गुरुवार, 24 जुलाई 2014

[ नागरिक पत्रिका ] = 29 जून 2014 से 23 july



 * भाग्य एक सेक्युलर ( इहलौकिक, इसी दुनिया की ) स्थिति है :- 
ऐसा नहीं है कि यह किसी दूसरी दुनिया से लिख पढ़ कर आया और आदमी कि ज़िंदगी पर परमानेंट चस्पा हो गया , जैसा कि माना जाता है | माना क्या जाता है , स्थिति को बताने के लिए कह दिया जाता है | गुड लक - बैड लक / लकी - अनलकी आदि भाषा के शब्द हैं | 
भाग्य इससे बनता है कि आप किस परिवार, जाति , खानदान में पैदा हुए | यदि वह समृद्ध, संभ्रांत , सम्मानित है तो आप भाग्यवान हैं | अब चूँकि यह पैदा होने वाले व्यक्ति कि शक्ति में नहीं होता कि वह कहाँ पैदा हो इसलिए इसे ईश्वर प्रदत्त , पूर्वजन्मों का फल इत्यादि कहा जाता है जो कि गलत है | समृद्धि , सम्मान आदि इसी दुनिया कि स्थितियां हैं , जो परिवर्तन शील भी है | कोई ज़रूरी नहीं कि धनवान गरीब और गरीब धनवान न हो जाय | इसी प्रकार हमारा भाग्य इससे भी बनता है कि हम किस धर्म और देश में जन्मे | दकियानूसी समाज हमें दुःख देगा | यह हमारी भाग्यहीनता होगी | अब आगे आप इसे बदलें यह आपके कर्म से होगा |

धर्म संगठित हों , उनमें कितनी बुराई है यह अलग बात है । लेकिन धार्मिक लोगों की संगठित शक्ति और उनकी कार्यवाही का परिणाम तो हम निश्चित देख रहे हैं ।

कहा जाता है मुसलमान गरीब हैं | उनकी शिक्षा कि व्यवस्था नहीं है , नौकरियाँ नहीं है | लेकिन यहाँ तो मामला उल्टा दिख रहा है | सुना है अमरीका में ऊंची पढ़ाई करने वाले इन्जिनीर वगैरह अपनी अच्छी पढ़ाई व नौकरी छोड़कर कहीं जिहाद में शामिल होने जा रहे हैं | खबर पक्की है, तसलीमा कि इस पर आर्टिकल आ चुकी है | फिर इन्हें पढ़ाकर क्या करेंगे जब इनकी घरेलु शिक्षा उस पर पानी फेर दे रही है | 
कोई सुझाव तो दे रहा था कि हिंदुस्तान से भी जो जाना चाहे उन्हें जाने दिया जाना चाहिए | है तो यहाँ भी सुगबुगाहट , बेचैनी !

सच पूछें तो कृतघ्न , धोखेबाज़ , दगाबाज़ , गैरवफादार तो हम सब हैं , हिन्दू हों या मुसलमान ! जिस घर में रहते हैं उसे बनाने वाले कारीगरों , मजदूरों को धन्यवाद नहीं कहते | सवेरे जहाँ जहाँ जाते हैं उस कमोड निर्माता को , सीवर सफाई कर्मी को प्रणाम नहीं करते | रोटी खाते हैं तो अन्न पैदा करने वाले किसान के गुण नहीं गाते | तमाम घरेलु गैजेट , वैज्ञानिक उपकरणों के आविष्कर्ता , निर्माता , मरम्मत कर्ता को तनिक भी याद नहीं करते | घंटों बरबाद करते हैं उसके पीछे जो कहीं नहीं , हमारा कुछ भी काम नहीं करता | कितने तो बेईमान हैं हम लोग ! ऊपर से कहते हैं ईश्वर पर ईमान लाओ ?

नाम में क्या रखा है ? अरे , नाम में ही तो रखा है | यदि आप का हिन्दू नाम है , तो आप हिन्दू हैं चाहे आप मानें या न मानें | कोई नाम से मुस्लिम है तो मुस्लिम होगा ही , भले वह माने या न माने |

Animal Farm :-
कुछ देर पहले TV पर भौगोलिक चैनेल पर " शेरों का शिकार क्षेत्र " देखने का अवसर मिला , और मुझे एक अनुभव बनाने का लाभ मिला । वह यह कि हम मनुष्य भी उसी प्रकार जानवरों की ज़मीन , जंगल और मैदान में रह रहे हैं । वस्तुतः हम भी जानवर हैं , विभिन्न प्रकारों में । मनुष्य होते हुए भी हम जानवर अनेक जातियों प्रजातियों में अनेक प्रवृत्तियों ले साथ विचर रहे हैं । दो पाए हैं तो क्या ? TV में शेर नाम का चौपाया भी तो भैंस - हिरन नामक चौपायों को मारकर अपना भोजन बना रहा था ? मनुष्य की स्थिति इससे कुछ अलग नहीं है । इससे शांति और सहजीविता की आशा करना व्यर्थ है । अब तक तो हमने यही देखा । युद्धों का इतिहास है इसके पास । भले मूल रूप में इनकी बनावट एक सी है प्राकृतिक तौर पर । लेकिन इसने अपनी मान्यताओं और मानसिक प्रवृत्तियों को अप्राकृतिक तरीके से हिन्दू , मुसलमान , ईसाई , यहूदी इत्यादि बनाया हुआ है । और ये कत्तई एक नहीं हैं । ये एक दूसरे के विपरीत और परस्पर दुश्मन हैं । भले किन्ही दो में कुछ हद तक एकता हो पर दूसरों से वे अलग होंगे । ये एक दूसरे का शारीरिक न सही आस्तित्विक भक्षण करते रहेंगे । ताकतवर ( वह शक्ति कई प्रकार की हो सकती है ) शेर कमजोर हिरन को खाता ही रहेगा । भले इससे भी हिरणों की संख्या कम न हो, लेकिन वे भयग्रस्त होने को अभिशप्त रहेंगे । यही जंगल का खेल है । यदि अन्य सारे जानवर समाप्त भी हो जाएँ तो भी यह बुद्धिमान प्राणी संसार को जंगल बनाने के लिए पर्याप्त है । ताकतवर , जो बुद्धिहीनता से बढ़ेंगे , कमजोरों , जो बुद्धिमत्ता के फलस्वरूप होंगे , को सताते , परेशान करते रहेंगे। अब यह मानकर चलना होगा कि हमें इसी जंगल में इन्ही हिंस्र - अहिंस्र मनुष्यों के बीच रहना है ।

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