(विशुद्ध कविता -)
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फेंको पाश,
फेंकते रहो रस्सियाँ
मेरे ऊपर मेरे आसपास
फेंको पाश !
बाँधो मुझे बाँध सको तो
देखो मैं बंधता हूँ या नहीं
तुम्हारे किसी जाल में
फँसता हूँ या नहीं
सम्भव है मैं फँस जाऊँ
बँध जाऊँ किनारे किसी डोर से
हिम्मत न हारो
फेंको पाश, फेंकते रहो बंधन
फिर भी मैं नहीं फँसूं
जिसकी पूरी संभावना है
अगर मैं नहीं बंधूँ
होना तो यही है
तो बन्द कर देना फेंकना पाश
उलीचना रस्सियाँ, और
चले आना मेरे पास
मैं बँध जाऊँगा
मत फेंको पाश !
- - - - उग्रनाथ
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