शुक्रवार, 22 सितंबर 2017

Comment on वज़ाहत post

सब कुछ सही , नीयत दुरुस्त ! लेकिन तरीका गलत हो जाता है । जिससे हम Seculars की बड़ी फ़ज़ीहत हो जाती है । बड़ी बड़ी सेक्युलर मुस्लिम हस्तियाँ अपने आपको पहले तो " मुसलमान " होना बताने से नहीं चूकतीं (हम हिन्दू तो लगभग उसे नकारकर मैदान में आते हैं,और उनकी गालियाँ खाते हैं । क्या पता है आपको कि अब सेक्यूलर शब्द ही हिन्दुस्तान एक गाली के रूप में तब्दील हो गया है ? ) , तब ,अपनी उपलब्धियाँ, खासियतें बयान करती हैं और फिर अंत में सारे मुसलमानों से उसे सम्बद्ध कर देती हैं । मानो सारी असुविधाएँ उन्हें हैं और कौम में तो कोई कमी ही नहीं है !
एक हादसा कुछेक साल पहले हुआ था । शबाना आज़मी ऐसी सर्वमान्य हस्ती हैं कि कहीं भी जाएँ उनका स्वागत सम्मान होता है । लेकिन बयान - उन्हें मकान (शायद मुम्बई, जुहू में ) इसलिए नहीं मिला क्योंकि वह मुसलमान हैं । बात दीगर कि उन्हें लखनऊ में क्रीम स्थान पर कैफ़ी आज़मी ट्रस्ट को शासन की और से खासी ज़मीन और फण्ड मुहैया कराया गया । (गरीब मुसलमान से इससे क्या लेना देना ? फिर भी ) ।
मैं इस angle, नजरिया और मौकापरस्ती का पुरज़ोर विरोध करता हूँ । हम खूब लानत मलामत सहते हैं , और आप हैं कि  मलाई खाकर खिसक लेते हैं । ऊपर से तोहमत भी हिंदुस्तान के माथे पर जड़ देते हैं ! याद नहीँ कितने दानिश्वर मुसलमान इस पर आपत्ति उठाते हैं , कि नही भाई ऐसा नहीं है ,और आइये हम लोग सिर्फ अपनी न सोच मुल्क के सेक्युलर फैब्रिक को मजबूत करें ।
बिल्कुल विषाद उठता है हृदय में । और कौम की ऐसी ही कारगुज़ारियों से हम कट्टर सेक्युलर लोग कमज़ोर होकर कम सेक्युलर हो रहे हैं । और जो कम सेक्युलर हैं वह हिंदूवादी खेमे में हो लें तो किमाश्चर्यम ! फिर हमारी ताक़त क्या रहेगी ? क्या सिर्फ आप लोग भारत की धर्मनिरपेक्षता को चलाएँगे और संभालेंगे ? बहरहाल,
अभी तो यह कट्टर नास्तिक सेक्युलर का पोस्ट है ।

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