सोमवार, 1 सितंबर 2014

केवल हाइकु = 24 जुलाई से - - 28 अक्तूबर 2014

* मन तो हुआ
इतना वैज्ञानिक
तन छूटा रे !

मना न करो
रंगदारी देने से
मारे जाओगे !

क्या कर लोगे
क्या कर सकते हो
तुम अकेले ?

खुश रहो तो
मैं भी खुश रहूँगा
तुम्हारे साथ |

प्यार के साथ
थोड़ा मनोरंजन
सेक्स ही हाथ |

औरत मर्द
साथ साथ जियेंगे
साथ रहेंगे |

सफाई नहीं
सफाई का ढोंग तो
मेरे खून में |

बाप गरीब
महतारी गरीब
बेटा तो धनी !

भूल जाते जो
दुःख भरे वे दिन
दुःख पाते हैं !

मुझसे लिया
मेरे बेटे बेटी ने
केवल धन |

हाँ यकीनन
नहीं चाहता हूँ मैं
दुःख ही दुःख !

जान लीजिये
मूर्तियाँ भी व्यक्ति हैं
मान लीजिये ,
पागल कर देतीं
अपने भी प्रेम में !

अब क्या कहूँ
मुझे हो क्या गया है
मुझे क्या पता !

यह आदमी
है ही इस लायक
कि मारा जाए !

सबका हाल
बस एक हवाल
मुसद्दी लाल |

सारे संकट ,
परेशानी की जड़
है यह बुद्धि !

प्रेम करता
बावजूद इसके
वह अंधी है !

हो सकता है
हो क्यों नहीं सकता
बिल्कुल होगा !

थोड़ी ही सही
इज्ज़त हो तो सही
उन सबकी !

सदा सर्वदा
कुछ बाकी रहेगा
अपरिचय !

मैंने बहुत
कम जगह ली है
धरती माँ की !

न कोई चाह
न कोई अभिलाषा
जीवन सुखी |

अपना काम
करते रहना है
कुछ हो न हो !

धर्म के लिए
ज़िंदगी न लो, न दो
जान जहान |

मेरा इशारा
ऊपर की ओर है ,
कौन है वहाँ  ?

मुक्त होकर
फिर मैं तुम्हारे ही
गले लगूंगा !

बोलती बंद /
लोगों का व्यवहार /
परखता मैं |

कुछ सच है /
पूरे प्रकरण में
कुछ झूठ है |

जब वह शै /
मेरे भाग्य में नहीं /
पीछे क्यों भागें ?

सटीक बातें /
सही समय पर /
जुबां न आतीं |

चाहते भी हैं /
नहीं भी चाहते /
बीच झूलते |

चल रहा है /
थोड़ा ऊँचा या नीचा /
सबका काम |

सच पूछो तो /
जो हो रहा है, सब /
अमानवीय |

पैसा चाहिए ! 
तो कितना चाहिए ? 
बताओ सही ।

एक गौरैया /
बैठी जो डाल पर /
झुकी है शाख़ |

कहाँ पहुँचे ?
पता नहीं कहाँ से ?
चल रहे हैं |

चित्त भूमि की /
खेती करता हूँ मैं /
यही संस्कृति |

मेरे जुड़ाव /
नहीं छोड़ते मुझे /
गाँव देश से |

कुछ सत्य है /
हर किसी के पास /
कुछ झूठ हैं |

आप बुलाएँ /
न आऊँ तो कहिये /
बुलाइए तो |

विद्या ददाति /
विनय - समन्वयं /
सर्व समानं |

बन गये हैं /
पत्थरों के ईश्वर /
अक्ल पत्थर |

विश्वास रखो 
अगर विश्वास है 
हें हें न करो !

लौट के बुद्धू 
कहाँ कहाँ होकर 
घर को आये |
*  *   *     *

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें