सोमवार, 28 फ़रवरी 2011

साहित्यकार मठ


* - मठ कहते हैं  कि वे नागरिक को साहित्यकार नहीं मानेंगे | नागरिक की  जिद  है  कि वह  उनसे अपने को  साहित्यकार मनवाएगा  नहीं | ##

* - भूखे भजन न होय गोपाला , ले लो अपनी कंठी - माला | इस संवाद में ईश्वर का नाम तो है ,लेकिन यह सेकुलर दोहा कहा जायगा क्योंकि इसमें पेट की चिंता है , परलोक की नहीं |## 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें