रविवार, 4 अगस्त 2019

धिक्कार पुरस्कार

मैग्सेसे अवार्ड तो ठीक । लेकिन इसका महत्व तब तक चटक नहीं होता जब तक इसके विपरीत कोई धिक्कार पुरस्कार या "मारो ठांय ठांय" पुरस्कार नहीं कायम होता । जो अनैतिक नीति योग के तलुए चाट रहे हैं, उन्हें मिलना चाहिए यह असम्मान ।
आज एक अखबार का सम्पादकीय विपक्ष को दायित्वबोध करा रहा था । इसी बहाने सत्ता की चापलूसी ! उसको तो ज़िम्मेदारी बताने की हिम्मत नहीं है । होगा कोई - - रामजादा !
एक तो यह फैशन चल गया है कि

"क़द तो है पिद्दी भर और फोटो आदमक़द"!

संपादकीय बनाने का यह कौन सा तरीका है ? अच्छा हो कुछ दिन बाद सम्पादकीय के विकल्प में केवल तस्वीरें छापी जायँ । कभी मोदी कभी शाह सावरकर, गुरु गोलवलकर के साथ संपादक की सेल्फी, फोटोशॉप या कोलाज ! अच्छा रहेगा । हिंदी हिन्दू हिंदुस्तान ज़िन्दाबाद (अरे नहीं, अमर रहे !) ☺️😊😢👍👌💐

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