बुधवार, 1 जुलाई 2020

जिसकी लाठी वही सेक्युलर

सेक्युलरवाद: तब और अब (भाग- दो, अंतिम)
- - - - - - - - - - - - - - - - -- - - - -
पिछला लेख पूरा न हुआ कि मेरे मोबाइल का हिंदी (हिंदू हिंदुस्तानी नहीं) कीबोर्ड ख़राब हो गया । इसलिए इस लेख का जल्दी उपसंहार कर दूँ वरना अनुकूल विषय न होने के कारण यह फिर रुष्ट न हो जाये । 
अनुभव यह कि भारत में पश्चिमी सेकुलरी तो चलने से रही । यहाँ ब्रॉडला होलियोक का सिद्धान्त नहीं चलेगा । वहाँ एक पोप था तो राज्य ने छुटकारा पा लिया । यहां तो पोप ही पोप, पाप ही पाप , कैसे इनसे तालमेल बिठाये ?
अब इसके दर्शन, धर्म व्यक्तिगत, Thisworldy, परलोक विरुद्ध, धर्म राज्य से , राज्य धर्म से दूर, और Public health आदि की पारिभाषिक अध्ययन, समीक्षा और चीर फाड़ में न जाइए वरना हम आप उलझ जाएँगे जैसे देश 70 सालों से इसमें हैरान परेशान है । 
बस खुश होने की बात यह है कि हर संस्था पार्टी इसके गुण गाती है, जैसे विज्ञान की गाती है, चाहे इनकी मानें एक नहीं । हिन्दू भारत ने इसे पंथनिरपेक्ष जैसा शब्द अपनाया, तो गौर कीजिए यह तो हिन्दू ही हुआ। इसी में अनेक पंथ गुंफित पल्लवित हैं । मतलब धर्म को छूना नहीं । यह तो देश का प्राण है, धर्म तो नैतिकता है, कर्तव्य है । आगे भी कृपा यह कहकर की कि हिन्दू तो स्वाभाविक सेक्युलर है, विश्वबंधुत्व से लैस है, कोई पश्चिम इसे नीति का पाठ न पढाये । इन्होंने यहाँ चार्वाक को उद्धृत न कर सनातन को ही सुयोग्य बताया । इस तरह यह शब्द देश में जिंदा या मरा पड़ा रहा । बाद में संविधान में इसका नाम अंग्रेज़ी में जोड़ा गया । 
तो मुक्तक यूँ बनता है :-
'हिंदुस्तान के मानी सेक्युलर
देश की बूढ़ी नानी सेक्युलर;
सती साध्वी? यानी सेक्युलर,
लालकृष्णअडवानी सेक्युलर !"
इस तर्ज़ पर शिवसेना, बजरंग दल सब सेक्युलर ।
तो मुस्लिम समाज क्यों पीछे रहता ? उसने भी दावा किया , इस्लाम भाई चारा, शांति, अम्न चैन, प्रेम मोहब्बत का मज़हब है । मानना ही पड़ेगा । बस केवल वह हम लोग सेक्युलर नहीं माने जायँगे जो सेक्युलर नाम की सतत गाली दोनो तरफ से खाने को पाते हैं । तो ऐसी दशा में निष्कर्ष क्या निकला? वही उपसंहार है । इसकी व्यावहारिक अंतरराष्ट्रीय परिभाषा बड़ी विनम्रता पूर्वक यह बनती है । 
कि जिस देश में जिसकी लाठी उसी के पास सेक्युलर थाती । प्रत्येक देश का बहुजन सेक्युलर माना जाय, इस ज़िम्मेदारी के साथ कि वह अल्पजन का ख्यालबात रखे । शेष तरीके से secularism सम्भव नहीं । उदाहरणार्थ -
खाड़ी मुल्कों में इस्लाम को सेकुलर स्वीकार किया जाय (तभी यह इस पर खरा भी उतरेगा)! यूरोप में Secularism को सेक्युलर मान उसकी प्राथमिकता स्वीकार किया जाय (अब पोप क्षीण शक्ति है, और जनता भी पर्याप्त नास्तिक सेक्युलर) ! चीन में मार्क्सवाद को सेकुलर संज्ञा दें।
 अब भारत की बात करना तो गैरज़रूरी है । यहाँ हिन्दू को सेक्युलर न माना गया औऱ इनपर अल्पसंख्यकों की नैतिक जिम्मेदारी न मानी गयी तो अनिष्ट होगा । सब अपने देश पर सेक्युलर राज्य फ़रमायें । 
यहीं नागरिकों का फर्ज़ भी बनता है कि अरब देश में हिंदुत्व का झंडा न लहरायें, इस्लाम के अंतर्गत रहें। यूरोप अमरीका में हिन्दू मुसलमान उत्पात करने की न सोचें । वहाँ democratic civil secular व्यवहार करें ।
दुनिया बंटी हुई है । बँटा हुआ सेक्युलरवाद ही चलेगा । जब Communist International नहीं चला तो कैसे उम्मीद करें, International Secularism चल पायेगा ? यह नितांत व्यावहारिक, practical नीति है । उसके किताबी सिद्धांत पर तो मैं इतना लचर (या अद्भुत?☺️) सुझाव देते हुए भी दृढ़ता से कायम हूँ, उसे जानता, समझता, लागू करने के प्रयास करता हूँ । साथी मित्र scientific temper के साथ, विज्ञान को जनचेतना में उतारने, हिंदी अर्थ में विज्ञान धर्म फैलाने में संलग्न हैं ।  कुछ उत्साही मित्र वैज्ञानिक समाजवाद में भी धर्म के गुण ढूँढ चुके हैं, शायद आ ही जाए। वह सब चलता रहेगा सफल भी होगा , क्योंकि यह भारतीय धर्मनिरपेक्षता के अंतर्गत छूट प्राप्त है कि किसी भी महान मूल्य को धर्म की प्रतिष्ठा दी जाय । अतएव- 
जय मानव, जय व्यक्तित्व, जय विज्ञान, जय समाजवाद, जय नागरिक धर्म !👍💐
,,,उग्र

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें