गुरुवार, 10 फ़रवरी 2011

देश विभाजक लोग

देश विभाजक लोग
         कांग्रेस के एक नेता हैं , दिग्विजय सिंह , यानी डी .वी .सिंह | आजकल वे देश विभाजक सिंह की भूमिका का सफल निर्वहन कर रहे हैं | हमने इस उम्मीद में कुछ नहीं कहा कि उनकी पार्टी ही कुछ उन्हें समझाए -बुझाएगी , डांटेगी | लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और उनके बयान एक - एक करके आगे बढ़ते जा रहें हैं , इसलिए हमें कुछ लिखना पड़ रहा है |
       उनका पहला बयान तो और कुछ था , उसे छोड़ते हैं | दूसरा बयान आया कि द्विराष्ट्र का सिद्धांत जिन्ना से  पहले सावरकर का था | अब भला इसे कौन पढ़ा - लिखा व्यक्ति नहीं जानता ? पर इससे क्या सिद्ध करना चाहते हैं वह , और कहने का उद्देश्य क्या है ? यही  तो कि जिन्ना से बड़े अपराधी सावरकर थे ! जी नहीं , जिन्ना से ज्यादा समझदार -बुद्धिमान सावरकर इस प्रकार सिद्ध होते हैं | क्योंकि जिस सत्य व यथार्थ या फेनोमेना को जिन्ना  बाद में समझ पाए , उसे सावरकर बहुत पहले भांप या समझ गए थे | फिर , सावरकर ने तो बुद्धि के स्तर पर उसे समझा था , जिन्ना ने तो उनके  अनुमान , परिकल्पना या परिज्ञान को अंततः सही ही सिद्ध  कर  दिया और उनके ही सही , द्विराष्ट्र के सिद्धांत को अपनाकर भारत को बाँट कर पाकिस्तान को इस्लामी मुल्क बनाकर यह व्यवहारतः प्रमाणित कर दिया कि मुसलमान किसी अन्य के साथ नहीं रह सकते | अब ऐसा ही अनुभव दुनिया की अन्य जम्बूरियतों , फ्रांस-ब्रिटेन -इटली -अमरीका आदि को भी हो रहा है | तो इससे क्या सबक ली जाय ? यह कि दोनों ही खलनायक थे या यह कि दोनों ही अत्यंत बुद्धिमान और अपनी सदी के महान नायक ? एक ने सिद्धांत समझा ,तो दूसरे ने उसे अमल करके  दिखाया | फिर जनाब डी वी सिंह का बयान इस तर्क की रौशनी में कोई मायने नहीं रखता , जिसका उन्होंने कलुषित इरादा किया है |       

           श्रीमान जी का अगला ताज़ा बयान लखनऊ में प्रस्फुटित हुआ | इसके लिए वे मौलानाओं से एक प्रस्ताव तैयार करने को बोल  गए हैं , जिसे लेकर वह चिदंबरम  साहेब से मिलेंगे , और ज़ाहिर है ,उसे लागू करायेंगे | मुसलमानों को  और चाहिए ही क्या ! उनके जैसा मुस्लिम और इस्लाम हितैषी हिन्दू नेता ,वह भी सत्ताधारी दल का ! फिर कहना ही क्या !मुसलमानों के लिए उनकी नई इमदाद यह है कि ज़कात को इनकम टैक्स से बरी किया जाय | वाह ! ज़कात दो , इस्लाम धर्म का पालन करो ; अपना परलोक तो बनाओ ही , साथ में अपना लोक भी फायदे में रखो | क्या खूब विचार है | ऐसा एक हिन्दू ही सोच सकता है | हमें प्रथम दृष्टया  उन पर गर्व होना चाहिए | लेकिन ऐसा हम सावरकर प्रेमियों का ख्याल नहीं है | 
         कारण यह है कि ज़कात की व्यवस्था हमारे वर्तमान संविधान में नहीं है | ज़ाहिर है , कांग्रेस यदि चाह देगी तो आधुनिक सेकुलर नेता मुस्लिम प्रिय सेकुलरवाद के प्रभाव और प्रवाह में संविधान में परिवर्तन , संशोधन -संवर्धन करा ही ले जायेंगे | हम उनका कर ही क्या लेंगे सिवा उनको अपने दो -चार वोट देने से हाथ खींच लेने के |
             लेकिन आगे हमारी तरफ से एक और तार्किक रूकावट दरपेश है | यदि ज़कात की व्यवस्था है ,और वह दी जाती है तो ज़ाहिर है उसे लेने ,पाने वाले भी कुछ लोग होंगे ! तो जो लोग उसे प्राप्त करने वाले हों , उन्हें राजकीय आर्थिक आरक्षण क्यों दिया जाय ? स्पष्ट होना चाहिए कि दलितों के समान मुसलमानों को सच्चर +रंगनाथ द्वारा प्रस्तावित आरक्षण उनके  
सामाजिक सम्मान की अभिवृद्धि के हेतु नहीं है , और इसलिए हिन्दू दलितों का उदाहरण कोई देने का कष्ट न करे तो अच्छा हो |    
          यह किसी भी प्रकार उचित  नहीं है कि हिन्दू दलितावस्था से ऊबने का नाटक करके उससे उबरने के लिए इस्लाम / ईसाई धर्म अपनाओ , मौक़ा मिले तो इनके आधार पर देश का विभाजन करवाओ | यदि इसका अवसर न मिले और मजबूरन हिन्दुओं के साथ रहना पड़े तो एक हाथ से अपने लोगों से ज़कात का लाभ लो , जिससे दानी मुस्लिम भाइयों को  सरकारी इनकम टैक्स में  छूट मिले | उन्हें पैसो से भी फायदा हो और मृत्योपरांत जन्नत भी नसीब हो | और दूसरे हाथ से सेकुलर सरकार से आरक्षण का फायदा लो |
           ऐसा तो न करो भाई ! अकेले दोनों हाथों  से लड्डू न बटोरो | कुछ तो जाहिल हिन्दुओं पर कृपा करो | उन्हें भी इस देश में रहने  दो | इसका हक बनता है उनका | सावरकर को यदि बुरा कहते हो तो उनके सिद्धांत और जिन्ना के व्यवहार  को फिर से इस बचे हिंदुस्तान में न लागू करो | और बहुत सेकुलर कोशिश करने का दम हो तो पडोसी मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान में हिन्दुओं को ऐसा थोडा सा हक दिलाकर दिखाओ |आखिर वहां भी बरेली - देवबंद की बात चलती तो है ही | दुनिया ने देखा नहीं क्या कि अभी जल्दी ही अपने अंगरक्षक द्वारा हत्या कर दिए गए गवर्नर की लाश को इनके द्वारा काफिर करार दिए जाने के कारण बहुत देर तक दफनाये जाने से वंचित रखा गया , और हत्यारे की तारीफें की गयीं ?
         फिर विनायक जी को परेशानी क्या है ? अभी तो सबसे निचली अदालत ने फैसला दिया है | उनके पास उच्च और सर्वोच्च न्यायालय बचे हैं अपील के लिए , जहाँ कि
अक्सर मामले उलट तक जाते हैं |हाँ , इतना हो -हल्ला करके यदि न्यायपालिका के खिलाफ माहोल बनाना हो तो और बात  है| [और अभी हिंदुस्तान  की जनता पाकिस्तान कि तरह इतनी "जागरूक और सचेत " नहीं हुई है कि कोई अदालत यदि उन्हें बरी करती है या उनकी सजा में कुछ कमी करती है ,तो जनता उस न्यायाधीश को मौत के घाट उतार दे |   
         अब एक और विशिष्ट नाम है भारतीय प्रतिभा जगत में | उनके नाम का उल्लेख करके हम अपने आप को धन्य करना चाहते हैं क्योंकि ये विश्व के सर्वोच्च पुरस्कार - ''नोबेल'' से नवाज़े जा चुके हैं | अमर्त्य सेन नाम है उनका | ऐसा नाम सिर्फ हिन्दू संस्कृति की देन हो सकती है , और है | वे अब अपने को थोड़ा और अमर्त्य बनाना चाहते हैं | विनायक सेन जी की गिरफ़्तारी के विरोध में तर्क पेश करते हुए वह कहते हैं कि इस प्रकार तो यदि मैं भी किसी की चिट्ठी किसी को पहुचाऊँ तो मुझे भी जेल हो सकती है |  अब बताईये , यह है नोबेल पुरस्कार विजेता का अति विवेकी  बयान | लेकिन इसे इस नाते नज़र अंदाज़ किया जा सकता है कि उनका क्षेत्र अर्थशास्त्र  है | कानून उनका विषय नहीं है | विषय तो हमारा भी नहीं है लेकिन यह सामान्य ज्ञान के आधार  पर उनसे हमारा विनम्र सुझाव है कि ज़माना बहुत ख़राब चल रहा है | यहाँ किसी का भी खाना ख़राब होते देर नहीं लगती | यदि उन्हें कोई , कोई पत्र किसी को देने के लिए दे तो वह यह ज़रूर देख लें कि पत्र कौन दे रहा है , जिसे देने के लिए कह रहा है वह कौन है और हो सके तो यह भी जाँच लें कि उस लिफाफे में है क्या ? यदि कोई आपत्तिजनक या कानून विरोधी चीज़ हो तो उसे लेने -देने से साफ़ मना कर दें ,भले वे दोनों उनके अभिन्न मित्र हों | क्योंकि यदि सामान निरापद पहुचाने में सफल हो गए तब तो कोई बात नहीं है , नहीं तो पकडे जाने पर भारत को अपने एक और डाक्टर से महरूम होना पड़ेगा | यार ! कैसे इतना बड़ा ईनाम पा गए जब इतनी छोटी सी बात नहीं समझते ? जानते नहीं कि यहाँ ज़्यादातर गलत लोग नहीं पकडे जाते , गलत लोगों के चक्कर में सही आदमी ज्यादा मार खाते हैं | दुनियादारी  समझिये , बुरे में फंसे दोस्त का साथ ज़रा बच -बचा कर दीजिये | साथ ही देना हो तो उसकी भी सीमा समझिये | हद  से आगे न जाईये | और जाईये भी तो ऐसे बयान न दीजिये जो हास्यास्पद लगें |  और डी वी, दिग्विजय सिंह की तरह ऐसे बयान तो कदापि न दीजिये , जिससे लगे कि आप देश को तोड़ने , यहाँ की शांति -सुरक्षा को भंग करने वालों का साथ दे रहे हैं |
      खास बात यह जानने की है कि सरकारें तो कभी अकर्म की अवस्था में हो भी सकती हैं , बहुत सी जनता इस हनक में नहीं आती  कि कोई नोबेल या मग्सैसे पुरस्कार विजेता है , या किसी बड़ी भारी पार्टी का  बड़ा  भारी नेता | बहुत से लोगों के अजेंडे पर देश और लोकतंत्र पहले नंबर पर  अभी भी है |       [प्रकाशित , हिंदी पायनियर ,लखनऊ १२/२/२०११ ]   

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