शनिवार, 10 अगस्त 2019

इस्लाम का प्रसार

आख़िर इस्लाम में ऐसा आकर्षक है ही क्या जो कोई सिर्फ बुलाने से इसे स्वीकार कर लेगा ? एक कबीलाई ईश्वर, किताब, संदेशक के प्रति पूर्ण अन्धविशवास के साथ समर्पण ? जब मूल ही सत्यानाशी है तो आगे क्या बहस ? अब इतना तो मूर्ख समझें नहीं इस्लाम वाले इस्लाम से बची दुनिया को !☺️ और अब एक तुर्रा यह निकला है कि बस हम सुन्नी ही मुसलमान हैं । बाकी शिया,  ताबिश, अशफ़ाक़, आतंकी तो (इसमें यौन पता नहीं कहाँ से घुसा दिया गया फ्रायड की कृपा से) यौन कुंठित हैं । तो हो गया न इस्लाम पाक और साफ ? किसकी आलोचना करेंगे ?
लेकिन तब भी कुछ बातें इनकी अस्पष्ट और अनुत्तरित हैं । कितने ही बड़े विज्ञान शिक्षित हों (कलाम साहब भी शंकराचार्य के चरण में बैठे), तमाम मूर्धन्य विज्ञान वेत्ताओं (Armed chaired हॉकिन्स समेत) की बात मानने को यह कदापि तैयार नहीं, इनके दिमाग में ही नहीं घुसता childhood conditioning की वजह से, कि कोई ईश्वर कहीं नहीं है । केवल nature है जिसका exploration विज्ञान के जिम्मे है, ख्याली खिलंदड़ जन इसके लिए भरीसेमंद नहीं ।
दूसरा यह कि अपनी अज्ञानता और अंधविश्वासों को बचाने, रक्षा करने में इतने जी जान से जुट क्यों जाते हैं ? हम तो जिस किसी भी धर्म सम्प्रदाय के हैं, उसकी तो खटिया खड़ी कर देते हैं, खूब आलोचना करते हैं और विद्रोह भी ! इनके यहाँ क्यों नहीं होता, न किसी को करने दिया जाता है ? यहाँ तो धार्मिक तरक्की का परिणाम यह होता है कि कोई वहाबी खित्ता बन जाता है, कोई जैशे मोहम्मद, और तमाम आतंकी संगठन इस्लाम के नाम पर इस्लाम के नक्शेकदम पर, दावे के साथ । नतीजा , जो अच्छे भले नैतिक रूप से मुस्लिम बचते हैं उनकी शामत आ जाती है, और वह दुबक जाते हैं । वह भी मारे डर के कहने लगते हैं जी जी हाँ, इस्लाम बड़ा ही प्रेमी, भाईचारा वाला जीव है, तलवार का बली नहीं 😢! ऐसे ही नहीं इतनी बड़ी एरिया पर इतने सदी से राजगद्दी नशीन है ? क्या भला तलवारी ताक़त पर यह सम्भव है ? सही है, तस्लीमा ,रुश्दी तो इसलिए भागे भागे फिरते हैं कि कोई उन्हें गले लगाकर चुम्मा न ले ले ☺️! अन्यथा उन्हें कोई डर नहीं ।
औऱ यह इनकी समझ तो तब है जब कि देख रहे हैं कि पूरी दुनिया इन्हें हिकारत की नज़र देखती है। अपनी लोकतांत्रिक मानववादी सेकुलर चरित्र के कारण इन्हें सब, हर ज़मीन आसमान वाले बर्दाश्त कर रहे हैं तो इसलिए की वे सभ्य हैं और तलवार में यकीन नहीं रखते । लेकिन सच यह है कि इनकी कोई इज़्ज़त नहीं करता, न कोई इसे महान समझता है ( किसी गांधी की पैदाइश यहाँ नामुमकिन है)। Unacceptance, अग्राह्यता इसलिए भी है क्योंकि यह दार्शनिक और वैज्ञानिक विचार धारा नहीं है । यहाँ असहमति की गुंजाइश नहीं है, जो कि लोकतन्त्र की पहली शर्त है । इनका विश्वास लोकतन्त्र या आधुनिक समाजवादी साम्यवादी व्यवस्था पर नहीं है, निज़ामे मुस्तफ़ा पर है ।
अलबत्ता, तिस पर भी, इनका दावा गलत नहीं कि इस्लाम पूरी दुनिया पर राज करेगा । कारण उन्हें तो पता है ही, दुनिया को भी पता है कि यह धर्म (नीति कर्तव्य) का tentative ख़ाका नहीं, एक मजबूत , सुदृढ़-सशक्त फ़ौज़वादी मजहब है , अपने में सम्पूर्ण राजनीति अपनी समस्त कलाओं में (अंतर्निहित,अकथनीय) प्रवीण,संलग्न और हर तरह से जुटे हैं । बुला लाएंगे (आओ फलाने भाई इन नीच आधुनिक मानव वादियों से मिलो) ! तो भला कैसे जीत पाएँगे इनसे और जीतना ही ही क्यों ? इनके साधारण सदस्य से भी बात करना असम्भव है, धर्मगुरू तो भूल जाइए । संवाद अव्यवहारिक है, अनावश्यक भी । यह किसी की बात न सुन ही नहीं सकते तो मानेंगे कैसे ? सिवा एक permanent, अपरिवर्तनीय directive, दिशा निर्देश के । इनकी भी मजबूरी है, उससे इतर और परे जाना तो दूर, सोचना भी गुनाह है, जिसकी कड़ी सज़ा मुकर्रर है ।😢और मान लेने पर पुरस्कार की लालच तो आप जानते हैं वह बहत्तर वाली ! 😊
अभी अभी, बिल्कुल यहीं एक idea उभरा है । यह क्षमा के योग्य हैं (भले ईसाइयत की तरह "प्रार्थी" नहीं) । तनिक इनकी निष्ठा गौर से देखिये , यह भला किसी को क्या डराएंगे, धमकाएँगे या मारेंगे ? ये तो खुद डरे हुए हैं व्यक्तिगत रूप से । इनके विश्वासों ने खुद इन्हें इतना दबा, डरा, और मार रखा है कि इनकी तार्किक चेतना बिल्कुल समाप्त हो चुकी है, कुछ हैभ तो उसी दायरे में । मुसल्लम ईमान ने इनकी जगह बहुत थोड़ी ही छोड़ी है तो यह क्या करें ? जो बताया गया वह कर रहे हैं । फेसबुक पर भी गुर्रा तो रहे हैं । अभी और यहाँ गरजेंगे । लेकिन इनके बादल में आधुनिक और भावी मानव समाज पर बरसने, उसे शीतल करने के लिए कोई "पानी" नहीं है ।😢

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें