शादी है तो वह अरेन्ज्ड ही होगी ।
प्यार में कोई arangement नहीं होता ।
उग्रनाथ'नागरिक'(1946, बस्ती) का संपूर्ण सृजनात्मक एवं संरचनात्मक संसार | अध्यात्म,धर्म और राज्य के संबंध में साहित्य,विचार,योजनाएँ एवं कार्यक्रम @
गुरुवार, 20 दिसंबर 2018
दुःखद स्थिति
क्या तो नज़ारा हो गया है देश का ! धर्मनिरपेक्षता के तहत धर्म से दूर रहने, दूरी बनाने की जगह अब सरकार स्वयं पूजा करने बैठ गयी है । 😢
बुधवार, 19 दिसंबर 2018
मंगलवार, 18 दिसंबर 2018
रविवार, 16 दिसंबर 2018
शनिवार, 15 दिसंबर 2018
शोषण के खिलाफ़
मैं यह कहना चाह रहा था कि अगर ईश्वर और धर्म शोषण के औजार हैं तो कम्युनिस्ट जन ईश्वर और धर्म का खुला विरोध क्यों नहीं करते ? केवल पूँजीवाद ही उनकी ज़ुबान पर क्यों रहे ?
अविशिष्ट
निश्चित ही हर व्यक्ति विशिष्ट है ।
लेकिन जैसे ही कोई व्यक्ति अपनी विशिष्टता का प्रदर्शन, दावा, हक़दारी करने लगता है, वह अशिष्ट हो जाता है ।
बुधवार, 12 दिसंबर 2018
तीसरा आदमी
इस देश में केवल हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई रहते हैं । यही चार भाई इस देश के उत्तराधिकारी हैं, तभी तो केवल इन्ही में भाई चारा रखने के प्रयास होते हैं, गीत गाये जाते हैं ।
बल्कि इनमें भी केवल दो, हिन्दू और मुस्लिम ही प्रभावी रूप से सक्रिय हैं । कभी प्रेम से रहते कभी लड़ झगड़ लेते हैं ।
इनके अतिरिक्त कोई जनसंख्या भारत में नहीं है । होगी भी तो दिखती नहीं है । वैज्ञानिक विचारधारा वाले मानववादी, नास्तिक, धर्म-सम्प्रदाय, जाति विहीन तबका तो कहीं दिखता नहीं । और एक कम्युनिस्ट नामक अधर्मी समूह की समाज में कोई छाप दिखती नहीं है ।
परिणाम, यही दो सम्प्रदाय देश को चला रहे हैं और ले जा रहे हैं देश को हिंद महासागर की ओर ।
बात लग गयी न ? लेकिन बताइये, कोई तीसरा पक्ष होता तो एक Common Civil Code के लिए अड़ न जाता ? क्या किसी ने दावा ठोंका कि रहा होगा चप्पे चप्पे पर कभी मंदिर मस्जिद अब कानून बनाकर अयोध्या में विद्यालय बनाओ ? इस ज्वलंत मुद्दे पर दो ही फ़रीक कोर्ट में भी लड़ रहे हैं और ज़मीन पर भी संघर्षरत ।
क्या किसी धार्मिक-अधार्मिक-सामाजिक-सांस्कृतिक-राजनीतिक समूह ने यह कहने की हिम्मत की कि कश्मीर को आज़ाद करने के विकल्प पर भी विचार किया जाना चाहिए ?
जी नहीं, कोई नहीं है ।
मंगलवार, 11 दिसंबर 2018
साथी संगठन
कम्युनिज़्म भी एक सांस्कृतिक विचारधारा है ।
तो जिस प्रकार RSS बिना राजनीतिक ताक़त के राजनीति में इतना प्रभाव जमा सकता है, मार्क्सवाद भी बिना चुनाव लड़े सशक्त क्यों नहीं हो सकता ?
ज़रूरत है तो वही संघ वाली निष्ठा की !
प्रचार
झूठ में बड़ी ताक़त है और प्रचार में बड़ी शक्ति ।
प्रचार से ही ईश्वर नामक झूठ अस्तित्व में आया ।
प्रचार द्वारा उसके फरेब को मिटाने में कोई बुराई नहीं है ।
अयोध्या विद्यालय
हमें मंदिरमस्जिद नहीं, विद्यालय चाहिए ! (युवापक्ष,हिन्दोस्तान)
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यह युवा आंदोलन बनना चाहिए। "युवापक्ष हिन्दोस्तान" एक युवा संगठन के रूप में उभरना चाहिए,सचमुच युवा?