शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2019

आदिम आदमी

कोई सिंधु घाटी की सभ्यता है तो कोई अरब सागर की । सबने आदमी का जीना दूभर कर रखा है । अतः हमने विचारोपरांत इन सबसे पीछे जाने का मन बनाया है । ये सब तो सभी हज़ार, दो हज़ार, पाँच दस हज़ार वर्ष के हैं । इसके बहुत बहुत पहले न ईश्वर था, न धर्म, न वेद क़ुरान, आदमी सब स्वतंत्र समानतापूर्वक रहते थे । हमारी परेशानियाँ सभ्यता के विकार हैं । कैसे छूटेगा जब तक अपने मूल को न समझेंगे ? मौलिक मनुष्य । आदमी को अपनी मौलिकता न भूलनी चाहिए । धर्मों ने जितना सभ्य बनाने का दावा किया मनुष्य उतना ही अमानव होता गया । हमें अपने आदिम , अदिकालिक आध्यात्मिक मानुषिक एकता के पक्ष में रहना चाहिए । बस । धन्यवाद । मैं ज़्यादा बहस न कर पाऊँगा और देख रहा हूँ कि ग्रुप में बहस बहुत होती है, मौलिक विचार बहुत कम । वैसे भी मैं net पर कम ही रहता हूँ । आप सबका :
- - उग्रनाथ, आदिम आदमी ( Primitive Humane) @ (Godless People Worldwide)

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