सोमवार, 2 मई 2011

दिमाग तो है [ Book-8 ] हाइकु संग्रह app 100


* ईश्वर अब
 मनुष्यों का तो एक
आइकन है |

* लुटाना और
लूटना भी चाहिए
प्राप्तकर्ता को |

* भक्तों की भीड़ 
नहीं बचा पायेगी 
राम , देव को |

* कहीं पहुंचा
अब कहीं पहुंचा
हूँ मैं आकर |

* आँख बदर
दिल बदर मैं हूँ
देश बदर |

* चाहा था पर
अब तो नहीं चाह
बची है कोई |
* हर व्यक्ति का
शातिर दिमाग तो
होना चाहिए |

* अँधेरा कोना
है , जिसमे मैं हूँ
और ईश्वर |

* बोलते नहीं
हम किसी को दोस्त
आज़ादी प्रिय |

* स्वार्थ  , परार्थ
मिल जुल कर हैं
खींचते पृथ्वी |

* प्रेम कम है
प्रेम का प्रदर्शन
बहुत ज्यादा |

*चीन जाते हैं
पुरानी हुयी बात
ज्ञानार्जन की |

* मैं सोता रहा
घड़ी चलती रही
वह न सोयी |

* मैं तो मैं हूँ ही
मैं अकेला नहीं हूँ
कहाँ रखोगे ?

*लोहा     लेकर    क्या करोगे ?

लोहे तो जंग
खाते हैं , लोहे जंग
नहीं करते |

मगर  फूल
कभी  न  मुरचाते
सड़  जाते  हैं |
पर मृत्यु  को  प्राप्त
तो  सभी होते  |

* सब का    सब
स्वार्थ    का   चक्कर
सारा    जीवन    |

* इधर जाएँ 
तो खाई , कुआँ है जो 
उधर जाऊं     |

* विज्ञानं का तो 
कोई अंत नहीं है 
न ही तर्क का |

* कैसा मन है 
खाकर तो देखिये 
घर का खाना !

* मैं जब तक 
हूँ संशय विहीन 
तब   तक हूँ |

* जान दे दूंगा
फुरसत तो मिले
अभी तो नहीं |

* हम बौद्धिक
मूर्खों से मुखातिब
बे मुताबिक |

* आज तो कोई
अखबार न आया
तो खली बैठो |

* मुझे न मिला
अंधा बांटे  रेवड़ी  
तुझे    न मिला | 

*कल्पना  शक्ति ,
आदमी का दिमाग 
अन्यो न्याश्रित  |

* समझदारी  
खुल  जा सिमसिम 
खोल  दिमाग |

*यह  भी भाषा
डेली मर्रा का काम
कहते सुना |

*परेशान  हूँ
सृजन शीलता से
कभी ख़त्म हो |

* रोज़ नहाना
ऐसी क्या ज़रुरत
पानी बहाना |

* दे देंगे  पास
जगह  मिलने दो
अभी जाम  है |

* सेक्स के लिए
कौन शादी करता
धन के लिए |

* एक म्यान में
दो तलवारें   आयें
तो भी न रखो   |

* विकास काले
विपरीत बुद्धिश्च
विनाश   काले  |

* अर्थान्वेषण
आदमी के होने का
सदा अधूरा  |

* फंसी रहेगी
औरत   पवित्रता /
बलात्कार में |

* गिर जाएँ तो
उठने  ki कोशिश
मर जाएँ तो 
पैदा होने ki |

* सो वाज़ द डे So  was the  day
 Today I didn't
say any thing  |

* समाजवादी  
नारीवादी भी होगा
शूद्रवादी भी |

* कठिन धर्म 
लोकतंत्र निभाना 
व्यक्तिगत भी |

* हो गया पूर्ण 
संशय विहीन मैं
संग विश्वास |

* मैं जब तक
सशंक , तब तक
खूब रहता |

* दुहराता हूँ
बार बार  , तुमसे 
करता प्यार | 
  
* धराशायी मैं
ख़ुशी है मुझे कि मैं
हवाई नहीं |

* मार्निंग वाक
आमाशय निर्वात
दोस्तों से बात |

* वह बेचारी
वह भी तो बेचारी
सब बेचारी |


* झटके से ही
टूटेंगी रवायतें
गैर इंसानी |

* पेशाब को भी 
दीवाल का सहारा 
चाहिए होता |

* पहले  छोडो  
कुछ पाने की इच्छा
तब न पाओ |

* भ्रमित ही हैं
हम जो क्रांतिकारी
हैं कहलाते |  

* ऊँचे से ऊँचा
और ऊँचा ही ऊँचा
दिल करता |

* सरलता ही
मूल वैज्ञानिकता
सच्चाई यही |

* अंगूठा टेक
होना बेहतर है
कुपठित से |

* महासंबंध
शारीरिक संबंध
तब आत्मिक |

* एक तरफ
बेरोज़गारी दूजे
श्रमिक नहीं |

* प्रथम ध्यान
अपने काम पर
फिर चाहे जो  |

* वह रोता है
वहां इंसानियत
है आदमी में |

*कुछ न कुछ
कमी लगी रहती
घर गिरिस्ती |

* माफ़ करना
हैसियत नहीं कि
बात करूँ |

* बहुत हुआ
तुम आओ तो आओ
या नहीं  आओ |

* वह माता है
बकरे की कितनी
खैर मनाये  ?

* नियम था तो
पालन हो भी गया
अन्यथा नहीं |

* विरोध दर्ज
करता हूँ अपना
तेरे विरुद्ध |

* सब कहते
तुम क्यों कहते
पीना छोड़ दो ?

*संयत करो
अपने आप को
विवेक आये |

*योजना बढ
कर्म प्रवृत्त हुआ
सफल हुआ |

* मेरा दुश्मन
मेरा हंसोरपन
हल्का बनाता |

* नहीं मिलते
नौकर ,ढूंढने  से
साथी मिलेंगे |

*डर न होता\
कानूनी कार्वाई का
तो मर लेता |

*दुर्घटनाएं 
दूसरे की गलती 
से भी हो जातीं |   

*किसी के साथ
नहीं रह सकता
मैं , मैंने पाया |

* गलत हुआ
नहीं , सही तो हुआ
यही तो हुआ |

* पुरुषों को ही
अच्छा लगता है क्या
काम -कलाप ?

* सब सही है
पर पैसे की दोस्ती
नहीं जी नहीं |

* आँखों में देखो
तो आँख मार देगा
कोई पुरुष |

* रोना या रोना
स्त्री का मतलब है
केवल रोना |

* मिल पाने के
कोई आसार नहीं
अब सोता हूँ |

* लिखते जाओ
कोई फायदा नहीं
फिर भी है तो |

* कौन साथी है
हिम्मत के अलावा
भला दुःख में ?

* केवल सुनो
किसी की कोई बात
मानो तो गुनो |

* सोचता जाता
हाइकु बनी जाती
पूरी जिंदगी |

* कभी नहीं थे
इतने महान तो
आदमी लोग |

* लड़ जायेंगे
दिन इन चिकनी
पत्रिकाओं के |

* दादा हैं दादा
तो दादा की मर्यादा
निभानी होगी |

* बंधा हुआ है
शेर , चिंता न करो
पिंजरे में है |

* दकियानूसी
पकड़ मजबूत
परंपरा की|

* दिमाग तो है
लेकिन बहुत ही
शातिर वह |

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