य सहित अनेक पूर्वजों ने अपने संवत्सर भी चलाये। अंग्रेजी कालगणना ईसा से शुरू होती है। लेकिन प्रथम संवत्सर का प्रथम आलोक, प्रथम दिवस और प्रथम तिथि की गणना अनूठी है। सृष्टि जिस क्षण शुरू होती है, उसी समय संवत्सर का प्रारम्भ हो जाता है। संवत्सर का प्रारम्भ सार्वभौमिक है। संवत्सर व्यक्त सृष्टि का प्रथम ऊषाकाल है। यह सम्पूर्ण जगत् का प्रथम सूर्योदय है। सृष्टि ब्रह्म का प्रथम सुप्रभात है। इसलिए अंतर्राष्ट्रीय नववर्ष है। वैदिक संवत्सर की धारणा अद्वितीय है।

भारतीय काल गणना के पहले कालबोध है। फिर काल गणना है। इस गणना में सृष्टि की आयु एक अरब 95 करोड़, 58 लाख, 85 हजार एक सौ तेरह वर्ष हो चुकी है। वैज्ञानिक अनुमान भी यही हैं। इस संवत्सर का केन्द्र सूर्य हैं, पूरा सौर-परिवार है। ऋग्वेद (1.164) में कहते हैं “सूर्य को हमने सात पुत्रों - किरणों (वर्णो) के साथ देखा है। इनके मध्यम भाई वायु हैं, उनके तीसरे भाई अग्नि हैं। ऋत का 12 अरों वाला चक्र इस द्युलोक में घूमता है। यह चक्र कभी जीर्ण नहीं होता। इसके 720 पुत्र इस चक्रम में हैं।” यहां ऋत प्रकृति की व्यवस्था है और अरे 12 माह हैं। एक वर्ष में दिन रात मिलाकर 720 अहोरात्र हैं। विश्वदर्शन, काव्य सृजन या चिन्तन की किसी भी पद्धति में काल का ऐसा अध्ययन विवेचन और विश्लेषण नहीं मिलता। सृष्टि सर्जन के पहले काल बोध नहीं है, सम्वत्सर भी नहीं है। सम्वत्सर और सृष्टि साथ-साथ।

टाइम और काल (समय) पर्यायवाची नहीं है। काल अखण्ड है, टाइम इसके खण्ड का माप है। ऋग्वेद में अदिति, अज और पुरूष प्रतीकों की अनुभूति गहरी है। ऋषि कहते हैं “जो अब तक हो चुका और भविष्य में जो होगा वह सब अदिति हैं। वह सब यही पुरूष है।” वैदिक अनुभूति में समूची कालसत्ता अखण्ड है। यूरोपीय दृष्टि में भूत-पास्ट एक टेन्स-तनाव है। भूत का अस्तित्व वर्तमान में स्मृति है। इसी तरह फ्यूचर टेन्स भविष्य का आकर्षण है। तनाव मस्तिष्क गत कार्रवाई है। प्रजेन्ट फ्यूचर या पास्ट टेन्स कालगणना नहीं है। भारतीय कालबोध का क्षण सृष्टि की शुरूवात है। फिर युग है। महाभारत युद्ध के 36 वर्ष बाद यानी ईसा पूर्व 3103 वर्ष से कलियुग चल रहा है। युगाब्ध की दृष्टि से भारत की 52वीं सदी है। विक्रमसंम्वत् की दृष्टि से यह 2070 सम्वत् है। यही शकसंवत्सर 1934 है। लेकिन ईसा की दृष्टि से यह 21वीं सदी ही है। भारत की प्रतीति, अनुभूति वैज्ञानिक है।
[हृदयनारायण दीक्षित]

* पत्रकारिता 
टिटहरी की टाँग
थामे आकाश |

* बुद्धि शुद्ध हो 
ह्रदय पवित्र हो 
यही साधना |

* केवल कर्म 
वाद - विवाद मुक्त 
चिर साधना |

* मान लीजिये 
मसलन यही कि
मैं भी आदमी  |

* असहमत 
मैं किसी भी बात से 
हो सकता हूँ |

* कोई अवस्था 
आपत्तिजनक है 
कैसे तय हो ?

* मिल गए हो 
तो साथ ही रहना 
दूर न जाना |

* सब देखेगे 
दिखाई जो पड़ेगा 
यह तय है |

* सारी औरतें 
भूखी प्यासी नहीं हैं 
आपके लिए |

* खुद ही बनो 
 जो कुछ बनना हो   
वही 'बनना' |         

* बोलता तो हूँ 
नैतिकता विरुद्ध 
जा नहीं पाता |      

* प्यार ही बोलो 
नाटक करना हो 
जब भी कभी |

* सारा साहित्य 
कहने की बातें हैं 
सुन लीजिये |

* गुंडई करो 
सिद्धांतविहीन हो 
सफल बनो |

* जाति का नहीं 
व्यक्ति का, आदमी का 
विकास सोचो |

* आप तो हैं न ?
मुझे किसी और की 
ज़रुरत क्या ? 
किसी भगवान की  
मुझे क्या चाह ?
[हाइकू ]


* Ugra Nath Nagrik 
       Acivist 
         @
" EXTRA  FUNCTIONS "
L - V - L , ALIGANJ ,
Lucknow - 226024    


* इंशा अल्लाह , शायद - संभवतः का पर्यायवाची है | बस !

Shraddhanshu Shekhar Bhagwaan hi jaanta hai = MUJE NAHI MALUM ka paryayvachi
-- हाँ बिल्कुल | हम इसी तरह उसका " इस्तेमाल " करेंगे  | साँप  [ईश्वर ] भी मर जाए, लाठी [मानुषिक / पारस्परिक  व्यवहार ] भी न टूटे  | 

[ कविता ?]
* सोचे रहता हूँ 
झगड़े की भूमिका 
झंझट की ज़मीन
ताड़े रहता हूँ 
विवादों के जड़ 
जिससे वे झगडा -
झंझट - विवाद के वक़्त 
काम आयें ,
मैं कह तो सकूँ -
तुमने यह कहा नहीं था ? 
ऐसा बोला था या नहीं मुझसे ?
तो फिर ?
जब कि मेरा दुश्मन 
उन बातों को बिल्कुल
भूल चूका होता है |
लेकिन मैं याद रखता हूँ 
तैयार रखता हूँ 
दुश्मनी की भावभूमि 
जिससे वे समय पर काम  आयें |
# # 

[ कविता ?]
* ज्यादा सतर्क रहने की 
ज़रुरत नहीं है नागरिक !
कुछ नहीं होगा ,
विश्वास में धोखा है 
तो चालाकी में भी 
हार जाओगे |
भरोसे में तो फिर भी 
जीत जाने की संभावना है |
हर दम चौकन्ने 
मत रहो नागरिक |
# #    

* I am pleased that the Time Line of  House of Commons [ group ] has been changed from a collage of political leaders to photos of us people on basically my request to its Admin supported by other many members . Thanks Admin .

* वीरता तो है 
यदि सच पूछो तो 
कबीरता में |
[Haiku Poem inspired by Advait]

* परदे पर 
हीरो - हीरोइन के 
चुम्बन देखकर 
क्या करुँगी ?
उससे अच्छा तो तब था 
जब उसने मेरा आँचल
छुआ था |


मानवीय पक्ष [ A Party ]
? ? ? ? ? ? - - 

* मैंने अपना वचन जिया :-- 
All India Peoples Science Congress के पिछले फरवरी में लखनऊ के आयोजन में बिहार के कुछ साथी मिले थे | यहाँ कोलकाता आने और प्रवास दीर्घ हो जाने पर उनसे मिलने का कार्यक्रम बना | 4 अप्रेल से 6 अप्रेल तक कटिहार में गोदावरी देवी और सुरेन्द्र कुमार के साथ रहा - खाया पिया - घूमा फिरा | लेकिन यकीन मानिए, उनसे मैंने उनकी जाति नहीं पूछी, न अन्य प्रकार से ही जानना चाहा | मैंने अपनी स्वनिर्मित नियम का पालन किया | लोग कहते हैं जाति जाने बिना काम नहीं चलता | मेरी जिद है मैं किसी से उसकी जाति नहीं पूछता |   I feel good .
  

* I can love you too much, if I am subjected to spend my money too less on you .
# # # # # ################################################################### end 

बुधवार, 10 अप्रैल 2013

Nagrik Blog 10 / 04 / 2013

* केवल टाटा अम्बानियों के पास ही पैसा नहीं है | पंडा-पुजारी-संत-महात्माओं-मठों के पास भी है | फिर तो इनके भक्तों के पास भी होगा ही होगा !

* राहों पे नज़र रखना, होठों पे दुआ रखना ;
आ जाए कोई शायद, दरवाज़ा खुला रखना |
[unknown]

* दोनों हाथों संभालिये दस्तार ,
'मीर' साहिब , ज़माना नाज़ुक है |

* मन में ख्यालात मेरे जो भी हों ,
नाम तो देंगे मोहब्बत का ही |

* साहित्य पर मैं कुछ नहीं कहता / जानता ही नहीं तो बोलूँगा क्या !  साहित्य तो मैं बस रचता हूँ !

* जानना यह नहीं है कि दुनिया को किसने बनाया, बल्कि सोचना यह है कि उसे संवारा कैसे जजी ?
[ महात्मा बुद्ध ]

* उसे हमारा वरदान, हम मनुष्यों का आशीर्वाद जो प्राप्त है | ईश्वर कभी नहीं मरेगा |   

* Blessed are they, who don't seek God's blessings .

* जो भगवान को नहीं मानते, वे मनुष्यों पर अपने विश्वास के कारण छले बहुत जाते हैं |  
एक फर्क है दोनों में | भगवान् पर विश्वास करने वाले भगवान् द्वारा नहीं बल्कि पंडों पुजारियों बाबाओं द्वारा छले जाते हैं | जब कि मनुष्य पर यकीन करने वाले मनुष्यों से ही धोखे खाते हैं | सीख यह मिलती है कि आँख मूँद कर किसी पर भी विश्वास न करो |

* हम भी करते तो तर्क ही हैं, कभी कभी ईश्वर के नाम का मनोरंजन के लिए शाब्दिक इस्तेमाल कर लेते हैं | आखिर हमारा ही बनाया हुआ है  वह | वरना तो हम जानते ही हैं " जन्नत की हकीकत लेकिन " |

* संविधान के अनुसार / कानूनी प्रयोग के लिए जो यह, वह, वह, वह नहीं है वह हिन्दू है |

* दलित नहीं हैं वे | पीड़ित हैं | दलित होने की मानसिक बीमारी से ग्रस्त / पीड़ित हैं | बस बीमार हैं | वरना वे प्रत्यक्षतः किसी दलन की स्थिति में नहीं हैं |

* छूटती जाये 
जितनी छोड़ते जाओ 
मन की डोर |  

* बड़ी चाहना 
प्राप्त हो सराहना 
करें कछु ना |

* हे भगवान् ! 
जवानी भी स्त्रीलिंग ? 
मर्द क्या करें ?

* है न साहित्य 
हर मर्ज़ की दवा ! 
अपनाईये |
 
* उनकी बात 
उनकी ही भाषा में  
देना उत्तम | 

* कौन था वह 
भीड़ के पार मुझे 
बुला रहा था ?

* कोई तो रास्ता 
इधर या उधर 
निकलेगा ही |

* प्यार की नहीं 
कोई गन्दी सी बात 
बोलो तो बोलो |

* लिखा पड़ा है 
इतना, कितना तो 
छापेगा कोई ? 

* थकी जुबान
सर सर कहते
अब रुकूँगा |

* शायद बचे
एक अकेला सत्य
' निरंतरता ' !

* थोडा सा सही  
कुछ आगे जाना है
यहाँ से आगे |

* जाना न होता
तो तैयारी भी कभी
पूरी न होती |

* न कह पाया
न उन्होंने समझा
तो बात ख़त्म !

* फल पकने
मेरी गोद गिरने
में देर लगी |

* अहिंसक हैं
तो क्या दे दें आपको
अपनी जान ?

* उनको देखा
देखता रह गया
अवाक आँखें |

* आपका साथ
होना ही बस होना
शेष बेकार |

* प्यार हो न हो
प्रकटीकरण है
तो खूब ज्यादा |

* सब तेरा है
रहो तो ऐसे रहो
या कुछ नहीं |

* भूल गया हूँ
उस पेड़ का नाम
जो लगाया था |

* चमत्कार ही
तो होते ही आये हैं
अब क्यों न हों ?

* चला तो आया
मैं प्यार जताकर
आगे होगा क्या ?


* अपने नमो जी बिजली की बड़ी बातें करते हैं | कहते हैं - जिन्होंने  मोबाईल दिए तो बिना बिजली मोबाइलों की चार्जिंग कैसे होगी ? अब बिजली नमो जी उपलब्ध कराएँगे | यूँ तो जब हम मोबाईल के पक्ष में ही वोटरी नहीं हैं तो चार्जर के पक्ष में कैसे होंगे | लेकिन यदि हम चार्जर के पक्ष में हो भी जायँ तो सवाल यह है कि नमो जी इतनी बिजली कहाँ से, कैसे बनाकर दे देंगे जिसका वह वादा कर रहे हैं | हाँ एक तरीका राज नारायण जी, जब वह बिजली मंत्री थे तो, बिजली के शिकयातियों से बता रहे थे, कि क्या वह इस तरीके से बिजली बनाकर दें ? [ पुराने पत्रकारों को ज़रूर याद होगा ] | संभव है नमो जी भी कुछ वैसा ही तरीका अपनाने को सोच रहे हों |        

* बिलकुल सही और सटीक अशोक भाई | मैं आपकी इस व्याख्या की तहेदिल से प्रशंसा और स्वागत करता हूँ | आज आपने मेरा दिन और दिल दोनों खुश कर दिया | हिन्दू होने की यह पूर्ण और पर्याप्त अहर्ता है, और मैं इसका वकील एवं प्रचारक हूँ | हिन्दू [ या इन अर्थों में कुछ भी ] होने के लिए कहीं से कोई शर्त आयद करना मुझे मंजूर नहीं | जो अपने को हिन्दू कहता है, वह हिन्दू है | इसे कोई अन्य तय नहीं करेगा, किसी को इसका अधिकार मैं नहीं देता | यह अधिकार उस व्यक्ति का है, न कि किसी मौलाना का | इसी बात पर कुछ ही दिन पूर्व मैंने आपका विरोध किया था कि जो बौद्ध अपने को बौद्ध कहता है वह पर्याप्त बौद्ध है, आचरण कुछ भी करे | आचरण तो कोई भी कैसा  भी करे | इस प्रकार सभी धर्मावलम्बियों का आचरण लगभग एक सा है , और तब धर्मों की विभाजन कर्ता दीवारें स्वयमेव धराशायी होंगी |         
मूलतः, यह जनगणना का मामला है , मनगणना का नहीं |          

* नाम और पहचान आपके सर्वथा सत्य हों , और असली UID / Pan Card / Driving Licence / Voter Card / Ration Card से मेल खाते हुए भी हों, तब भी मैं FB / Magazine / यहाँ तक कि Books पर भी लेखक का नाम नहीं देखता | यह मेरी अयोग्यता है | मैं केवल विचार देखता हूँ, और उन्ही पर टिप्पणियाँ करता हूँ / व्यक्ति पर नहीं | 

* उग्रनाथ [ नागरिक श्रीवास्तव ]
" सिद्धान्तकार "
[विचारक / कवि / लेखक / पत्रकार / साहित्यकार कहने से अच्छा यह एक शब्द है ]  
अरे हाँ , एक और परिचायक शब्द हो सकता है = " मानवाकार " | सचमुच हम देखने सुनने, आकार प्रकार में ही तो मानव हैं ? अन्यथा वास्तव में क्या हैं यह कौन जानता है ? 

* विगत दो दिवस ७ एवं ८ April पटना में बुद्धिवादी फाउंडेशन के मित्रों डॉ रामेन्द्र एवं डॉ कवलजीत के साथ रहा | युवा कथाकार डॉ जीतेंद्र वर्मा से मिलने का सुअवसर मिला | यात्रा सुखद और सार्थक रही | 9/4/13

* " ईश्वर को मानने की ज़रुरत क्या है ?
ईश्वर का नाम लेने में हर्ज़ क्या है ? "
तो ईश्वर का नाम लेकर विश्राम पर जाने की आप सब से अनुमति का याचक हूँ | अस्वस्थ हूँ | किंचित सार्थक वार्तालाप के लिए मित्रों का आभार | एक छोटे से संकेत के साथ - कि देखिये, हम विभिन्न मतावलंबी किस प्रकार प्रेम, स्नेह और सौहार्द्र पूर्वक बातचीत कर ले जाते हैं, अन्य समूहों की तुलना में जहाँ विद्वतजन फ़ौरन तू तू मैं मैं पर उतर कर वातावरण को विषाक्त करते हैं | धन्यवाद |  
" हमारे आपके झगड़ने से ईश्वर यदि नहीं हुआ तो वह हो नहीं जायगा, और यदि हुआ तो गायब नहीं हो जायगा | फिर हम आपस में अपना माथा क्यों फोड़ें | ईश्वरों को ज़रुरत हो तो आपस में लड़ें और अपना झगडा निपटाएँ | "  

मंगलवार, 2 अप्रैल 2013

Nagrik Blog 3 April 2013


सप्रेम प्रणाम की जगह लाल सलाम |

* मैं गरीब नहीं , अजीबोगरीब हूँ |

* 31 मार्च की रात | 12 बजने वाले हैं | इसके पेश्तर कि पहली अप्रेल को मूर्ख घोषित हो जाऊँ, मैं आज ही अपनी बुद्धिमत्ता सिद्ध करके फेसबुक के पास दाखिल दफ्तर कर देना उचित समझता हूँ, जिससे वक़्त पर काम आये | हुआ यह कि बीते हुए कल 30 मार्च को मेरी पोती का जन्म दिन था | मुझे कुछ बर्गर बाज़ार से लाने को कहा गया | मैं Berger की दूकान गया, बर्गर की फरमाइश की और पाँच किलो Berger paint का डिब्बा लेकर समय से घर वापस आ गया |     

* मौलिक चिन्तक विवाद नहीं करते | वे गौर से सुनते हैं और धीरे से थोडा बोलते हैं |

* सब स्वार्थ है 
सबका स्वार्थ है जो 
उन्हें चलाता !

* मैं क्या जानता 
तुमने ही बताया 
तब मैं जाना |

* चोली दामन 
का साथ ? चोली तो है 
दामन कहाँ है ?

* तुम मेरे बचपन के साथी हो कि नहीं ?
इसीलिये मैंने अपना बचपना बचा रखा है 
तुम्हारे लिए !

* जिन्हें पढ़ने / पढ़कर महान बनने का शौक हो, वे मेरे "उच्च विचार " मेरे ब्लॉग पर जाकर आराम से पढ़ / पढ़ते रह सकते हैं | पता है = 

* अपना तो मोटो है - सादा जीवन उच्च विचार | अब इससे बड़ी मूर्खता और क्या हो सकती है ? कोई करके दिखाए !

* लड़ाका पत्नियों के पति अक्सर शांतिप्रिय होते हैं |

* लोक की कहावतों और संत के कठौतों में इतना ज्ञान भरा है कि हमारी सारी Libraries और अभिलेखागार बहुत छोटे हैं |

* " अपने बच्चों की Conditioning आप नहीं करेंगे तो कोई और करेगा | "
-- So said friend Sandeep, when I told him - " I don't and I didn't " 
-and he was true .

* बहुओं को यह सोचना चाहिए कि भले पुत्र के भय से सही, वह सास - ससुर के "ओ.के " पर ही वह घर की बहू बनी है | 

* अपना कठोरतम वचन भी कोई मानने को तैयार नहीं कि वह कठोर था | दूसरे का ज़रा सा भी कटु सत्य वचन सबको बहुत चुभता है |

* हाँ, बिल्कुल ही आम आदमी हूँ मैं | मैं दुःख में दुखी, सुख में ख़ुशी का अनुभव करता हूँ | मुझे भी चिंताएं सताती हैं | परिवार पूजा पाठ करता है तो मुझे क्रोध आता है | स्वाद और स्पर्श की इन्द्रियां मुझ पर भी प्रभाव दिखाती हैं | देवता नहीं हूँ मैं | बिल्कुल साधारण आदमी हूँ मैं !   

* मृत्यु से भय न खाओ, मरने से न डरो- यह तो गीता का ज्ञान है | इसी से मिलता जुलता ज्ञान भी है जो ज्यादा प्रचलित है ;- किसी को मारने से परहेज़ न करो |  

* [ Priya Sampadak, group ] उग्रनाथ ' नागरिक ' [ मूलवंशी श्रीवास्तव ] अपनी खराब बातें यहाँ लिखते हैं | कुछ ठीक - ठाक चीज़ें होम पेज पर जाती हैं | 

* यह बहस निरर्थक है कि अहिंसावादी बौद्ध हिंसा क्यों कर रहे हैं ? इस्लाम में तो भाईचारा और सब्र है तो आतंकवादी क्यों हैं ? ईसाई तो क्षमाशील होने थे वे क्रुसेड क्यों कर रहे हैं ? हिन्दू में तो छुआछूत है फिर ये समान क्यों हो रहे हैं ? इत्यादि | कोई कुछ भी अपने धर्म की मानने के लिए बाध्य नहीं होता | धर्म अब मानसिक और आध्यात्मिक नहीं रहे | पैदाईशी जातियाँ भर हैं | एक सामाजिक पहचान और सम्प्रदाय, राजनीतिक संख्याएँ हैं , जो अपने लौकिक - सामाजिक जीवन के लिए जद्दोज़हद कर रहे हैं | उनको उनके पारंपरिक या संलिखित मूल्यों के आधार पर जाँचना परखना, मूल्यांकित करना गलत और उन समुदायों के साथ नाइंसाफी होगी | अब आप या आपका धर्म ? उनमे से किसका पक्ष लेता है वह भी आप का नेता किसी नीति या नैतिकता के आधार पर नहीं, अपने राजनीतिक सर्वाइवल  को ध्यान में रखकर करेगा और आप उसका अनुगमन अपने स्वार्थ के लिए करेंगे | धार्मिक मूल्य लेकर चाटेंगे क्या, जब बचेंगे ही नहीं ?         
It is altogether nonsense to ask why buddhists are taking on violence ? Why the brotherhood and fraternity monger islamists are turning to terrorism ? Why peace loving Christians resorted to the crusade ? Why casteist Hindu are seeking equality ? etc . No, no one is now bound to follow the rules of their religion . Religions, now have no mental or spiritual ground . They all have become communities by birth, and are struggling for there social and political survival . What will they do of morals if they are not safe ? &c  [ To Shraddhaanshu  on his demand for English Traslation ]

* कहने / चिढ़ने से कुछ नहीं होगा | थोड़ी देर के लिए कोई भी स्वयं को शासक की भूमिका में डालकर देखें | उसे भी इसी नीति का पालन करना होगा | यदि शासन करना हो, राज्य को बनाये रखना हो तो | यह शाश्वत राजनीतिक नीति है | जो राजा इससे विरत होगा " मूर्ख " कहाएगा, राज्य गँवाएगा सो अलग |      [ To Prachand nag on Divide and Rule ]


* इसमें खराबी क्या है ? यह हमारा विकृत [ संशोधित/ polluted by modernization ?] मानस है जो इनमे दोष ही दोष देखता है | मेरे ख्याल से हमारी आदि / मूल / दलित संस्कृति विश्व की महान संस्कृति है | धीरे धीरे सभी इस और अग्रसित होंगे | हमें चुप हो देखना चाहिए |
और भी जोड़ लें - जो प्रकृति के अधिकांश निकटस्थ, सहज स्वाभाविक हो | बनावटी संस्कृति समय कि मार बहुत देर तक झेल नहीं पाती | कहीं यही - " कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी " तो नहीं है ? 
जितना ही शर्मिंदा होंगे हम उतने ही चिढ़ाए जायेंगे, और खिल्ली उड़ने वाले कोई सूप नहीं चलनियाँ ही होंगीं | गर्व और अहंकार की बात नहीं है, लेकिन हमारे कोणार्क-खजुराहो पर कोई हमारी हंसी क्यों उड़ाए ? सभ्यता संस्कृति का कोई निश्चित पैमाना नहीं है - वह ठीक था या यह ठीक है, कहना मुश्किल है | लेकिन अपनी नग्नता या सार्वजनिक चुम्बन पर पश्चिम तो शर्मसार नहीं होता | तिस पर भी हम गर्व क्यों करें कि यह तो उन्होंने हमसे सीखा ? विवाद बंद | 
उन्हें छूट "देने / न देने " का अधिकारी बनना ही तो समस्या की जड़ है | अपनी औरतों के हम हैं कौन ? होते कौन हैं ? होते क्यों हैं ?
इसमें मेरा कोई विचार नहीं है | मैं इतना काबिल नहीं हूँ | वस्तुतः, एक बार मैं अपनी शिक्षित/ नैतिक अवस्था में सरकारी काम से बलिया गया था | वहाँ ऐसे ही भोजपुरी गीत बजते रहते हैं | एकांत अवसर पाकर एक लगभग सत्तर के वृद्ध से इसलिए पूछा कि यह सज्जन तो मुझसे सहानुभूति रखेंगे ही  - " यह , इतने गंदे गाने बजते हैं  - - " | उन्होंने छूटते ही कहा - " इसमें आपको गन्दा क्या लगता है ?"   बस उन्ही कि बात मैंने भाई INDIA के पोस्ट पर उद्धृत कर दिया | जिसे इससे ज्यादा जानना हो वे उन्ही से पूछें जो इनके वास्तविक अवाम [ पालनकर्ता ] हैं |
To Display India on nude nagas and Holi .


* प्रचंड [नाग ] के कथन में मुझे दम लगता है | ब्राह्मण जो भी नीच से नीच काम करके, ढाबा चलाकर जूठे गिलास धोकर, अपनी रोजी चलाएगा | पर सीना तान कर पंडित जी कहाएगा | लेकिन दलित बड़ा सा बड़ा    काम करके, उच्च पद पर होकर भी अपने को दलित कहकर सर नीचा करेगा | दलित एक स्थिति हो तो उसे बदला जा सकता है, पर यदि उसे विशेषण बनाकर माथे पर चिपकाया जायगा, तो फिर उससे मुक्ति कहाँ ?   

* हिंदुस्तान चमत्कार चाहता है | और चमत्कार तो होने से रहा !

= Anti-Theists. Pro Active Atheists. Opposing Religious Harm.
* You are better than all the religious people put together, that's because you're good people. 

* साहित्य साधना का मतलब है झूठ की आराधना | सारा असत्य, गल्प - गपोड़, काल्पनिक - हवाई- वायवीय उड़ान ही तो होता है सब वहाँ ? अब मनोरंजक तो होगा ही वह | झूठ की तरह आनंददायी | कठोर, कष्टप्रद तो होता है - सत्य ! अवर्णनीय ! अवर्णित ही रह जाता है सत्य | नग्न होता है सत्य | साहित्य आवरण चढ़ाता है |


When sanity surrenders to insanity.

In the Muslim world cowardice and hypocrisy reigns supreme. As soon as the question of freedom and reason tries go forward Islamic dogmatism comes out with all force to stop the march. These dark forces are always successful because the governments in those nations are corrupted, immoral and totally subservient to the whims of the mullahs. In fact mullahs runs a parallel government there by issuing Fatwas to negate the established civil laws. In the recent days a few Bangladeshi youths dared to question the legitimacy of faith in a free society. This is largely a poor and illiterate nation where people are much concerned with their daily survival. But it has a powerful reactionary Islamic clerical circle who can do and undo lots of things. They work to save Islam from being questioned by anyone and the government there easily succumb to their pressure.
These mullahs are supported from the outside with money and guidance and the government is helpless to stop them.

Those few youths who raised voices against religious indoctrination has been arrested to face criminal charges for criticizing Islam. Like many other Muslim nations, Bangladesh has also succumbed to the pressure of the lunatic mullahs. The right to uphold the freedom of speech has again been muzzled. Religious insanity is out to stop the march of freedom. The era of darkness and dogmatism has again descended.