उग्रनाथ'नागरिक'(1946, बस्ती) का संपूर्ण सृजनात्मक एवं संरचनात्मक संसार | अध्यात्म,धर्म और राज्य के संबंध में साहित्य,विचार,योजनाएँ एवं कार्यक्रम @
शनिवार, 30 सितंबर 2017
शुक्रवार, 29 सितंबर 2017
शनिवार, 23 सितंबर 2017
नास्तिक व्यवहार
मेरा अनुभव यह है कि नास्तिक को शांत रहना चाहिए । झगड़ा झंझट करने, विवाद बढ़ाने से नास्तिकता के प्रति लोगों में अरुचि और दुराव पैदा हो सकता है, जिससे इस नैतिक आंदोलन की हानि हो सकती है । नास्तिक को अपने कर्म और व्यवहार से आदर्श स्थापित करना चाहिए ।
पूँजीवादी नहीं
मेरी चिंता यह है कि आदमी के चरित्र और व्यवहार को कैसे पूँजीवादी होने से बचाया जाय । वह कम्युनिस्ट बने, न बने ।
घर वापसी
नास्तिकता क्या, यह तो बस घर वापसी का मामला है । आदमी का स्वाभाविक, मौलिक स्थान । लोग इधर उधर भटक जाते हैं ।
शुक्रवार, 22 सितंबर 2017
दैनिक प्रार्थना
देखिये, जब तक इस दुनिया में god और godmen रहेंगे, तब तक दुनिया का भला नहीं हो सकता ।
(प्रायः स्मरण)
विश्वास करो
विश्वास करते हो तो विश्वास करो
उसमें छीजन मत आने दो
तो फिर फिक्र मत करो ,
ईश्वर की यही इच्छा होगी
अल्लाह की ऐसी ही मर्ज़ी होगी ।
Comment on वज़ाहत post
सब कुछ सही , नीयत दुरुस्त ! लेकिन तरीका गलत हो जाता है । जिससे हम Seculars की बड़ी फ़ज़ीहत हो जाती है । बड़ी बड़ी सेक्युलर मुस्लिम हस्तियाँ अपने आपको पहले तो " मुसलमान " होना बताने से नहीं चूकतीं (हम हिन्दू तो लगभग उसे नकारकर मैदान में आते हैं,और उनकी गालियाँ खाते हैं । क्या पता है आपको कि अब सेक्यूलर शब्द ही हिन्दुस्तान एक गाली के रूप में तब्दील हो गया है ? ) , तब ,अपनी उपलब्धियाँ, खासियतें बयान करती हैं और फिर अंत में सारे मुसलमानों से उसे सम्बद्ध कर देती हैं । मानो सारी असुविधाएँ उन्हें हैं और कौम में तो कोई कमी ही नहीं है !
एक हादसा कुछेक साल पहले हुआ था । शबाना आज़मी ऐसी सर्वमान्य हस्ती हैं कि कहीं भी जाएँ उनका स्वागत सम्मान होता है । लेकिन बयान - उन्हें मकान (शायद मुम्बई, जुहू में ) इसलिए नहीं मिला क्योंकि वह मुसलमान हैं । बात दीगर कि उन्हें लखनऊ में क्रीम स्थान पर कैफ़ी आज़मी ट्रस्ट को शासन की और से खासी ज़मीन और फण्ड मुहैया कराया गया । (गरीब मुसलमान से इससे क्या लेना देना ? फिर भी ) ।
मैं इस angle, नजरिया और मौकापरस्ती का पुरज़ोर विरोध करता हूँ । हम खूब लानत मलामत सहते हैं , और आप हैं कि मलाई खाकर खिसक लेते हैं । ऊपर से तोहमत भी हिंदुस्तान के माथे पर जड़ देते हैं ! याद नहीँ कितने दानिश्वर मुसलमान इस पर आपत्ति उठाते हैं , कि नही भाई ऐसा नहीं है ,और आइये हम लोग सिर्फ अपनी न सोच मुल्क के सेक्युलर फैब्रिक को मजबूत करें ।
बिल्कुल विषाद उठता है हृदय में । और कौम की ऐसी ही कारगुज़ारियों से हम कट्टर सेक्युलर लोग कमज़ोर होकर कम सेक्युलर हो रहे हैं । और जो कम सेक्युलर हैं वह हिंदूवादी खेमे में हो लें तो किमाश्चर्यम ! फिर हमारी ताक़त क्या रहेगी ? क्या सिर्फ आप लोग भारत की धर्मनिरपेक्षता को चलाएँगे और संभालेंगे ? बहरहाल,
अभी तो यह कट्टर नास्तिक सेक्युलर का पोस्ट है ।
व्यक्ति-जन वाद
व्यक्ति व्यवस्था परिवर्तन की बात कर रहा है । समस्या यह है कि व्यक्ति विश्वसनीय नहीं रह गया है ।
(The Individualist, व्यक्ति-जन वादी)