मुझे तो बस चोर की दाढ़ी में तिनका याद आता है । यह एक कहावत बन चुका है । इस युक्ति से बीरबल ने एक चोर की शिनाख्त की थी । तब वह जज भी थे ,वकील भी थे । पीड़ित को उनके पास जाकर केवल यह बताना था कि उसका सामान चोरी गया । आगे की ज़िम्मेदारी बीरबल जी की थी । और उन्होंने उसे निभाया, जिसे दुनिया जानती है ।
न्याय व्यवस्था ऐसी ही होनी चाहिए । अपराध हुआ, न्याय विभाग सूचित हुआ । फिर उसका काम है अपराधी को पकड़ना , उसे सज़ा देना । उसके अधीन पुलिस, CID, खोजी तंत्र और सज़ा का अधिकार, और सबसे बड़ी बात अपराध नियंत्रण और न्याय की पूरी जिम्मेदारी होनी चाहिए । सरकार से अलग ।
अभी तो क्या है ? सब कुछ पका पकाया, सुबूत, गवाह, अपराधी की खोज, सब पैक करके माननीय न्यायमूर्ति जी के कक्ष में प्रस्तुत करो, तब उन्हें जब फुर्सत मिली तो अभियोजन पक्ष को भी तिखाड़ डाँट डपट कर कोई निर्णय लिख देंगे । नहीं ! पुलिस, जेल, न्याय प्रशासन इनके अधीन होना चाहिए । इन्हें जासूसी करने के लिए, गवाहों के घर जाकर गुप्त तथ्य लेने के लिए बाहर भी निकलना चाहिए, केस के पूरा होने/ करने की ज़िम्मेदारी न्यायाधिकारी की होनी चाहिए ।
(उग्रनाथ नागरिक)
उग्रनाथ'नागरिक'(1946, बस्ती) का संपूर्ण सृजनात्मक एवं संरचनात्मक संसार | अध्यात्म,धर्म और राज्य के संबंध में साहित्य,विचार,योजनाएँ एवं कार्यक्रम @
गुरुवार, 15 अगस्त 2019
बीरबल का न्याय
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