कविता
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वह सती होती थीं
अपनी इच्छानुसार
अपने पति के प्रेमवश ।
वह नक़ाब पहनती हैं
अपनी पसंद से
किसी के कहने
किसी के दबाव में नहीं ।
वह शादी करती हैं
विवाह क़ुबूल करती हैं
अपनी पूरी सहमति के साथ ।
वह रसोई में जल जाती हैं
अपनी असावधानी से
कोई उन्हें जलाता नहीं ।
यहाँ तक कि वह
बलात्कार को बुलाने
आमंत्रण देने
देर रात सफ़र करती
घर से निकलतीं
आती जाती हैं
सब अपने मन से ।
हमारी स्त्रियाँ पूरी स्वतंत्र हैं
आत्मनिर्भर, स्वावलंबी ।
क्या आपको अब भी
बात समझ नहीं आती ?
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-- उग्रनाथ नागरिक
उग्रनाथ'नागरिक'(1946, बस्ती) का संपूर्ण सृजनात्मक एवं संरचनात्मक संसार | अध्यात्म,धर्म और राज्य के संबंध में साहित्य,विचार,योजनाएँ एवं कार्यक्रम @
गुरुवार, 17 जनवरी 2019
आज़ाद औरतें
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