इस देश में केवल हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई रहते हैं । यही चार भाई इस देश के उत्तराधिकारी हैं, तभी तो केवल इन्ही में भाई चारा रखने के प्रयास होते हैं, गीत गाये जाते हैं ।
बल्कि इनमें भी केवल दो, हिन्दू और मुस्लिम ही प्रभावी रूप से सक्रिय हैं । कभी प्रेम से रहते कभी लड़ झगड़ लेते हैं ।
इनके अतिरिक्त कोई जनसंख्या भारत में नहीं है । होगी भी तो दिखती नहीं है । वैज्ञानिक विचारधारा वाले मानववादी, नास्तिक, धर्म-सम्प्रदाय, जाति विहीन तबका तो कहीं दिखता नहीं । और एक कम्युनिस्ट नामक अधर्मी समूह की समाज में कोई छाप दिखती नहीं है ।
परिणाम, यही दो सम्प्रदाय देश को चला रहे हैं और ले जा रहे हैं देश को हिंद महासागर की ओर ।
बात लग गयी न ? लेकिन बताइये, कोई तीसरा पक्ष होता तो एक Common Civil Code के लिए अड़ न जाता ? क्या किसी ने दावा ठोंका कि रहा होगा चप्पे चप्पे पर कभी मंदिर मस्जिद अब कानून बनाकर अयोध्या में विद्यालय बनाओ ? इस ज्वलंत मुद्दे पर दो ही फ़रीक कोर्ट में भी लड़ रहे हैं और ज़मीन पर भी संघर्षरत ।
क्या किसी धार्मिक-अधार्मिक-सामाजिक-सांस्कृतिक-राजनीतिक समूह ने यह कहने की हिम्मत की कि कश्मीर को आज़ाद करने के विकल्प पर भी विचार किया जाना चाहिए ?
जी नहीं, कोई नहीं है ।
उग्रनाथ'नागरिक'(1946, बस्ती) का संपूर्ण सृजनात्मक एवं संरचनात्मक संसार | अध्यात्म,धर्म और राज्य के संबंध में साहित्य,विचार,योजनाएँ एवं कार्यक्रम @
बुधवार, 12 दिसंबर 2018
तीसरा आदमी
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