रविवार, 27 सितंबर 2015

इस्लामी manrega


इस्लामी प्रोटीन गारण्टी योजना :-

बकरीद पर बातें तो बहुत हुईं, लेकिन जितनी ऊँचाई पर इसे बुद्धि से सोचा जाना था और जितनी गहराई में इस पर हृदय से विचार किया जाना चाहिए , वह न हो सका । और अधिकाँश वार्ता सतही तर्क और हिंसा अहिंसा की भावना आधारित बात हिन्दू मुसलमान होकर रह गयी ।
कहाँ से बात शुरू की जाय ? पहला सवाल यह उठता है कि इतने बकरे कटे वह सब, मतलब उनका मांस गया कहाँ ? कुछ भी गंगा, गोमती, घाघरा में तो विसर्जित करके उसे प्रदूषित तो नहीं किया गया । तो मतलब, सारा पदार्थ मनुष्य का भोजन बना, उसके उदर में गया और वह प्रोटीन प्रदान कर उसके संपोषण में काम आया । उनका चमड़ा और बाल सबका उपयोग ही हुआ | तो आगे :-
ठीक है, यदि आप शाकाहारी हैं तो कोई आप का आदर है, और आप इसे कितना भी धिक्कारें, हमें स्वीकार है | लेकिन यदि आप माँसाहारी हैं तो बकरीद के दिन भी इसे खाने में, ईदुज्जुहा मनाने में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए ।
लेकिन, ऐतराज़ क्या हैं ? प्रथम तो जीव हत्या को एक उत्सव मनाना । प्रथमदृष्ट्या बात तो सही है, और आगामी मुस्लिम पीढ़ी निश्चय ही इसका विकल्प लाएगी | क्योंकि जिस तरह दुनिया में शाकाहार ही ओर झुकाव हो रहा है, और इसकी मान्यता बढ़ रही है, तो इस्लाम भी उससे अछूता न रहेगा | और जब मांसाहार ही न होगा तो कहे की जीवहत्या ? लेकिन अभी तो वस्तुतः यदि समग्रता में देखें तो बकरीदी हिंसा का विरोध एक सरलीकरण भर है | और इसके लिए हम सब माँसाहारी दोषी हैं | फिर इसके लिए मुसलमानों का जलीलीकरण तो बिल्कुल ही गलत ।
अब इसका दूसरा पहलु देखें | अर्थशास्त्री गुणा भाग करके बता सकते हैं कि भारत के मांसाहारियों के प्रति यूनिट प्रोटीन की मात्रा और उसके लिए आवश्यक मांस की ज़रूरत से बहुत कम ही ठहरेगा वह मांस जो बकरीद के दिन उपलब्ध हुआ । और बकरीद के दिन जितने बकरे कटे उनकी संख्या साल के बाकी दिनों में ज़िब्ह किये जानवरों की कुल संख्या से बहुत कम ही होगी ।
तो फिर परेशानी क्या है ? मैंने पहले ही अर्ज़ किया कि यह बात तब के लिए है जब मांसाहार का सेवन चल रहा है और यह किसी जाति संप्रदाय तक सीमित नहीं । मांसाहार के ही विरोध में आप हों तो आपका स्वागत है । वरना यह तो सम्भव नहीं कि बकरा भी न कटे और आपको मटन बिरयानी मिल जाए ? अब आप यदि इसे उत्सव बनाने के विरोध में हैं, तो भी हम आपके साथ हैं । लेकिन तब इस इस्लामी धार्मिक उत्सव के साथ अन्य धार्मिक उत्सवों पर भी प्रश्न उठाना होगा । आप selective नहीं हो सकते, और आप यह भी नहीं कह सकते कि शेष सारे त्योहार तो बड़े शुभ शुभ और आलोचना से परे हैं । मैं यह भी कहकर अपना हाथ नहीं फंसाने वाला कि होली के दिन गुझिया ही क्यों बनती है, और इसी दिन मांस की दुकानों पर अहिंसक सांस्कृतिक राष्ट्रवादियों की भीड़ बढ़ क्यों जाती है ? आखिर, वे बकरे भी बकरे होते हैं, और कुर्रेशी साहब उन्हें भी कलमा पढ़कर उसी विधि-प्रकार से ज़िबह हलाल करते हैं, जैसे बकरीद में | झटका का मांस मुसलमान न खाता है, न बेचता है | आपत्ति ज्यादा जोरदार हो, तो कुछ कष्ट कीजिये, थोड़ा खुद ज़हमत उठाइए | झटका काटिए, झटका मांस की दुकानों से सामान खरीदिये, तो हलाल का व्यवसाय-व्यापार का सूचकांक वैसे ही गिर जायगा |
अब आगे यदि आप कहें कि लोग हिन्दू मुसलमान हैं ही क्यों, तब तो आपका हार्दिक अभिनंदन है | और कहीं आप यह कह दें कि चूँकि सारे ही धर्म किसी न किसी ईश्वर आधारित हैं इसलिए ईश्वर को ही ख़ारिज किया जाना चाहिए , तब तो हम आपके चरण चूमने वाले हैं । लेकिन कहिये तो जनाब !- श्रीमान !
लेकिन तब तक आप इसे यूँ क्यूँ न समझें कि मानो यह सरकारी "मनरेगा" सरीखा कोई असरकारी प्रोटीन गारन्टी योजना-उत्सव हो ! जिसमे लगभग प्रत्येक मांसाहारी को थोड़ा मांस मिलना सुनिश्चित हो जाता है | बलिदानी बकरे का मांस बाँटने की एक ख़ास व्यवस्था इस्लाम में है | सब कोई एक परिवार ही हजम नहीं कर सकता | अतार्किक सांप्रदायिक आलोचना उचित नहीं है |आप देखें तो इस दिवस तमाम गरीब मुसलमानों, वंचितों, भिक्षुकों को जो इसे afford नहीं कर सकते उन्हें भी मांस का स्वाद चखने को मिल जाता है | और गोबध विरोधी मांसाहारी चुटियाधारी पंडित जी भी इस दिन अपने मुस्लिम मित्रों के घर इसे छककर खा पाते हैं, जिनके घरों में इसका सेवन प्रतिबंधित होता है !
तो चिंता होली दीवाली ईद बकरीद की मत कीजिये | ये तो आ आकर चले जाने के लिए होते हैं | करना हो तो कीजिये मांस के खपत के उस परिमाण पर जो रोजाना घर-घरों में और प्रेस क्लब के बगल में दस्तारख्वानों पर होता है |

सोमवार, 17 अगस्त 2015

Hindi Atheist - 8 , August,15 / 2015 Issue


Hindi Atheist - 8 , August,15 / 2015 Issue
Email weekly magazine : by - Ugra Nath @ Lucknow, U.P. (India)
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Title - संबंधों का विकास ही सभ्यता है !
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1  - अद्भुत साहचर्य है दोनो धर्मों के बीच यहाँ !
यहाँ का हिंदुत्व मुसलमानों को इस्लाम में कोई परिवर्तन नहीं होने देगा ।
यहाँ का इस्लाम हिंदुओं में कोई सुधार नहीं होने देगा ।
कुछ भी कहिये तो
मुसलमान कहेगा हिंदुओं को संभालिये ,
कोई तरक्की की बात कहो तो
हिन्दू कहेगा हमको कहते हो
ज़रा उनसे भी कहकर देखो !

2 - माना जाना चाहिए कि मैं एक अजीब आदमी हूँ | अजीब का मतलब अजीब ही , अद्भुत और अनोखा नहीं |
मेरा अजीबपन आज इससे प्रकट होता है कि कहाँ तो मुझे उलझनों को सुलझाना चाहिए , और कहाँ मै सुलझी हुई बातों को उलझाता फिरता हूँ |
यथा , बिल्कुल सुलझी हुई बात है कि जानने को ज्ञान कहते हैं , न जानने को अज्ञान ! लेकिन नहीं , मैं कहना चाहता हूँ - न जानना ज्यादा बड़ा ज्ञान है , और जानना सबसे बड़ा अज्ञान |
उदहारण , ईश्वर को जानना ज्ञान होना चाहिए | Stop please ! यह सबसे बड़ा अज्ञानता का लक्षण है | जो जितना ही कहता है कि वह ईश्वर को जितना ज्यादा जानता है , वह उतना ही बड़ा अहंकारी और अज्ञानी है | मिथ्यावादी , असत्यवादी |
दूसरी तरफ वह कथित अज्ञानी है जो ईश्वर को नही जानता , और जाने बगैर उसे मानने से इन्कार करता है , मतलब नास्तिक है , वह बहुत बड़ा ज्ञानी है |
अतएव ,
नास्तिकता ज्ञान का स्वरुप है , आस्तिकता घोर अज्ञान है !
है न अजीब बात ? और अजीब बात हम करते हैं !

3 - एक युवा मित्र ने मित्रता निवेदन के साथ inbox में जो लिखा वह इतना स्वच्छ , स्पष्ट और ईमानदार था कि उसने मुझे अभिभूत कर दिया | सहर्ष , सप्रेम उन्हें मित्र बनाया | किसी ने ऐसा बोलने का साहस तो किया !
नाम बताने में कोई हर्ज़ नहीं है , न इसमें उनका अपमान | मुस्लिम नामधारी हैं - जनाब शफीक उर रहमान खां | वह लिखते हैं :-
" वैसे धार्मिक तौर तौर पर घोर नास्तिक हूँ मगर खान पान और रहन सहन में थोड़ा कल्चरल बायस आ ही जाता है | बाक़ी राजनीतिक तौर पर मुसलमान होना सच में मज़बूरी है | "
कितनी सच्ची बात की भाई ने, दिल खोलकर !
यह मज़बूरी हमारी और शायद सबकी है , भले वह सम्पूर्ण नास्तिक हैं | हम विवश हैं / हो जाते हैं / हो रहे हैं हिन्दू मुसलमान होने के लिए | यह विवशता तोड़ें , इस पर तो बाद में चर्चा करेंगे | अविलम्ब हमें यह मानना चाहिए कि हम बहुत बड़ी गलती पर हैं जो मुसलमान को मुसलमान और हिन्दू को हिन्दू मान लेते हैं ( मात्र नाम देखकर ही , यह बात अभी अलग रखें तो भी ! वह भी एक विवशता है उसकी ) |
और एक बार यह संदेह मन में बैठ जाय कि हिन्दू मुस्लिम नामधारी व्यक्ति बिल्कुल ज़रूरी नहीं कि हिन्दू मुसलमान हो ही , तो हमारा आधा काम पूरा हो जाय | समझें कि हिन्दू मुसलमान होना एक राजनीतिक मजबूरी भी है व्यक्ति की , वह वहाँ स्वेच्छा से नहीं है , और वह वहां खुश नहीं है |
बाकी रही बात राजनीतिक तौर पर हिन्दू मुसलमान होने की मज़बूरी मिटाने की
, तो वह भी हो जायगा जब ऐसे ऐसे सत्यनिष्ठ जन खुले दिल से , परस्पर प्यार और विश्वास का भाव लेकर एक साथ बैठेंगे | और इसका उपाय तो है , यह हम अच्छी तरह जानते हैं | याद है न वह आप्त वचन - यदि हम जान जायँ कि हम गुलाम हैं , तो हमारी गुलामी आधी समाप्त हो जाती है ?

4 - Islam is the way .
इस पोस्ट पर भाई कुछ भड़केंगे , यदि मैं कहूँ कि सारे रास्ते इस्लाम से होकर गुज़रते हैं | लेकिन यह एक निष्पक्ष विवेचन है |
जब भी आप कोई काम करेंगे , आपको इस्लाम का रास्ता अपनाना पड़ेगा | एक संगठन बनाइये , तो सबक लीजये इससे | वही सख्ती , वही निष्ठां , वही दृढ़ता दरकार होगी | इस्लाम की सांगठनिक गुणवत्ता और प्रबंधन से सभी परिचित है | पाँच वक़्त नमाज़ , जुम्मे की नमाज , ईद बकरीद और दिवंगतों के लिए त्यौहार , बुजुर्गों के प्रति उनकी भावना और व्यवहार , हिफाजत की व्यवस्था कि कुरआन कि सारी प्रतियां नष्ट हो जायँ और एक भी हाफ़िज़ जिंदा बचे तो हुबहू कुरान लिख ली जाय | इत्यादि -- सब अनुकरणीय ही नहीं श्लाघ्य है इनकी व्यवस्था | क्या समझते हैं सब ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए है ? जी नहीं , सब इस ज़िंदगी के लिए है , बिल्कुल practical , और दूरदर्शी , जिसका परिणाम हम देख रहे हैं |
यहाँ तक कि जिनकी कठोर आलोचना की जाती है , उन कथित इस्लामी अवगुणों को वही लोग अपनाते भी है | कुछ अपनी ओर से समीक्षा कीजिये | जिस हिंसकता , आक्रामकता , जड़ता का हम विरोध करते हैं , अपनी परी आने पर हम उन्ही को अपनाने की वकालत भी करते है | किसी भी हिन्दू मानस और संगठन को देख लीजिये | क्या वह वस्तुतः Hinduist है ? क्या वह इस्लामियत से वंचित है ? कह दें तो कटु हो जायगा , हिन्दू कि रक्षा के लिए बना ( अब तो एक अलग धर्म ) को वही तलवार उठाना पड़ा , जिसके लिए उनका आरोप था कि तलवार के बल पर इस्लाम फैला |
हम कोई आपत्ति नहीं कर रहे हैं | वह तो करना ही पड़ेगा | लेकिन कहना यह है कि फर्क कहाँ रहा ? क्या हम परोक्ष islamist नहीं हुए ? इसे स्वीकार करने में क्या हर्ज़ ? भय बिन प्रीत को चाहे हिन्दू नीति कहिये चाहे मुसलमान | जब भी आप कुछ निष्ठापूर्वक कुछ करने पर उतारू होंगे , आपको उसी रास्ते पर जाना होगा जिसे आप कहते हैं यह इस्लाम का दूषित और गलत रास्ता है | यूँ केवल हवाई बात करके आत्मसंतोष प्राप्त करना हो तो अवश्य गर्व से कहो हम हिन्दू हैं | निश्चयतः , हिन्दू जीवन का एक मार्ग है / होगा, लेकिन वह बचेगा कैसे ?

5 - जो भी जन इस मानसिकता से ग्रस्त होंगे कि हिन्दू मेरा धर्म है, इस्लाम उनका धर्म है ( or vice versa ) वह मेरी बात समझ , पचा नहीं पायेंगे | बहतर होगा वह चुपचाप उसे पढ़ लें | अनावश्यक टिप्पणी करके उसे बरबाद न करें |

6 - समरथ को नहिं दोष गुसाईँ
यह तो समझ में आती है जनता कि मजबूरी कि वह शक्तिशाली , बाहुबली , धनबली के समक्ष झुकता है | लेकिन ईश्वर के आगे क्या नाक रगड़ना जो अशक्त है , शक्तिहीन है ? उसका कोई वश चलता तो नहीं दीखता !

7 - मान लीजिये कोई पुलिस वाला या प्रशासक या न्याधिकारी राधे माँ का भक्त हुआ , तो वह उनके खिलाफ जांच क्या करेगा ? सज़ा क्या दिलाएगा ?

8 - मैं कभी कभी ब्राह्मणवाद को श्रेष्ठता का मार्ग , भले थोड़ा अहंकार मिश्रित , समझता हूँ | और उसमें कोई बुराई न मान सबसे कहता हूँ कि ब्राह्मण बनो | लेकिन , लगता है ऐसा है नहीं | यह केवल श्रेष्ठता के दंभ से ग्रस्त / पीड़ित होने की भावना नहीं है | इसका मूल है , मनुष्यों के बीच विभाजन , श्रेणीबद्धता | और वह भी जन्मजात अर्जित | भले कहते हैं कि कोई भी अपने कर्मों से ब्राह्मण या शुद्र बन सकता है , लेकिन इसके उदहारण तो सामने आये नहीं | तो ऊँच नीच का तफरका , भेदभाव और इसकी शास्त्रीय मान्यता , स्वीकार्यता इसकी असली परिभाषा है |
अब यह बात तो खैर गलत है ही !

9 - बात में दम है कि धर्म निजी मामला है |
secularism की परिभाषा का मूल प्रस्थान बिंदु है | किसी भी seminar में पहले इसका अर्थ " इह्लौकिकता, this worldly " के बाद यही कहा जाता है कि Religion is a personal matter .
इसकी व्याख्या अधिक न कर मुझे जो एक आसान उदहारण इसके समर्थन में मिला , उसे बताना चाहता हूँ |
मान लीजिये आप या मैं ईसाई हैं , या ईसाईयत से प्रभावित हैं | तो अपनी इस धार्मिक भावना और आस्था को दिल में छिपाकर ही रखना श्रेयस्कर होगा | क्योंकि यदि लोग जान जायेंगे कि आप ईसाई हैं तो वह इसका नाजायज़ फायदा उठाएंगे | आपको तंग करेंगे , क्योंकि उन्हें पता होगा कि आपतो उन्हें क्षमा ही करेंगे |
याद कीजिये ईसाई स्टेन्स को जीप में जलने वाली घटना | और उसके बाद उनकी ईसाई पत्नी ने जो कहा _ " हे ईश्वर इन्हें क्षमा करना , क्योंकि इन्हें नहीं पता ये क्या कर रहे हैं | "

10 - अभी हमारी एक महिला मित्र की बेटियों को आशीर्वाद देने के लिए एक कमेन्ट आया जनाब Mazhar Mudassir जी का :- " बेशक।अल्लाह सलामत रखें | "
है कोई इसके टक्कर की शुभकामना हम नास्तिकों के पास ?
होनी चाहिए | ईश्वर - अल्लाह की इतनी / इसलिए तो उपस्थिति होनी चाहिए !
आखिर ये मनुष्य के आविष्कार हैं |

11  - तो क्या निकट भविष्य में हिन्दू और मुसलमान की परिभाषा यह होने जा रही है , कि जो अल्लाह का नाम लेकर शुभकामना ( नमाज़ नहीं ) करे वह मुसलमान , और जो ईश्वर का नाम बोलकर आशीर्वाद ( पूजा नहीं ) दे वह हिन्दू ?
( मात्र यही अंतर रह जायगा सभ्य शिक्षित हिन्दू मुसलमान में ? )

12 - ( feeling depressed )   ऐसी स्थिति में मन में विचार आता है कि कोई तलवार लेकर अपना धर्म फ़ैलाने आये , या तोप चलाकर अपना साम्राज्य बढ़ाए ( like Islam & British, as it is said ) , उसका विरोध भी हिंसा है | क्योंकि वह भी मारकाट, खूनखराबा और युद्ध का कारण बनता है | अन्याय को थोड़ा सह जाना शांति में सहायक होता है | खींचते खींचते यह बात वहाँ तक पहुँचती है कि यदि न्याय का व्यवहार होता रहे तो अशांति और हिंसा की नौबत न आये !
यदि कौरव पाण्डवों को उनका  हिस्सा दे देते , तो क्या महाभारत बच न जाता ?


13 (a) - थोड़ा सा नमक रहने दो
थोड़ा सा शक्कर ,
थोड़ी नास्तिकता , तो
थोड़ा सा ईश्वर !

13 (b) - शायद ऐसा हो
कि ईश्वर मर जाए
और उसके चरणचिन्ह
रह जाएँ !
( feeling suspicious )

13 (c) - बच्चन का एक प्यारा गीत है हिंदी में =
पूछ मत आराध्य कैसा जब कि पूजा भाव उमड़े ,
मृत्तिका के पात्र से कह दे कि तू भगवान बन जा ।
आज तू इंसान बन जा ।

13 (d ) - ( The end ) = अंधविश्वासी भारत को राधे माँ से अच्छी माँ मिल ही कैसे सकती है ?

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Honestly yours'
ugranath

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मंगलवार, 11 अगस्त 2015

Hindi Atheist - 7 , August,8 / 2015 Issue

Hindi Atheist  - 7 , August,8 / 2015  Issue   
Weekly : by , Ugra Nath @ Lko
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Title - सबका मालिक फेक Fake है ।
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1 - सबका मालिक फेक ( Fake ) है ।
( इसे बार बार दुहराना पड़ेगा , इसका परचा छपवाकर बाँटना होगा, इसका sticker जगह जगह चिपकाना होगा , इसका glow sign board लगाना होगा । )
1 ( b ) - अपना तो है बस यह टेक , 
ऊपर वाला बिल्कुल FAKE !

2 - पता नहीं क्यों मैं अप्रिय बातें बोल जाता हूँ । मैं अपने को रोक नहीं पाता उन्हें लिखने से , क्योंकि वे सत्य के बहुत निकट होती हैं । 
मैं सोच रहा था कि इस्लाम की आलोचना करने वाला व्यक्ति आस्तिक नहीं हो सकता । ऐसा इसलिए कि ईश्वर के प्रति उनका अडिग विश्वास अपरिमित है और उस पर संदेह नहीं किया जा सकता, प्रश्न चिन्ह नहीं उठाया जा सकता ।
आप अब इस पर अगर मगर, किन्तु परंतु, if and but मत ठोंकिए । मैं विशुद्ध आस्था की बात कर है, जो मुसलमान में अल्लाह के प्रति अविच्छिन्न है |

3 - आप क्यों परेशान हैं मित्र ! मारे तो secular जा रहे हैं । अब उनकी सेकुलरवाद की परिभाषा और समझ भारतीय संस्कृतिवादी जानने की कोशिश न करें । आप नहीं पचा पाएँगे , उनकी छीछालेदर करना आप अवश्य जानते हैं। लेकिन यह तो जान लें कि उन्हीं सेकुलरों ( ज़ाहिर है, यहाँ वह हिंदुत्व की आलोचना करते होंगे ) को भारत में फेकुलर कहा जाता है । अब बांगला देश में दूसरा फेकुलर मारा गया तो भले टेसू बहा लें। वरना सेकुलर और नास्तिक यहाँ भी गरियाये जा रहे हैं । Rationalist की हत्या यहाँ भी हो रही है । डॉ नरेंद्र डाभोलकर हिन्दुस्तान के ही निवासी थे ।

4 - एक भाई बिल्कुल सही कहते हैं । आलोचना करोगे तो अध्ययन तो होगा !
सचमुच इधर भारतीय संस्कृति ने क़ुरआन की तिलावत बड़ी मशक्कत से की ।

5 - माना जाना चाहिए कि मैं एक अजीब आदमी हूँ | अजीब का मतलब अजीब ही , अद्भुत और अनोखा नहीं | 
मेरा अजीबपन आज इससे प्रकट होता है कि कहाँ तो मुझे उलझनों को सुलझाना चाहिए , और कहाँ मै सुलझी हुई बातों को उलझाता फिरता हूँ | 
यथा , बिल्कुल सुलझी हुई बात है कि जानने को ज्ञान कहते हैं , न जानने को अज्ञान ! लेकिन नहीं , मैं कहना चाहता हूँ - न जानना ज्यादा बड़ा ज्ञान है , और जानना सबसे बड़ा अज्ञान |
उदहारण , ईश्वर को जानना ज्ञान होना चाहिए | Stop please ! यह सबसे बड़ा अज्ञानता का लक्षण है | जो जितना ही कहता है कि वह ईश्वर को जितना ज्यादा जानता है , वह उतना ही बड़ा अहंकारी और अज्ञानी है | मिथ्यावादी , असत्यवादी |
दूसरी तरफ वह कथित अज्ञानी है जो ईश्वर को नही जानता , और जाने बगैर उसे मानने से इन्कार करता है , मतलब नास्तिक है , वह बहुत बड़ा ज्ञानी है |
अतएव ,
नास्तिकता ज्ञान का स्वरुप है , आस्तिकता घोर अज्ञान है !
है न अजीब बात ? और अजीब बात हम करते हैं !

6 - एक युवा मित्र ने मित्रता निवेदन के साथ inbox में जो लिखा वह इतना स्वच्छ , स्पष्ट और ईमानदार था कि उसने मुझे अभिभूत कर दिया | सहर्ष , सप्रेम उन्हें मित्र बनाया | किसी ने ऐसा बोलने का साहस तो किया ! 
नाम बताने में कोई हर्ज़ नहीं है , न इसमें उनका अपमान | मुस्लिम नामधारी हैं - जनाब शफीक उर रहमान खां | वह लिखते हैं :-
" वैसे धार्मिक तौर तौर पर घोर नास्तिक हूँ मगर खान पान और रहन सहन में थोड़ा कल्चरल बायस आ ही जाता है | बाक़ी राजनीतिक तौर पर मुसलमान होना सच में मज़बूरी है | "
कितनी सच्ची बात की भाई ने, दिल खोलकर !
यह मज़बूरी हमारी और शायद सबकी है , भले वह सम्पूर्ण नास्तिक हैं | हम विवश हैं / हो जाते हैं / हो रहे हैं हिन्दू मुसलमान होने के लिए | यह विवशता तोड़ें , इस पर तो बाद में चर्चा करेंगे | अविलम्ब हमें यह मानना चाहिए कि हम बहुत बड़ी गलती हैं जो मुसलमान को मुसलमान और हिन्दू को मान लेते हैं ( मात्र नाम देखकर ही , यह बात अभी अलग रखें तो भी ! वह भी एक विवशता है उसकी ) | और एक बार यह संदेह मन में बैठ जाय कि हिन्दू मुस्लिम नामधारी व्यक्ति बिल्कुल ज़रूरी नहीं कि हिन्दू मुसलमान हो ही , तो हमारा आधा काम पूरा हो जाय | समझें कि हिन्दू मुसलमान होना एक राजनीतिक मजबूरी भी है व्यक्ति की , वह वहाँ स्वेच्छा से नहीं है , और वह वहां खुश नहीं है |
बाकी रही बात राजनीतिक तौर पर हिन्दू मुसलमान होने कि मज़बूरी मिटाने की
, तो वह भी हो जायगा जब ऐसे ऐसे सत्यनिष्ठ जन खुले दिल से , परस्पर प्यार और विश्वास का भाव लेकर एक साथ बैठेंगे | और इसका उपाय तो है , यह हम अच्छी तरह जानते हैं | याद है न वह आप्त वचन - यदि हम जान जायँ कि हम गुलाम हैं , तो हमारी गुलामी आधी समाप्त हो जाती है ?
तो , जय हो शफीक भाई की , और ऐसे समस्त नास्तिकों की , उनकी तमाम विवशताओं के बावजूद !

7 - Islam is the way .
इस पोस्ट पर भाई कुछ भड़केंगे , यदि मैं कहूँ कि सारे रास्ते इस्लाम से होकर गुज़रते हैं | लेकिन यह एक निष्पक्ष विवेचन है |
जब भी आप कोई काम करेंगे , आपको इस्लाम का रास्ता अपनाना पड़ेगा | एक संगठन बनाइये , तो सबक लीजये इससे | वही सख्ती , वही निष्ठां , वही दृढ़ता दरकार होगी | इस्लाम की सांगठनिक गुणवत्ता और प्रबंधन से सभी परिचित है | पाँच वक़्त नमाज़ , जुम्मे की नमाज , ईद बकरीद और दिवंगतों के लिए त्यौहार , बुजुर्गों के प्रति उनकी भावना और व्यवहार , हिफाजत की व्यवस्था कि कुरआन कि सारी प्रतियां नष्ट हो जायँ और एक भी हाफ़िज़ जिंदा बचे तो हुबहू कुरान लिख ली जाय | इत्यादि -- सब अनुकरणीय ही नहीं श्लाघ्य है इनकी व्यवस्था | क्या समझते हैं सब ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए है ? जी नहीं , सब इस ज़िंदगी के लिए है , बिल्कुल practical , और दूरदर्शी , जिसका परिणाम हम देख रहे हैं |
यहाँ तक कि जिनकी कठोर आलोचना की जाती है , उन कथित इस्लामी अवगुणों को वही लोग अपनाते भी है | कुछ अपनी ओर से समीक्षा कीजिये | जिस हिंसकता , आक्रामकता , जड़ता का हम विरोध करते हैं , अपनी परी आने पर हम उन्ही को अपनाने की वकालत भी करते है | किसी भी हिन्दू मानस और संगठन को देख लीजिये | क्या वह वस्तुतः Hinduist है ? क्या वह इस्लामियत से वंचित है ? कह दें तो कटु हो जायगा , हिन्दू कि रक्षा के लिए बना ( अब तो एक अलग धर्म ) को वही तलवार उठाना पड़ा , जिसके लिए उनका आरोप था कि तलवार के बल पर इस्लाम फैला |
हम कोई आपत्ति नहीं कर रहे हैं | वह तो करना ही पड़ेगा | लेकिन कहना यह है कि फर्क कहाँ रहा ? क्या हम परोक्ष islamist नहीं हुए ? इसे स्वीकार करने में क्या हर्ज़ ? भय बिन प्रीत को चाहे हिन्दू नीति कहिये चाहे मुसलमान | जब भी आप कुछ निष्ठापूर्वक कुछ करने पर उतारू होंगे , आपको उसी रास्ते पर जाना होगा जिसे आप कहते हैं यह इस्लाम का दूषित और गलत रास्ता है | यूँ केवल हवाई बात करके आत्मसंतोष प्राप्त करना हो तो अवश्य गर्व से कहो हम हिन्दू हैं | निश्चयतः , हिन्दू जीवन का एक मार्ग है / होगा, लेकिन वह बचेगा कैसे ?

8 - समरथ को नहिं दोष गुसाईँ 
यह तो समझ में आती है जनता कि मजबूरी कि वह शक्तिशाली , बाहुबली , धनबली के समक्ष झुकता है | लेकिन ईश्वर के आगे क्या नाक रगड़ना जो अशक्त है , शक्तिहीन है ? उसका कोई वश चलता तो नहीं दीखता !

9 - मान लीजिये कोई पुलिस वाला या प्रशासक या न्याधिकारी राधे माँ का भक्त हुआ , तो वह उनके खिलाफ जांच क्या करेगा ? सज़ा क्या दिलाएगा ?

10 - मैं कभी कभी ब्राह्मणवाद को श्रेष्ठता का मार्ग , भले थोड़ा अहंकार मिश्रित , समझता हूँ | और उसमें कोई बुराई न मान सबसे कहता हूँ कि ब्राह्मण बनो | लेकिन , लगता है ऐसा है नहीं | यह केवल श्रेष्ठता के दंभ से ग्रस्त / पीड़ित होने की भावना नहीं है | इसका मूल है , मनुष्यों के बीच विभाजन , श्रेणीबद्धता | और वह भी जन्मजात अर्जित | भले कहते हैं कि कोई भी अपने कर्मों से ब्राह्मण या शुद्र बन सकता है , लेकिन इसके उदहारण तो सामने आये नहीं | तो ऊँच नीच का तफरका , भेदभाव और इसकी शास्त्रीय मान्यता , स्वीकार्यता इसकी असली परिभाषा है |
अब यह बात तो खैर गलत है ही !

11 - नये सिरे से 
विचार करना है 
स्थितियों पर !

12 - पैर छुएँ या न छुएँ, मेरा इस पर कहना यह है कि पैर कोई गन्दा अंग नहीं है , किसी का भी !

13 - ( Last )  बात में दम मुझे भी लगता है । हिन्दू अवश्य ही उदार हैं । मुसलमानों के प्रति तो और भी ज़्यादा । देखिये मांसाहार ये इसीलिए करते हैं , और इसमें सुना कि ब्राह्मण कौम का महती योगदान है । जिससे चिकवा ( कुर्रेशी ) मुसलमानों की आमदनी बढ़े , उनकी माली हालत सुधरे । वरना भला वे मांसाहार करते !

Honestly your's ,


उग्रनाथ 

नागरिक Facebook 6 / 7 / 2015 to 6 / 8 / 2015

नागरिक Facebook  6 / 7 / 2015   to  6 / 8 / 2015

( कविता )
~~~~~~~
साधु अपना काम करता है 
मैं अपना काम करता हूँ ,
वह मुझे बार बार 
पानी से बाहर निकालता है
मैं उसे बार बार डंक मरता हूँ ,
साधु अपना काम करता है
मैं अपना काम करता हूँ |
*******


आगाह कर रहा हूँ । चेतावनी समझ लीजिये । राष्ट्रभक्ति को इंसानियत का पैमाना न बनाइएगा ! जानते हैं, सारी दकियानूसी मज़हबी संस्थाओं ने आज़ादी की लड़ाई लड़ी । उन्हें पता था कि तब उनकी बन आएगी, वह मनमानी कर सकेंगे ! सर सैयद लोग इसे जानते थे । इसलिए आज़ादी के खिलाफ थे । वह जानते थे प्रगतिशीलता अंग्रेजी राज में सुरक्षित है, और कठमुल्लाओं पर नकेल ।

चिंताजनक न सही , चिंतनीय तो है ही यह बात कि धर्म का बयान, बखान, या परिभाषित करने का काम ज़्यादातर ब्राह्मण लोग ही क्यों करते हैं ? 
या उनसे मिलते जुलते लोग ?

जय श्री कृष्ण ! जय राधे माँ !
हिंदुस्तान में जो न हो जाय वह थोड़ा । और दुर्भाग्य यह कि यह कोई सबक नहीं लेता ।
नास्तिकता - वैज्ञानिकता तो दूर , मूर्तिपूजा ही छोड़ने की बात करो , तो देखो ये कैसे झौंझिया लेते हैं ? भारतीय संस्कृति (अज्ञानता ) पर हमला ? बिल्कुल बर्दाश्त नहीं !

छिछोरा होना एक बात है , छिछोरा दिखना और बात !
छिछोरापन , तो चलो मान लेते हैं, सभी होते हैं । लेकिन छिछोरापन अपने मन में रखो , उसे बाहर क्यों प्रदर्शित करते हो ?
जिद पकड़ लो कि तुम्हें ऐसा नहीं करना है, मन कुछ भी कहता रहे । इसलिए नहीं कि प्यार करने की स्वतंत्रता में यह नीति बाधक है , बल्कि इसलिए कि हमारे भारतीय समाज में प्यार का सर्वजनिक प्रदर्शन अच्छा नहीं माना जाता । और यह बात समझ लीजिये कि समाज में नीति अनीति की नहीं, उसके प्रति समाज की मान्यता का ज़्यादा प्रभाव होता है । इसलिए जैसा देश वैसा भेष का पालन किया ही जाना चाहिए ।
ऐसे मेरा ख्याल है । सारे सच से काम नहीं चलता । सच तो सब सुंदर नहीं , अत्यंत कुरूप भी है ।

आपकी मर्ज़ी 
आप आयें, न आएँ 
मैं बुलाऊँगा !

बुराई तो बुराई, बुराई शब्द के उदगम का आरोप भी औरत के ऊपर ? क्योंकि बुराई शब्द महिला के अंगविशेष से उद्भूत है ? 
यह तो स्त्री का सरासर अपमान है और खुलेआम, स्पष्ट ! 
इसे खोज निकाला था राजेन्द्र यादव की पत्रिका हंस ने ।
शर्मनाक !

Freelance Journalists की तरह Freelance Politicians भी तो हो सकते हैं ?

जो भी जन इस मानसिकता से ग्रस्त होंगे कि हिन्दू मेरा धर्म है, इस्लाम उनका धर्म है ( or vice versa ) वह मेरी बात समझ , पचा नहीं पायेंगे | बहतर होगा वह चुपचाप उसे पढ़ लें | अनावश्यक टिप्पणी करके उसे बरबाद न करें |

मृत्युदंड के समर्थकों की संख्या गवाह है कितना इस्लामी हैं राष्ट्रवादी हिन्दू समाज ! और उधर उनके कुछ संगठन तो कहे ही जाते हैं " तालिबान " | तालिबानियत हिन्दू चरित्र तो नहीं ही है , ऐसा हिन्दू जन ही बताते हैं | वह तो उदारचरितानाम वसुधैव कुटुम्बकम वगैरह का जाप करते हैं और PM समेत ये लोग इसे दुनिया में बखानते , आदर सत्कार पाते और विश्वगुरु का सम्मान बटोरते हैं |

( Badmesh Thinking )
सबसे बड़ा गुरु ज्ञान यह है , कि स्त्री पुरुष इकठ्ठा होते हैं , और संतान का जन्म होता है !

एक उद्धरण मैंने एक लड़के के T -Shirt पर लिखा देखा | अच्छा लगा था , तो सोचा मित्रो से साझा करूं |
" Intellectuals solve the problems , Geniuses prevent the problems . "

मेरा एक Page तो है - Bloggers ' Party - " क्यों ? Why ? "
लेकिन अभी एक पार्टी सोच रहा था -
" ख़फ़ा " Angry 
यह सटीक है , मेरे स्वभाव के अनुकूल |

आज Pelvic girdle से लेकर पैर की ऐंड़ि तक बहुत दर्द रहा । रात कराहना पड़ा । कोई दवा नहीं है इसकी । कोई safest pain killer दवा का नाम authentic जानकार मित्र सुझाएँ ।
अभी जगने पर एक युवा दिन की विडम्बना याद आई । 61-62 में इण्टर में था । गोरखपुर जुबिली टॉकीज़ के पीछे तेलियाना टोला में चारपाई की दो टाँग नाली के इस पार और दो टाँग थोड़ी सड़क पर बिछाकर सोता था । एक दिन सिरहाने रखी किताब को सुबह सुबह गाय खा गयी । SLLoney की trigonometry की थी । दुःख था नई कैसे आएगी ? चार रूपये की थी ।

मेरी एक चाह है । कामना - वासना ही कह लीजये । स्थूल जगत में तो मैं अपने मित्रों के साथ हूँ ही , इस आभासी संसार fb के भी अपने मित्रों का मैं (कम से कम कुछ के साथ तो अवश्य ही ) पूर्ण विश्वसनीय मित्र बनना चाहता हूँ । वह आँख मूँद कर मुझपर भरोसा कर सकें , उनकी अंतरतम, गुप्त से गुप्त स्वभाव और आचरणों का सुरक्षित Locker बन सकूँ , और साझीदार।
इसके लिए मुझे कौन सी परीक्षा पास करनी होगी ?

चलिए आपलोग बहुत जिद करते हैं, चिरौरी - मनुहार करते हैं , तो मैं माने लेता हूँ कि प्यार भी कोई चीज होती है ! वरना मैं तो इसे बस कामदेव महाराज का प्रताप या प्रकोप ही समझता हूँ । लेकिन इतना आसान भी नहीं है मुझसे मनवाना ! मेरी एक शर्त है । प्यार को प्यार मैं तभी मानूँगा जब वह कामेच्छा विहीन हो ! जैसे ही यौनिक कामना की दुर्गन्ध घुसी , मैं उसे प्यार नही सेक्स कहूँगा । 
Idea अच्छा है । Love is love only when it is sexless . भाई राजेन्द्र राज कहते हैं , प्यार देना सिखाता है निःस्वार्थ । अबिस बात में भी पेंच है कि दोनों पार्टी देने पर आमादा हों, तो देगा तभी तो कोई जब दूसरा उसे लेगा ? और इस लेन देन में लेना देना पूरा हो जाय ? लेकिन इसकी जिम्मेदारी राजेन्द्र राज की होगी क्योंकि यह मेरा सिद्धांत नहीं है । मेरे अनुसार Caring is love . एक दूसरे की परवाह करना प्रेम है , कोई gift दे पाएँ या न दे पाएँ !
प्रोग्राम भी अच्छा है ! इस बात और विचार को promote किया जाय कि Only sexless love is love, otherwise it is passion .
नयी पीढ़ी जो प्यार को सिर्फ डेटिंग, शारीरिक नैकट्य, फिर विवाह/ विवाहविहीन घर से पलायन समझती है , उसे कुछ दिशा मिले और प्यार कायम भी रहे ।

मैं अभी सोच रहा था 
क्या ऐसा हो सकता है कि -
हम स्वाधीनता की चाह के ही गुलाम हो जाऐं ?
कभी कभी लगता है , हम ऐसे हैं 
बहुत तंग करती है यह चाह,
इसकी वासना ,
तो यह भी गुलामी तो है ?

मैं विचारों में महान हो सकता हूँ , लेकिन रहन सहन में तो बिल्कुल नहीं !

Hindi Atheist - 6 , August,1 / 2015 Issue

Hindi Atheist  - 6 , August,1 / 2015  Issue   
Weekly : by , Ugra Nath @ Lko
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Title -  नास्तिकता को जीकर दिखाइए !
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1 - आस्तिकता नास्तिकता की बात ही मत.उठाइये । उसे जीकर दिखाइए !

2 - दीजिये फांसी , लेकिन मैं मृत्युदंड का विरोध करता हूँ | 
प्रतीतितः, इस पर गहन चिन्तन नहीं किया गया | बस एक उन्माद्वश, फाँसी दो फाँसी दो , चिल्लाये जा रहे हैं | मानो इधर फाँसी हुई और उधर अपराध समाप्त हुआ ! जबकि फर्क कुछ भी नहीं पड़ता | यह गंभीर विषय है, किसी की ज़िंदगी और मौत का सवाल है | चलिए एक दिन आप वह जल्लाद ही बनकर दिखाइए ! थोड़ा practical करके देखिये ! बड़ा त्रासद होगा यह !
2 ( b ) - एक व्यक्ति की खून के प्यासे इतने सारे लोग !
कौन हैं भाई हम लोग ?
2 ( c ) - धनञ्जय के जाने के बाद देश जिस प्रकार बलात्कार के कोढ़ से मुक्त हुआ , उसी प्रकार अब यह आतंक से मुक्त हुआ, समझो |
2 ( d ) - मुझे यदि कोई पर्याप्त गोलियां दे दे तो मैं उन तमाम मुस्लिमों को गोली मार दूँ जो अब भी ईश्वर पर यकीन करना चाहते हैं | याकूब पूरा आस्तिक था |
2 ( e ) - 
मित्रगण मुझसे निजी तौर पर नाराज़ हुए प्रतीत हो रहे हैं | वह हिन्दू भी हैं और मुसलमान भी | हम किसी के मित्र नहीं , और कोई हमारा नाजायज़ तरीके से मित्र हो , चाहते भी नहीं | हम केवल सत्य और सच्चाई के दोस्त हैं | मैं उनसे साफ़ कह दूँ कि हम सत्यनिष्ठ प्राणी हैं | जिन मूल्यों को हम जीवन का आधार बनाते हैं या जिन्हें हम उत्तम और श्रेयस्कर मानते हैं तो उसके पक्ष में हम हर तरह की दलीलें , तर्क ढूँढ ढूँढकर , आविष्कार कर सामने लाते ही रहेंगे | किसी को बुरा अवश्य लग सकता है इस अतार्किक समाज में | लेकिन आप भी तो स्वतंत्रता पूर्वक अपनी बात , विचारधारा जो मेरे विलोम में है कहते ही हैं !
तो जैसे हम मृत्युदंड के खिलाफ हैं तो हैं | कोई किंतु परन्तु , if & but , नहीं | इसी प्रकार हम ईश्वर के अनस्तित्व पर विश्वास करते हैं, तो इसका प्रचार करेंगे ही | इसे हमारे उदार, सहिष्णु मित्रों को स्वीकार करना चाहिए | बल्कि हमें ताक़त भी देनी चाहिए |
अभी एक मित्र ने अच्छी बात कही | कि यह सुविधा केवल हिन्दुस्तान में संभव है | शिरोधार्य है आपकी बात और आप द्वारा प्रदत्त यह सुविधा | अब बताइए कि यदि इस देश में भी हम इस option का लाभ न उठायें , तो हमसे ज्यादा नालायक भला कौन होगा ? आप ही बताइए !
2 ( f ) - देखा जा सकता है | देखा जाना चाहिए कि " न्याय होने " से ज्यादा " न्याय होता " दिखा / दिखाया गया |
2 ( g ) - 257 जान के बदले एक लाश ? मँहगा हुआ ।
2 ( h ) - अभी तक आपने पढ़ा :- हिन्दू जीवन जीने का एक तरीका है ।
अब आगे पढ़िए :- हिन्दू जीवन लेने का भी एक तरीका बनने जा रहा है । या यदि ना भी बन पाये तो बनने के प्रति सहमति आम होती जा रही है ।
2 ( i ) - उपसंहार = और फिर बात यह भी तो है कि मुझे अपने धर्म" के अनुसार मृत्यु दंड का विरोध तो करना ही था ! उसमें मुल्जिम के अपराध अनअपराध, एक हंता या 275 हंता होने से क्या मतलब ? यहाँ धार्मिक भावना का सवाल है न ? और आप तो जानते हैं ( आप भी तो पीड़ित होते रहते हैं जब तब ) , इसमें तर्क वितर्क, उचित अनुचित नहीं चलता !
तो अपने मजहब के अनुसार मैं राजीव गांधी के हत्यारों, दारा सिंह से लेकर धनञ्जय और वह क्या नाम है उसका जो अभी 30 जुलाई को लटकाया गया ? हाँ हाँ याकूब मेनन, सभी के capital punishment का विरोध करता हूँ ।
अच्छा , आप यह कहना चाहते हैं कि यह नास्तिकता भला कौन सा धर्म बन गया ? हा हा हा | 
आपका धर्म धर्म, और हमारा धर्म कुछ भी नहीं ?

3 - " सोच न पाना " तार्किकता के अभाव की ही तो स्थिति है ? यह तो आपको मानना ही पड़ेगा । हारे गाढ़े वक़्तों में तो ऐसा सबके साथ होता है । दिमाग काम करना उस वक़्त बन्द कर देता है । लेकिन तदुपरांत सामान्यतः भी यदि " तार्किकता के अभाव " में सोच न पाएँ , तो यह हमारी कमजोरी है ।

4 - मेरी परेशानी,मेरा संत्रास अत्यंत विकट है । जिन लोगों के बारे में आप जानते हैं कि उनका पक्षपाती हूँ , उनसे भी मेरी गंभीर असहमतियाँ हैं ।

5 - बड़े दुखी और भारी मन से आपसे एक निजी प्रार्थना करनी है, यदि इसका भी बुरा न बनाएं तो | लेकिन इसके लिए मैं आपके inbox में नहीं जा सकता | आप में से अधिकाँश तो संवेदनशील कवि भी हैं | किन्हीं स्थितियों और अनुभवों में विचरण आपके लिए कठिन न होगा | 
काफ्का की एक मशहूर कहानी है कायांतरण , जो मुझे पढ़ते समय बहुत पसंद आई थी | उसी तरह आपसे कायांतरणों, यथा पुनर्जन्मों की अपेक्षा-याचना है |
तो आप कभी पुरुष से स्त्री, स्त्री से पुरुष, पुरुष से हिन्दू, हिन्दू से पंडित, पंडित से दलित, दलित से मुसलमान, मुसलमान से ईसाई, ईसाई से अंग्रेज़, अँगरेज़ से अमरीकन, जापानी etc होकर देखिये / होते जाइए | फिर आप अपने आपसे अपने आपको लडवाइये | अपना महाभारत स्वयं अपने मन में लड़िये | तभी मैं आपके आक्रोश से बच पाऊँगा | आप ऐसा बखूबी कर सकती हैं | आखिर कहते हैं न , ब्रह्म एक ही है, वही आपमें भी है / होगा | और मैं अपने सुख के लिए आपसे निवेदन कर रहा हूँ कि इसका उत्तर मुझे न दीजियेगा | आपके बहाने यह निवेदन मेरे सारे स्त्री पुरुष मित्रो से भी हो जायगी, जो सम्प्रति मुझसे खिन्न से लगते हैं | 

6 - इस्लाम की आलोचना सभी करते हैं । लेकिन इससे सबक लेकर अपनी आस्तिकता पर भी नज़र डालना, सवालिया निशान उठाना , कोई नहीं करता !

7 - मैंने किसी हिन्दू को आध्यात्मिक हिन्दू नहीं पाया । सबके सब राजनीतिक हिन्दू मिले । दूसरी तरफ सारे नास्तिकों को आध्यात्मिक नास्तिक पाया । राजनीतिक पक्षधरता में विभिन्न मत वाले । कोई आरक्षण का समर्थक, कोई विरोधी ! लेकिन आध्यात्मिक नास्तिकता पर एकमत । 
हिन्दू , आध्यात्मिक हिन्दू तो है ही नहीं , राजनीति में भी बस एक मुद्दे पर एकमत । शेष सब स्वारथ के संगी !
दलित नास्तिक अलबत्ता आध्यात्मिक और राजनीतिक दोनों रूप से पर्याप्त एकमत हैं ।

8 - स्वार्थ में आसक्ति ही आस्तिकता है ।
और भला काहे के लिए पूजा पाठ कियेजाते हैं, जब कि इनका कोई उपयोग दैनिक जीवन में नही गई ? नास्तिक अपने पुरुषार्थ से जितना मिल जाय , बस उतना चाहता है ।
नास्तिक स्वार्थी नहीं हो सकता ।

9 - जब वह है नहीं ,
तो एक क्या, अनेक क्या ?
मूर्त क्या, अमूर्त क्या ?
वह कुछ भी हो सकता है -
एक -अनेक, नाम -अनाम ,
मूर्त - अमूर्त !
या कुछ भी नहीं हो सकता -
जब वह है ही नहीं !

10 -  ऐसी की तैसी
धार्मिक भावना की 
सब छद्म है !

11 - मुझे अपने बारे में सोचने की फुरसत ही नहीं मिलती । यही मेरी आध्यात्मिकता है ।
और, अपने बारे में सोचने से मन को हटाना मेरा ध्यान है ।

12 - देखिये , अब कहिये तो गम्भीर बात लिख दूँ ? अपनाइये " निजतावाद " , Individualism . अब यह न देखिये कि यह भी Humanism का हिस्सा है ! यह वाद तो है सारे वादों से ऊपर । आप स्वतन्त्र हैं अपना विचार स्वयं बनाने और कर्म निर्धारित करने को । यह अवश्य है कि यह आत्मवान व्यक्तियों के अधिक अनुकूल है । पुष्ट बुद्धि न होंगे तो उल्टा पुल्टा तो कर ही देंगे । यदि आत्मविश्वास न हो तो किसी वाद की छत्रछाया में पड़े रहिये । वहाँ कुछ तो अनुशासन में रहेंगे ? यहाँ तो सब अपने बल पर करना है । जिन्हें यहाँ आना हो वह खुद , निज का व्यक्तित्व बनाएँ, विकसित करें । स्वयं को sublimate , उत्तिष्ठित - जागृत -प्राप्य वरान्निबोधत करना ही व्यक्तित्ववाद, निजतावाद है । और यह उच्चतर आध्यात्मिकता है ।

13 - यह देखिये, अभी अभी आधी रात को कितनी बढ़िया बात मैंने सोची आपके लिए (यद्यपि यह भी पूर्ण बदमाशी ही है ) कि - सफल वही होगा जो विनम्र होगा, soft होगा ।
Microsoft की ही कहानी आप देख लीजिये न !

Honestly your's ,
ugranath 

Hindi Atheist - 5, July, 31 / 2015 Issue

Hindi Atheist  - 5, July, 31 / 2015  Issue   
Weekly : by , Ugra Nath @ Lko
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Title - सार सार को गहि रहे
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1 - सार सार को गहि रहे , थोथा देय उड़ाय ! =
गौर से देखिये तो यह नास्तिक ही है , जो धर्मों , धर्मग्रंथों , सत्वचनों में से काम की चीज़ ग्रहण करता है और थोथा उड़ा देता है | ऐसा करने का गुण और सामर्थ्य रखता है |
जब कि आस्तिक उन थोथों के साथ खुद ही उड़ जाता है |
2 - आस्तिक लोग ईश्वर को नहीं जानते । नास्तिक ईश्वर को जान चुका होता है ।
3 - आस्तिक होना पर्याप्त नहीं है । आपको बताना पड़ेगा - हिन्दू हैं या मुसलमान, तिवारी हैं या यादव जी, शिया या सुन्नी हैं !
नास्तिक के साथ ऐसी कोई मजबूरी नहीँ है ।
4 - ब्राह्मण को ही ब्राह्मण रहने दो , तुम न बनो ! 
देखने में आता है कि दलित भी , और पिछड़े तो खूब स्वयं और अपने बच्चों से पैर छूने की परंपरा का पालन करवाने लगे हैं ।
5 - ईश्वर को नास्तिक क्या जाने ?
तो लीजिये जवाब मित्र आदित्य निगम का =
किसी भी बात के आप विपक्ष में तभी हो सकते है जब आप उसके विषय में पूर्ण ज्ञान रखते हों ,इस कारण नास्तिक न केवल ईश्वर को जानता है अपितु भलीभांति पहचानता भी है । क्योंकि जब भी ईश्वर की बात आती है तब आस्तिकों के पास सिर्फ काल्पनिक बातों का ही सहारा शेष होता है ।
जैसे धरती को शेषनाग ने संभाला है अब आप ही बताईये क्या इक्कीसवी सदी के हम जैसे नास्तिक ..जो वैसे भी ईश्वर को नही मानते उनको इस तर्क से क्या आप आस्तिक बना सकते हैं लेकिन हम तो आपके ईश्वर को जान गये न ..---- !
6 - एक भाई ने आज हल्के में बड़ी गहरी बात कह दी |
वह मेरे एक चुहल भरे गंभीर पोस्ट पर उनका कमेन्ट था |
उन्होंने कहा - Newton के नियम apple , सेव पर लागू होते हैं , आम पर नहीं | 
कितनी सही और सूक्ष्म बात है | कोई धार्मिक नियम सारे मनुष्यों पर लागू नहीं होता | पुनर्जन्म हिन्दुओं का होता है , मुस्लिमों का नहीं | 
अच्छे कामों के लिए हूरों की व्यवस्था मुस्लिमों के लिए है , हिन्दुओं के वास्ते नहीं |
यही फर्क है विज्ञान और धर्म में | धर्म में विभाजन है , विज्ञान में एकता |
7 - नास्तिक का मतलब हम कोई चीज़ पहले से मान कर नहीं चलते | इसे बिल्कुल अविश्वास या नकारात्मक कैसे कह सकते हैं ? सारे लोग अपने जीवन में यही गुर अपनाते हैं | 
कोई आप से कह दे कि ठाकुरगंज का अपना पुश्तैनी मकान बेचकर नोयडा में फ्लैट ले लो , तो क्या आप फ़ौरन मान जायेंगे ? कोई कहे अपने बीवी बच्चों, नौकर चाकर की ठुन्कायी पिटाई किया करो तभी ये दुरुस्त रहेंगे | तो क्या आप डंडा उठा लेंगे ?
बस वही बात है | हमसे भी कोई कुछ कहता है तो सुनते हैं लेकिन प्रथम दृष्टया मान लें यह ज़रूरी नहीं | 
( इसलिए हम धर्म और ईश्वर के अवज्ञाकारी, गैरवफादार पुत्र- पुत्री कहे जाते हैं | काफ़िर, नास्तिक, वगैरह ! जैसे आजकल बूढ़े अपने पुत्रो को और सास तो अपनी बहुओं को चिरकाल से कहते आये हैं ) |
तो हम नास्तिक कहकर बदनाम किये जाते हैं | और यही काम जब आप लोग करते हो तो बुद्धिमान कहे जाते हो | " अरे भैया बहिनी बड़े होशियार हैं , सब काम सोच विचार कर करते हैं , उन्हें कोई धोखा नहीं दे सकता , कोई छल नहीं कर सकता ! "
तो यही तो हम करते हैं | नास्तिक हैं |
और आपकी सही सच्ची बात भला हम मानेंगे क्यों नहीं ? मानते ही हैं ! हम भी तुम्हारी तरह आस्तिक हैं ?
टोटल लोचा विवेकशीलता का है | और यह कोई नहीं चाहेगा कि वह, उसकी औलाद मुर्ख - अविवेकी हो , बस !
8  - Genius Spoiled
पूरा आश्चर्य करने की बात है, ( है तो हमारे लिए दुःख की बात , लेकिन हम अपनी व्यथा मन में गोय ही रखते हैं ) |
कि कितने सारे अनमोल, मूल्यवान महान बुद्धियाँ (great minds) धार्मिक किताबों और प्रवचन में अपनी प्रतिभा नष्ट कर रहे हैं !
क्या आप समझते हैं ज़ाकिर नाईक , गोविंदाचार्य वगैरह कोई मामूली हस्तियाँ हैं ?
लेकिन बस वही
Spoiled Genius !

9 - हम नास्तिक नहीं है | हम सृष्टि, सृजन, और प्रकृति के प्रति पूर्ण आस्तिक है |
लेकिन ,
आप हमें नास्तिक कहने लगे तो हम भी अपने को नास्तिक कहने लगे | फिर धीरे धीरे नास्तिक हो भी गये , और अब तो नास्तिकता पर गर्व भी करने लगे |
उसी प्रकार , जैसे 
आप हिन्दू नहीं थे | कुछ लोगों ने अपनी लडखडाती जुबान से सिन्धु को हिन्दू बोल दिया, तो आप भी अपने आप को हिन्दू कहने लगे | फिर आप हिन्दू हो भी गये | और अब तो हिन्दू होने पर गर्व भी करने लगे |
10 - श्री राम चन्द्र जी का तो नहीं जानता लेकिन ,
' जय राम जी '  कहना कतई सांप्रदायिक नहीं मानता !

कबीर ने और कुछ किया हो, न किया हो
सचमुच उनकी बातों का कोई असर तो समाज पर पड़ा दिखाई नही देता ,
न मस्जिद की अजान में कोई कमी आयी,
न मन्दिरों से मूर्तियाँ तिरोहित हुयीं
लेकिन उन्होंने धर्मान्धता के खिलाफ काम करने वालों को बड़ा सहारा दिया ,
उस बूढ़े की पीठ एक मजबूत मंच के मानिंद है
जहाँ से वह अपनी बात कह सकते हैं , आवाज़ उठा सकते हैं ,
भले उनके भजनों में राम हैं और वह रहस्यवादी आस्तिक ही हैं
लेकिन नास्तिकों को वह पूर्ण ग्राह्य हैं
और पाखण्ड विरोधियों को परम प्रिय !
कबीर , 
होते जायेंगे कबीर , कबीर और Kabir .

12 - (कहानी)
एक था कोई आदमी । मेरे जैसा ही बौड़म ।
उससे जब पूछा जाता तुम्हारा धर्म क्या है ?
तब वह बताता - " राजनीतिक ",
और जब पूछो
तुम्हारी राजनीति क्या है ?
बिना सोचे वह साफ़ बताता -
" धार्मिक " !
था न वह पक्का , उल्लू का पट्ठा ?

13 - ( Last ) - मैंने यह खोज निकाला है कि भाषा का सबसे सौम्य, शिष्ट और सभ्य शब्द है " अश्लील" जो अपने ऊपर सारे लांछन ओढ़, सहकर वार्ता को शुद्ध बनाये रखता है !
नहीं समझे न ? इसे एक उदाहरण से समझें । अखबारों में लिखा जाता है, सामान्य बातचीत में कहा जाता है - " वे अश्लील हरकत करते हुए पाये गए ।"
और रिपोर्ट एक तरह से पूरी हो जाती है | इसके स्थान पर यदि भाषा में यह "अश्लील" नामक शब्द न होता तो उस हरकत का पूरा वर्णन करना रिपोर्टर की विवशता होती । और सोचिये , तब क्या होता ? तब वे क्या करते हुए पकड़े जाते ? " | अश्लील " शब्द के भरोसे ही भाषा पवित्र बची हुई है । हा हा हा !

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Politically your's ,
ugranath

= 6th July Declaration Day for Humanists

Our important day =
6th July
Declaration Day for Humanists

International Humanist and Ethical Union'sAmsterdam Declaration 2002
      In 1952, at the first World Humanist Congress, the founding fathers of International Humanist and Ethical Union (IHEU) agreed a statement of the fundamental principles of modern Humanism. They called it "The Amsterdam Declaration". That declaration was a child of its time: set in the world of great power politics and the Cold War. The 50th anniversary World Humanist Congress in 2002, again meeting in the Netherlands, unanimously passed a resolution updating that declaration: "The Amsterdam Declaration 2002". Following the Congress, this updated declaration was adopted unanimously by the IHEU General Assembly, and thus became the official defining statement of World Humanism:
Amsterdam Declaration 2002:
Humanism is the outcome of a long tradition of free thought that has inspired many of the world's great thinkers and creative artists and gave rise to science itself.
The fundamentals of modern Humanism are as follows:
1. Humanism is ethical. It affirms the worth, dignity and autonomy of the individual and the right of every human being to the greatest possible freedom compatible with the rights of others. Humanists have a duty of care to all of humanity including future generations. Humanists believe that morality is an intrinsic part of human nature based on understanding and a concern for others, needing no external sanction.
2. Humanism is rational. It seeks to use science creatively, not destructively. Humanists believe that the solutions to the world's problems lie in human thought and action rather than divine intervention. Humanism advocates the application of the methods of science and free inquiry to the problems of human welfare. But Humanists also believe that the application of science and technology must be tempered by human values. Science gives us the means but human values must propose the ends.
3. Humanism supports democracy and human rights. Humanism aims at the fullest possible development of every human being. It holds that democracy and human development are matters of right. The principles of democracy and human rights can be applied to many human relationships and are not restricted to methods of government.
4. Humanism insists that personal liberty must be combined with social responsibility.Humanism ventures to build a world on the idea of the free person responsible to society, and recognizes our dependence on and responsibility for the natural world. Humanism is undogmatic, imposing no creed upon its adherents. It is thus committed to education free from indoctrination.
5. Humanism is a response to the widespread demand for an alternative to dogmatic religion. The world's major religions claim to be based on revelations fixed for all time, and many seek to impose their world-views on all of humanity. Humanism recognizes that reliable knowledge of the world and ourselves arises through a continuing process. of observation, evaluation and revision.
6. Humanism values artistic creativity and imagination and recognizes the transforming power of art. Humanism affirms the importance of literature, music, and the visual and performing arts for personal development and fulfillment.
7. Humanism is a lifestance aiming at the maximum possible fulfilment through the cultivation of ethical and creative living and offers an ethical and rational means of addressing the challenges of our times. Humanism can be a way of life for everyone everywhere.
Our primary task is to make human beings aware in the simplest terms of what Humanism can mean to them and what it commits them to. By utilizing free inquiry, the power of science and creative imagination for the furtherance of peace and in the service of compassion, we have confidence that we have the means to solve the problems that confront us all. We call upon all who share this conviction to associate themselves with us in this endeavor.