रविवार, 1 मई 2011

अप्राकृतिक मन का खेल

* एक विचित्र वार्ता मन में उभर रही है | मेरा ख्याल है कि किसी के द्वारा यदि बता दिया जाय कि अमुक कार्य अप्राकृतिक है , और वह व्यक्ति उसे मानना स्वीकार कर ले तो वह उसके लिए सचमुच  अप्राकृतिक हो जायेगा | उदाहरण के लिए यदि आप समलैंगिकता को अप्राकृतिक समझते हैं , तो विज्ञानं दर किनार , उस से आप का मान विरत हो ही जायगा | यहाँ तक कि यदि आपको नितांत स्वाभाविक बुराई - पर स्त्री (पुरुष) गमन / आकर्षण को अप्राकृतिक बता दिया जाय तो आपका मन इसमें नहीं लगेगा | मांसाहार - मद्य पान गलत है यदि आप के मन में बैठ गयी तो आप उसका भी सेवन नहीं करेंगे | और तो और , यदि स्व-स्त्री- संसर्ग भी सत्य से प्रयोग के लिए उचित लगे  और यह बात गाँधी जी की तरह आपकी अक्ल में बैठ जाय, तो आप यह भी करने लगेंगे |  
                इसी तरीके से आप शुभ कार्यों से भी बच सकते हैं , जैसे राष्ट्र भक्ति , धर्म  निरपेक्षता , यहूदियों ,मुसलमानों ,अंग्रेजों ,अंग्रेजी भाषा से प्रेम , दलितों से बराबरी भी यदि आपको बेहूदा  बात के रूप में रगड़ -रगड़ कर समझा दिया जाय तो आप ऐसा व्यवहार भी करने लगेंगे | कहा है न , मानो तो देव , नहीं तो पत्थर | आदमी के मानने के कारण  ही पत्थर देवता बना हुआ है अन्यथा वह सचमुच तो पत्थर ही है | इसी को मैं "मान्यतावाद " के रूप में मैं व्याख्यायित करता हूँ | वैज्ञानिक सोच , सत्य का शोध वगैरह मुझे निष्फल प्रतीत हो रहे हैं | आदमी जो मान ले वाही सत्य ,वही वैज्ञानिक है | इसलिए मैं मनुष्य की मान्यता बनाने , बिगड़ने , फिर बनाने पर ज्यादा मुनहसर रहता हूँ |      
                                             इस सिद्धांत के आधार पर जनतांत्रिक मूल्यों में जनता का प्रशिक्षण , उसे रटा -रटा कर नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की योजना के अनुसार लोकतंत्र में दीक्षित कर देश का महान - महत्व पूर्ण नागरिक बनाये जाने की महती आवश्यकता है | इसी पद्धति से उसे ऐसा बनाया जा सकता है |
मुझे कहने में दुःख तो है पर कोई संकोच नहीं, कि उसे ऐसा बिल्कुल लोकतान्त्रिक तरीके से ,आज़ादीपूर्वक उसे खुला छोड़कर , उसके विवेक पर छोड़ने से नहीं किया जा सकता | निश्चय ही वह conditioning  होगी , लेकिन इसके अलावा  और कोई चारा नहीं है यदि हम सचमुच उन्हें "आदमी " बनाना चाहते हैं | वर्ना धार्मिक -साम्प्रदायिक शक्तियाँ ,साधू -संत , मौलवी -मौलाना जन तो उन्हें अपने -अपने अनुकूल उपयुक्त सांचे में ढालते जा रहे हैं और हम स्वतंत्रता वादी  लोग उसमे स्वविवेक जागने की प्रतीक्षा में सृष्टि  और मानव सभ्यता का अमूल्य  समय नष्ट कर रहे हैं | अब ,समय की पुकार न सुनने वालों का पराजय तो सुनिश्चित भी है न !

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