रविवार, 28 फ़रवरी 2016

PS जनवरी फरवरी DINMAAN

PS जनवरी फरवरी DINMAAN

पत्रकारिता को सत्ता से घुलमिलाना नहीं चाहिए !

मुझे पता नहीं था । केवल नाम भर सुना था । इधर जानकर आश्चर्य हुआ जानकर कि JNU जैसा भी विश्वविद्यालय हमारे देश में था । अब तो खैर, नहीं रहने पायेगा !

मुझे यह बात मानने में पर्याप्त आपत्ति है कि भारत की कोई नस्ल स्वभावशः बिगड़ैल और आतंकी हो । चाहे वह जाट हों, पटेल, गुर्जर, नक्सली, या अन्य, या मुस्लिम ! 
मुझे पूरा संदेह है, कहीं राजनीति ही इन्हें ऐसा तो नहीं बना रही ?


कैसा समाज बनाना चाहते हो भाई ?
जिसमें मनुष्य या तो आत्महत्या करे, या फिर जेल जाए !
कैसा समाज बनाना चाहता है यह राष्ट्र ?


हम क्यों किसी देश पर गर्व करें ? कोई देश मुझ पर करे तो करे !

जो सियासत घोलती है,
उस ज़हर में क्यों घुलें हम ?


मच्छरदानी
हैं देश की सीमाएँ 
बाड़ नहीं है !


हम क़ायल
तुम्हारी आज़ादी के 
तुम हमारी ।


अतिव्याप्त है 
राजनीतिक रोग 
नाम की चाह !


आस्तिक ही था 
मन को नहीं भाया
स्वार्थ- पाखण्ड !


दिमागों में भरा
ज़हर तो निकले
तो बात करें !


नाम के लिए काम करोगे,
नाम न होगा काम न होगा !


मुझे इस बात का बाकायदा शक था ,
मैंने खाया, किसी और का हक था |


सच का जो काम करेगा,
सच उसका काम करेगा !


मुझे सबसे अकुशल काम लगता है व्यवहार कुशलता।!

यदि किसी देश में द्रोही ज्यादा पैदा हो रहे हों, तो माता को अपनी कोख, घर-आँगन भी देख लेना चाहिए !

प्रेम करना मुझे गुलामी जैसी बात लगती है । वाहियात लोगों की वाहवाही करना !

ब्राह्मण दलित को आदमी नहीं समझता, हिन्दू ईसाई-मुसलमान को मनुष्य नहीं मानता, मुसलमान यहूदी को आदमी नहीं समझता, ईसाई मुसलमान को आदमी नहीं समझता, मुसलमान काफिर को आदमी नहीं समझता - & - & -
मैं इनके ही आदमी होने पर संदेह व्यक्त करता हूँ |


देश की हड्डी जितनी चूसनी हो उतनी जोर से बोलो जय भारत माता की !
और यदि किसी की पिटाई करनी हो तो जोर का शोर मचा दो , यह नारे लगा रहा था पाकिस्तान जिंदाबाद की !

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