शुक्रवार, 19 जुलाई 2019

सहज साम्यवाद

असलियत यह है कि सामान्य संवेदनशील, समझदार हर व्यक्ति स्वाभाविक कम्युनिस्ट होता है । वह कहे भले नहीं, या इस गुण को इस वाद के नाम से न पुकार पाए । लेकिन वह प्रकृतितः शोषक हो ही नहीं सकता । वह जानता है साझा जीवन कैसे मिलजुल, मिलबाँट कर जिया जाय । इतना कठिन नहीं है समाजवाद । मार्क्स ने भी शायद इस शीर्षक से किताब लिखी - 'दर्शन कोई कठिन विषय नहीं' ! "शायद" जोड़ दिया है सुरक्षा के लिए । कोई अंतर हो किताब के नाम में तो मार्क्सवादी मित्र कृपया ठीक कर दें , मुझे लताड़ न दें !😢

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें