रविवार, 28 फ़रवरी 2016

PS जनवरी फरवरी NASTIK

PS जनवरी फरवरी NASTIK

एक तरह से देखें तो हम नास्तिक लोग अमर ही हैं । जब हमें ऊपर जाना ही नहीं है, न स्वर्ग-नर्क में वास करना है , तो हमारे मरने का क्या मतलब ?

वह कहते हैं, ज़रा दूसरे धर्म की भी बात करो ! मैं कहता हूँ अपने धर्म को भी देख लिया करो !

ईश्वर के विरुद्ध न बोलूँ ?
क्या आप चाहते हैं मैं मनुष्य के खिलाफ़ खड़ा हो जाऊँ ?

ईश्वर एक शब्द है । लगभग सारी भाषाओँ में उपस्थित एक भाव वाचक संज्ञा । ऐसी किसी भाषा की हमें सूचना नहीं है जिसमें यह शब्द न हो । ज़रूर हम नास्तिकों की भाषा में यह नहीं है, तो हम दूसरी भाषाओँ से काम चलाते हैं उन भाषा भाषियों से संवाद के निमित्त ! हर भाषा में इसका पर्यायवाची उपलब्ध है । अलबत्ता जैसा अन्य तमाम शब्दों के साथ ऐसा होता है, एक भाषा का दूसरी भाषा में ईश्वर का पर्यायवाची बिल्कुल वही अर्थ नहीं बताता जो अर्थ उसकी मूल भाषा में होता है । और हास्यास्पद विडम्बना यह कि हर भाषा इस शब्द को अपनी भाषा में मौलिक बताती है और अन्य भाषाओँ में इसके पर्यायवाची को गलत !

यदि आप आतंकवाद से नफरत करते हैं, और इस बात के लिए नाराज़गी मुसलमानों के ऊपर ही हो तो भी ज़रा उस अल्लाह के बारे में सोचिये जिसने उन्हें बनाया | आखिर दोष की कुछ ज़िम्मेदारी तो निर्माता की बनेगी न ? और तब, फिर पलटकर तनिक अपने ईश्वर के बारे में तो सोचेंगे ही जिसने आपको बनाया ! दोनों एक हैं क्या ? है, तो फिरआपका ईश्वर भी दोषी है और आप भी | ईश्वर, और उसपर अंधविश्वास पर प्रश्न उठाये बिना न मुसलमान की आलोचना की जा सकती है, न आतंकवाद की |

ऊपर वाले 
ऊपर ही रहना 
नीचे हम हैं

ब्राह्मण दलित को आदमी नहीं समझता, हिन्दू ईसाई-मुसलमान को मनुष्य नहीं मानता, मुसलमान यहूदी को आदमी नहीं समझता, ईसाई मुसलमान को आदमी नहीं समझता, मुसलमान काफिर को आदमी नहीं समझता - & - & -
मैं इनके ही आदमी होने पर संदेह व्यक्त करता हूँ |

हो सकता है गलत हो , लेकिन कुछ काम प्रतिक्रियास्वरूप विरोध में करना सही तो लगता है ! बल्कि वही एकमात्र उपाय प्रतीत होता है । जैसे मैं दाढ़ी- बाल सोमवार,बृहस्पति या शनिवार को ही बनवाता हूँ ।

ईश्वर को कोई नहीं मानता तो मैं भी नहीं मानता ! जाँचकर देखिये कौन मानता है ईश्वर को ? सब मनमानी करते हैं, उसके मन की कोई नहीं सुनता |

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