माँ कौवा हँकनी, बाप !
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मेरे विचार से जो युवा अपने निर्णय लेने में समर्थ होते हैं वह ऐसी उद्घोषणा नहीं करते कि देखो मैं यह करने जा रहा हूँ और किसी साले बाप दादे से सलाह नहीं ली । समर्थ युवा बताते हैं कि मैंने घर वालों को विश्वास में के लिया है, जो सदस्य असहमत थे उन्हें विनम्रता पूर्वक अपना निर्णय बता दिया है । हेंकड़ी और बकैती नहीं दिखाते, यदि उनकी परवरिश ठीक हुई है तो ।
एक और महीन बात यहीं बता दें (इसीलिए पोस्ट लिख रहा हूँ) । यदि गौर करें तो माँ बाप शील्ड, बचाव का काम करते हैं (यह तो दकियानूसी कथन है)। लेकिन आधुनिक भी व्यवहारिक विचार यह है कि वह बचाव के किये तो इस्तेमाल किये ही जा सकते हैं । एक समस्या रखता हूँ (मैं हमेशा मित्रों से सिद्धातों को Numerical द्वारा जांचने का आग्रह करता हूँ, न कि हवाई हाँकने का)। मान लीजिए लड़की किसी से पिंड छुड़ाना चाहती है तो कह सकती है कि मेरी माँ नाराज़ होगी /मेरे घर वालों की यह पसन्द नहीं/मेरे पिता बहुत सख्त हैं,मुझे मार डालेंगे (सब बिल्कुल झूठ लेकिन)यह अस्त्र बच्चों के जीवन नाटक में बहुत काम आएगा । स्वतंत्र,स्वच्छंद हों, पर प्रदर्शित करें कि बहुत बंधन दबाव में हूँ । वरना आप देख लीजिये , देखते ही होंगे इस झूठे, चालबाज, धोखेबाज दुनिया वह निश्चय ही शोषण का शिकार होंगी । बच नहीं पाएंगी गिद्धों से । गिद्ध कौवों को डर दिखाना होगा कि माँ बाप एक छड़ी लेकर बैठे हैं , तुम मुझे चोंच न मार पाओगे । सही है , माँ बाप की भूमिका बस कौवा हाँकने भर की है । उनका उपयोग करने के लिए उनसे दुआ सलाम बनाये रखो । 👍
बाप पर कुछ आरोप तो लग भी सकता है, माँ बेचारी तो वैसे ही निरीह प्राणी है । (उसके अधिकार की कोई बात नहीं करता, न नारीवादी न नारावादी) । यही देखिये, पूरे साक्षी प्रकरण में उसकी माँ की जुबान खुलने की खबर नहीं आयी । जब कि उसी तरह की माँ साक्षी को या किसी भी लडक़ी को भी बनना है ! तो युवा लड़की को समस्त अधिकार है, वृद्ध माँ को कुछ भी नहीं ? यह आधुनिकता का न्याय है ।
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