इसीलिये मैंने प्रस्ताव रखा है कि मनु के बजाय तुलसीदास को निशाने पर लिया । वह ज़्यादा लोकव्याप्त हैं और समाज को कलुषित करते हैं । उनकी रामायण घर घर में । अखंड रामायण आयोजन मुहल्ले मुहल्ले में । उसकी चौपाइयाँ मनुवाद ब्राह्मणवाद की असली वाहक ।मनु को तो कोई नहीं जानता । मनुस्मृति किसी के घर नहीं मिलेगा, न कहीं उसका पाठ आयोजित ।
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