शनिवार, 30 दिसंबर 2017

Plan

"नागरिकता"
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Scientific Poetic Polity
उग्रनाथ नागरिक
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शुक्रवार, 29 दिसंबर 2017

सोमवार, 25 दिसंबर 2017

छोड़ा

हिन्दू मुस्लिम
सबको देख लिया
जमा न कोई ।

तैरना

जब तक पानी को दोनो हाथों से पीछे ढकेलेंगे नहीं, आगे तैरेंगे कैसे ?

महामानव

हमें विशाल मनुष्य होना चाहिए । चाहे जिस नाते समझ लीजिए । महान हिन्दू होने के नाते, विराट मुस्लिम होने के नाते, विस्तृत ईसाई होने के नाते, तीक्ष्णबुद्धि दार्शनिक- वैज्ञानिक होने के , या स्वतंत्र नास्तिक होने के कारण । किसी भी वजह से हमें विशाल बुद्धि, हृदय, मस्तिष्क और व्यवहार का होना चाहिए । छोटी छोटी बातों, देवी देवताओं में उलझना नहीं चाहिए ।

जड़तामुक्ति

नास्तिकता का मतलब किसी भी आस्था पर जड़ नहीं रहना चाहिए ।
और हाँ, यही एक वाद है जिसे हर मानव परिभाषित करने का हक़दार है । फिर खण्डन का भी । अर्थात पुनर्परिभाषित करने का ।

प्रकृतेश्वर

जब कुदरत, प्रकृति, Nature है ही ईश्वरत्व से भरपूर, तो किसी और ईश्वर को क्यों मानें ?

धर्म भी

परिवर्तन
पहला कदम है
हर क्षेत्र में ।

धर्म

परिवर्तन
पहला कदम है
हर क्षेत्र में ।

Godmen

अभी तक मैं कहता रहा हूँ कि जब तक God और Godmen रहेंगे तब तक कुछ नहीं हो सकता । अब इसमें God worshippers भी जोड़ना पड़ रहा है ।

पढ़ो

अरे पढ़ने लिखने पर ध्यान दो । कहाँ पूजा पाठ को जाते हो !

हीन नास्तिक ?

नास्तिक का नाम लेते ही जो नास्तिक हैं भी, नास्तिकता की सत्यता से सहमत हैं वह भी, हीन भावना, पापबोध के शिकार क्यों हो जाते हैं? मानो वह खुद को खुद ही गाली दे रहे हों । मुसलमान तो ऐसा नहीं सोचते, जबकि उनके इतिहास पर गम्भीर आरोप हैं ! और यह हिन्दू नाम ? यह तो अपने आपमें एक गाली है । तब भी इस पर गर्व किया जाता है ।

चिंतक

जो चिंतक होगा वह नास्तिक होगा ही । जो अपने दिमाग़ का प्रयोग नहीं करेगा वह चिंतन क्या करेगा ?

बराबरी (संस्था)

"बराबरी"  (संस्था)
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समतावादी  :  Egalitarian
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उग्रनाथ श्रीवास्तव "नागरिक"
9415160913

मंगलवार, 12 दिसंबर 2017

कई दुनिया

भारत के अंतर्गत कई भारत हैं यह कहना पर्याप्त नहीं । बल्कि कहना होगा कि भारत के अंदर कई दुनिया हैं ।
एक दुनिया मोदी शाह अडवानी की है । एक दुनिया बच्चन, खानों, विराटानुष्का की है । एक दुनिया दलितों आदिवासियों, वंचितों मजलूमों की है । और सब एक दूसरे से काफी फ़र्क़ और विरोधी हित वादी हैं । विडम्बना, सब भारत में हैं ।
एक दुनिया मजदूर किसान और साथी कम्युनिस्टों की भी है ।
इन्हीं में से एक कोई अलग दुनिया मेरी भी है, लेकिन
मैं औरों की दुनिया की तुलना में अपनी ज़िन्दगी नहीं जीता ।