"नागरिकता"
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Scientific Poetic Polity
उग्रनाथ नागरिक
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उग्रनाथ'नागरिक'(1946, बस्ती) का संपूर्ण सृजनात्मक एवं संरचनात्मक संसार | अध्यात्म,धर्म और राज्य के संबंध में साहित्य,विचार,योजनाएँ एवं कार्यक्रम @
शनिवार, 30 दिसंबर 2017
शुक्रवार, 29 दिसंबर 2017
सोमवार, 25 दिसंबर 2017
महामानव
हमें विशाल मनुष्य होना चाहिए । चाहे जिस नाते समझ लीजिए । महान हिन्दू होने के नाते, विराट मुस्लिम होने के नाते, विस्तृत ईसाई होने के नाते, तीक्ष्णबुद्धि दार्शनिक- वैज्ञानिक होने के , या स्वतंत्र नास्तिक होने के कारण । किसी भी वजह से हमें विशाल बुद्धि, हृदय, मस्तिष्क और व्यवहार का होना चाहिए । छोटी छोटी बातों, देवी देवताओं में उलझना नहीं चाहिए ।
जड़तामुक्ति
नास्तिकता का मतलब किसी भी आस्था पर जड़ नहीं रहना चाहिए ।
और हाँ, यही एक वाद है जिसे हर मानव परिभाषित करने का हक़दार है । फिर खण्डन का भी । अर्थात पुनर्परिभाषित करने का ।
Godmen
अभी तक मैं कहता रहा हूँ कि जब तक God और Godmen रहेंगे तब तक कुछ नहीं हो सकता । अब इसमें God worshippers भी जोड़ना पड़ रहा है ।
हीन नास्तिक ?
नास्तिक का नाम लेते ही जो नास्तिक हैं भी, नास्तिकता की सत्यता से सहमत हैं वह भी, हीन भावना, पापबोध के शिकार क्यों हो जाते हैं? मानो वह खुद को खुद ही गाली दे रहे हों । मुसलमान तो ऐसा नहीं सोचते, जबकि उनके इतिहास पर गम्भीर आरोप हैं ! और यह हिन्दू नाम ? यह तो अपने आपमें एक गाली है । तब भी इस पर गर्व किया जाता है ।
बराबरी (संस्था)
"बराबरी" (संस्था)
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समतावादी : Egalitarian
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उग्रनाथ श्रीवास्तव "नागरिक"
9415160913
मंगलवार, 12 दिसंबर 2017
कई दुनिया
भारत के अंतर्गत कई भारत हैं यह कहना पर्याप्त नहीं । बल्कि कहना होगा कि भारत के अंदर कई दुनिया हैं ।
एक दुनिया मोदी शाह अडवानी की है । एक दुनिया बच्चन, खानों, विराटानुष्का की है । एक दुनिया दलितों आदिवासियों, वंचितों मजलूमों की है । और सब एक दूसरे से काफी फ़र्क़ और विरोधी हित वादी हैं । विडम्बना, सब भारत में हैं ।
एक दुनिया मजदूर किसान और साथी कम्युनिस्टों की भी है ।
इन्हीं में से एक कोई अलग दुनिया मेरी भी है, लेकिन
मैं औरों की दुनिया की तुलना में अपनी ज़िन्दगी नहीं जीता ।
गुरुवार, 30 नवंबर 2017
सोमवार, 27 नवंबर 2017
अदावत
अदावत !
नुकसान मेरा भी होगा, लेकिन पता उन्हें भी तो चले कि उनके जड़ राजनीतिक आचरण और कट्टर धार्मिक और विश्वासों के चलते उन्होने मेरे जैसा अच्छा मित्र खो दिया है ।
उजड्ड
क्या उन्हें नहीं पता कि उनके राम मंदिर आंदोलन के चलते अनगिनत समझदार, श्रेष्ठ हिन्दू उनसे विरत हुए हैं ? फिर तो उनको शेष उजड्ड भीड़ से कितनी और किस गुणवत्ता की ताक़त मिलेगी ?
रविवार, 26 नवंबर 2017
गंभीर राजनीति
राजनीति एक गम्भीर कर्म है । यह किन्ही का शौक पूरा करने का साधन नहीं है । कि कोई अपने नाम से या कोई यूँ ही दल/ पार्टी का नाम रखकर चुनाव में खड़ा हो जाय और वोट माँगने चला आये । अरे, किसी विचारधारा के आधार पर ज़िम्मेदारी से राजनीति करने वाली पार्टी के साथ संघर्ष करो फिर हमारे दरवाज़े आओ ।
शुक्रवार, 24 नवंबर 2017
व्यक्तिजन
हम अपने काम के ज़िम्मेदार हैं/ ज़िम्मेदार रहेंगे/ ज़िम्मेदार बनेंगे ।
यही है Indivualism, व्यक्तिजन वाद ।
बुधवार, 22 नवंबर 2017
म्लेच्छ
ईश्वर को मानने में दिक्कत यह भी है कि इसे वह भी मानते हैं जिन्हें आप म्लेच्छ, आतंकवादी कहते हो ।
Living Being
Living Being
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Only "Living" is also a "Being" .
केवल जीना भी आख़िर तो "होना" है !
अंगुलिमाल
अबकी बार जो अंगुलिमाल मिला तो वह गौतम बुद्ध को छोड़ेगा नहीं । अगर बुद्ध ने मोदी पर उँगली उठाई तो वह उनकी उँगली काट लेगा । अंगुलिमाल ने अब अपना नाम बदल लिया है और वह पाटलिपुत्र राजधानी वाले प्रदेश की एक पार्टी का अध्यक्ष हो गया है ।
शुक्रवार, 17 नवंबर 2017
कमाल पाशा
कभी तो हमने भी हिन्दू राज्य की चाहना की थी । लेकिन तब हमारे मन में कमाल पाशा का आदर्श था । जैसा उन्होंने तुर्की के मुस्लिम राज्य में किया वैसे ही कोई हिंदुस्तान में करता । लेकिन यहाँ तो उल्टे हम और पीछे जा रहे हैं ।
PSS
मुझे खुशी है कि विध्वंसक RSS के बरक्स निर्माणकारी Progressive, PSS पूर्णतः सक्रिय है । प्रत्यक्ष मीडिया या सड़कों पर तो बहुत नहीं लेकिन व्यक्तिगत स्तर पर, छोटे समूहों में और सोशल मीडिया में इनकी ताक़त का अंदाज़ा लगाया जा सकता है । यह बहुत ज़रूरी काम है । खतरा देश पर ही नहीं समूची मानवता पर आसन्न है । बल्कि PSS नाम से झण्डा भी बना लेना चाहिए, एकजुटता के लिए, शक्ति संगठन के लिए ।
गुरुवार, 16 नवंबर 2017
बुर्ज़ुआ
बड़े समझदार (प्रोफेसर) लोग वोट देने नहीं जाते ।
बड़े सिद्धांतकार (कम्युनिस्ट) लोग वोट माँगने नहीं जाते ।
नतीजा यह कि बुर्ज़ुआ लोकतंत्र बुर्ज़ुआ वोटर और बुर्ज़ुआ राजनेता के बीच घिसकर दर बुर्ज़ुआ होता चला जा रहा है ।
मंगलवार, 14 नवंबर 2017
गुरुवार, 9 नवंबर 2017
मंगलवार, 7 नवंबर 2017
शुक्रवार, 3 नवंबर 2017
मंगलवार, 31 अक्टूबर 2017
सोमवार, 23 अक्टूबर 2017
अयोध्या
बिल्कुल बदलिए स्थानों के नाम । औरंगजेब रोड, मुग़लसराय, तेजोमहालय ! संदेह पक्का हो रहा है वर्तमान अयोध्या भी किसी समृद्ध नगर का बदला हुआ नाम हो सकता है ।
इज़्ज़तघर
नए सरकारी आदेश के अनुसार सार्वजनिक शौचालय को अब इज़्ज़तघर कहा जाएगा ।
यही बात तो भारत का प्रबुद्ध वर्ग बहुत दिनों से कह रहा है, कि अयोध्या में इज़्ज़तघर बनाओ, मन्दिर नहीं । तब तो इसे आप मान नहीं रहे हो ।
शुक्रवार, 13 अक्टूबर 2017
गुरुवार, 12 अक्टूबर 2017
रविवार, 8 अक्टूबर 2017
शनिवार, 7 अक्टूबर 2017
शुक्रवार, 6 अक्टूबर 2017
गुरुवार, 5 अक्टूबर 2017
बुधवार, 4 अक्टूबर 2017
मंगलवार, 3 अक्टूबर 2017
सोमवार, 2 अक्टूबर 2017
रविवार, 1 अक्टूबर 2017
उनके सपने
महापुरुष सपने देखते हैं, और हम कापुरुष के मत्थे मढ़कर मर जाते हैं । कहकर कि इसे पूरा करो । मैं क्यों पूरा करूँ उनके सपने ? उनके सपने थे वह जानें । यहाँ तो हमारे छोटे छोटे सपने ही पूरे नहीं होते हमसे । फिर इन लोगों के सपने ? और ये महापुरुष भी कोई एक दो चार नहीं, अनगिनत हैं ।
शनिवार, 30 सितंबर 2017
शुक्रवार, 29 सितंबर 2017
शनिवार, 23 सितंबर 2017
नास्तिक व्यवहार
मेरा अनुभव यह है कि नास्तिक को शांत रहना चाहिए । झगड़ा झंझट करने, विवाद बढ़ाने से नास्तिकता के प्रति लोगों में अरुचि और दुराव पैदा हो सकता है, जिससे इस नैतिक आंदोलन की हानि हो सकती है । नास्तिक को अपने कर्म और व्यवहार से आदर्श स्थापित करना चाहिए ।
पूँजीवादी नहीं
मेरी चिंता यह है कि आदमी के चरित्र और व्यवहार को कैसे पूँजीवादी होने से बचाया जाय । वह कम्युनिस्ट बने, न बने ।
घर वापसी
नास्तिकता क्या, यह तो बस घर वापसी का मामला है । आदमी का स्वाभाविक, मौलिक स्थान । लोग इधर उधर भटक जाते हैं ।
शुक्रवार, 22 सितंबर 2017
दैनिक प्रार्थना
देखिये, जब तक इस दुनिया में god और godmen रहेंगे, तब तक दुनिया का भला नहीं हो सकता ।
(प्रायः स्मरण)
विश्वास करो
विश्वास करते हो तो विश्वास करो
उसमें छीजन मत आने दो
तो फिर फिक्र मत करो ,
ईश्वर की यही इच्छा होगी
अल्लाह की ऐसी ही मर्ज़ी होगी ।
Comment on वज़ाहत post
सब कुछ सही , नीयत दुरुस्त ! लेकिन तरीका गलत हो जाता है । जिससे हम Seculars की बड़ी फ़ज़ीहत हो जाती है । बड़ी बड़ी सेक्युलर मुस्लिम हस्तियाँ अपने आपको पहले तो " मुसलमान " होना बताने से नहीं चूकतीं (हम हिन्दू तो लगभग उसे नकारकर मैदान में आते हैं,और उनकी गालियाँ खाते हैं । क्या पता है आपको कि अब सेक्यूलर शब्द ही हिन्दुस्तान एक गाली के रूप में तब्दील हो गया है ? ) , तब ,अपनी उपलब्धियाँ, खासियतें बयान करती हैं और फिर अंत में सारे मुसलमानों से उसे सम्बद्ध कर देती हैं । मानो सारी असुविधाएँ उन्हें हैं और कौम में तो कोई कमी ही नहीं है !
एक हादसा कुछेक साल पहले हुआ था । शबाना आज़मी ऐसी सर्वमान्य हस्ती हैं कि कहीं भी जाएँ उनका स्वागत सम्मान होता है । लेकिन बयान - उन्हें मकान (शायद मुम्बई, जुहू में ) इसलिए नहीं मिला क्योंकि वह मुसलमान हैं । बात दीगर कि उन्हें लखनऊ में क्रीम स्थान पर कैफ़ी आज़मी ट्रस्ट को शासन की और से खासी ज़मीन और फण्ड मुहैया कराया गया । (गरीब मुसलमान से इससे क्या लेना देना ? फिर भी ) ।
मैं इस angle, नजरिया और मौकापरस्ती का पुरज़ोर विरोध करता हूँ । हम खूब लानत मलामत सहते हैं , और आप हैं कि मलाई खाकर खिसक लेते हैं । ऊपर से तोहमत भी हिंदुस्तान के माथे पर जड़ देते हैं ! याद नहीँ कितने दानिश्वर मुसलमान इस पर आपत्ति उठाते हैं , कि नही भाई ऐसा नहीं है ,और आइये हम लोग सिर्फ अपनी न सोच मुल्क के सेक्युलर फैब्रिक को मजबूत करें ।
बिल्कुल विषाद उठता है हृदय में । और कौम की ऐसी ही कारगुज़ारियों से हम कट्टर सेक्युलर लोग कमज़ोर होकर कम सेक्युलर हो रहे हैं । और जो कम सेक्युलर हैं वह हिंदूवादी खेमे में हो लें तो किमाश्चर्यम ! फिर हमारी ताक़त क्या रहेगी ? क्या सिर्फ आप लोग भारत की धर्मनिरपेक्षता को चलाएँगे और संभालेंगे ? बहरहाल,
अभी तो यह कट्टर नास्तिक सेक्युलर का पोस्ट है ।
व्यक्ति-जन वाद
व्यक्ति व्यवस्था परिवर्तन की बात कर रहा है । समस्या यह है कि व्यक्ति विश्वसनीय नहीं रह गया है ।
(The Individualist, व्यक्ति-जन वादी)