उग्रनाथ'नागरिक'(1946, बस्ती) का संपूर्ण सृजनात्मक एवं संरचनात्मक संसार | अध्यात्म,धर्म और राज्य के संबंध में साहित्य,विचार,योजनाएँ एवं कार्यक्रम @
दिये जलाते पटाखे फोड़ते हैं मीठा खाते हैं बस यही दीवाली यही दीपावली है । (टांका)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें