रविवार, 28 फ़रवरी 2016

PS जनवरी , फरवरी 2016 TIMELINE

PS जनवरी , फरवरी 2016
साथ रहना 
साथ साथ रहना 
ही ज़िन्दगी है !

गिर न जाऊँ
अपनी नज़र में कहीं
तो नैतिकता |

करो या मरो 
मरना तो तय है 
तो कुछ करो !

प्रेम का घूँट
माँगता है कलेजा 
गर्म ठंडाई !

दिल को जीतो !
अच्छा था जो कहते -
पत्थर तोड़ो !

रोज़ाना पूजा 
रोज़ाना राजनीति 
रोज़ाना झूठ !

ज़िन्दगी ने की 
मेहनत बहुत 
तब मैं बना !

सारी शक्तियाँ 
जनता में निहित 
मैं भी जनता !

सूरज उगा 
सवेरा गरमाया 
चिड़िया उड़ी ।

परिवर्त्तन 
कोई मत कीजिए 
होने दीजिये ।

सच का जो भी काम करेगा , 
सच भी उसका नाम करेगा !

आदमी, निरपेक्ष बन, हो सके तो ;
सत्य के सापेक्ष बन, हो सके तो !

आँख मेरी अगर नम है ,
ज़िन्दगी में बहुत दम है ।

नहीं बदले तो मत बदले ज़माना , 
यह आदमजात बदले, कम नहीं है ।

यदि कोई क़ौम पैदाइश के आधार पर अपने आपको सर्वश्रेष्ठ होने का दम्भ घोषित करती है, तो मुझे यह पूरा हक़ है कि मैं उसे अत्यन्त मूर्ख, नीच ; और नहीं तो एकदम धूर्त्त होने का ऐलान कर दूँ !

हम सम्पूर्ण रेशनल शायद कभी नहीं हो सकते । यह स्वीकारोक्ति मैं पूरी सत्यनिष्ठा और Rationality के आधार पर कर रहा हूँ । एक rationalist मित्र नाराज़गी से कहते हैं हिन्दू संस्कृति की इस प्रकार आलोचना गलत है । लेकिन हम करते हैं । या कहें, हमसे हो जाती है । इसमें पैदा हुए, पले बढ़े, इसे भुगता । तो इसका विरोध हमसे अतिशय मात्रा में, अतर्क- कुतर्क की सीमा तक हो जाता है । स्वाभाविक है । और हम देख रहे होते हैं कि बात कुछ हद से ज़्यादा हो रही है । यह हमारी Rationality है, हमने तर्क का दमन छोड़ा नहीं है । लेकिन यह दुनियावी ज़िन्दगी है न ! कई अपराध जान बूझ कर करने पड़ जाते हैं , जीने की राह में ।
हम भी कोई Icon बना लेते हैं । गाँधी बुद्ध अम्बेडकर की अपनी रूचि के साथ । और उनकी मूर्तियों और विचारों के साथ उन्हीं पाखण्डों में जुट जाते हैं, जिनका विरोध उन्होंने सिखाया । जब कि न हम अंधविश्वासी हैं, न मूर्तिपूजक । लेकिन हम सामाजिक राजनीतिक युद्धों-संघर्षों में पाखण्ड रचने को विवश होते हैं । इसे क्षणिक और नितांत समसामयिक माना जाय । शीघ्र ही हम बुद्ध कबीर रैदास अम्बेडकर को भी दूर फेंक देंगे । ऐसी मानसिक तैयारी है हमारे पास !


नरेंद्र मोदी ने सेक्युलरों और मण्डल वादियों का एक काम तो किया ! कमण्डल जी को तो किनारे कर ही दिया !

हम राष्ट्रवादियों से अच्छे भले मनुष्य तो वे दरवेश जन और घुमक्कड़ बंजारा जन-जातियाँ हैं, जो धरती का कोई टुकड़ा कब्ज़ा नहीं करते । रोज़ कोई ज़मीन साफ़ सुथरा करके रहते हैं । फिर छोड़कर चले जाते है ।

 मैं नागरिक समाज के समक्ष यह प्रस्ताव रखता हूँ कि इस GIFT देने की प्रथा को बन्द कर दिया जाय ! बड़ी दिक्कतें हो रही हैं इससे ।
इस प्रकार हमारे इस रंग के दो संकल्प बनते हैं :- न घूस लेंगे , न गिफ्ट देंगे !


आतंकवाद स्वयं जाय तो जाय, कोई दूसरा इसका खात्मा नहीं कर सकता । चाहे अमेरिका हो या अमेरिका का बाप । कारण यह है कि आतंक में मनुष्य के हाथ में बन्दूक नहीं होती, बन्दूक के वश में मनुष्य होता है ।

मेरा तो भाई, कहें तो पूरा जीवन बर्बाद गया । मेरे काम की सारी भैंसें पानी में गयीं प्रतीत होती हैं । मैंने ज़िन्दगी भर नागरिकता पर काम किया । पढ़ते समय श्री प्रकाश जी के तदविषयक लेख से ग्रस्त हुआ । तदन्तर नागरिक उपनाम लगाया और नागरिक समाज निर्माण के काम में लगा , जिसकी परिणति नागरिक धर्म तक गयी । दिनमान पत्रिका से प्रभावित होकर अभिव्यक्ति की आज़ादी की दिशा में सारा समय लगा दिया । प्रिय संपादक अखबार सन् 84 से चलाया । सब व्यर्थ गया ! जेठ पूत पढ़ाकर 16 दुनी 8 हो गया । यही दिन देखना था ? क्या सोचा था अच्छी नागरिकता का मतलब ऐसा ही बुद्धिहीन, जड़ देशभक्ति हो जायगा ? मानना पड़ेगा मेरे ही प्रयासों में कोई कमी रह गयी ।

आधुनिक काल में आध्यात्मिकता की खोज और उसकी संप्राप्ति वैज्ञानिक सोच और नास्तिकता द्वारा ही की जा सकती है ।

ईश्वर को नकारना आसान है, धर्म से निकलना सरल है, चलो किसी दिन शायद जाति भी छूट ही जाय ! लेकिन राष्ट्रवाद वह गुड़ की लसेटी, देसी कम्पनी की चॉकलेट है, जिससे मुक्त हो पाना नाकों चने चबाना है । पता ही नहीं चलता कि यह मानवीय स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकर है !

ब्रेड मत छोड़ो, बटर छोड़ दो ! यही साम्यवाद है । मार्क्स से मत पूछो ।

अब सामाजिक व्यवस्था यह तो होनी ही चाहिए कि बेटी का बाप होना अभिशाप तो न हो !

शासन में आते ही शासक को "सबका" हो जाना चाहिए, किसी एक पार्टी, जाति धर्म समुदाय का नहीं !

मुझे तो शक़ है आदमी के आकार में सारे लोग आदमी हैं !

लेकिन 
जब मैं उसे जानता नहीं 
तब कैसे कह सकता हूँ 
उसका नाम ईश्वर है ?


अगर केवल एक सूत्र मान लिया जाय तो तमाम समस्याएँ हल हो जायँ । लेकिन वह भी तर्क से हासिल नहीं होगा । उसके लिए जिद करनी पड़ेगी ।
कि हम किसी से घृणा नहीं करेंगे । करेंगे ही नहीं नफरत हम किसी से ।
उसने गोमांस खाया है, वह जाने । वह मुझे मन्दिर जाने नहीं दे रहा हा, कोई बात नहीं । उसने हमारे पूज्य ईश्वर पैगम्बर को गाली दी, वह भुगतेगा । हम क्या करें ? हम घृणा तो करेंगे ही नहीं किसी से !


Sanjay Bhalotia


जो सहनशील नहीं है वे चाहे धार्मिक हो या नास्तिक खतरनाक होते है ।
मेरा ख्याल है कि कमलेश तिवारी के वचनों ने इस्लाम का कितना नुकसान किया, यह तो वही जानें ; लेकिन कमलेश की गिरफ्तारी मुसलमानों का बड़ा नुकसान कर रही है |
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मुझे देखो
मेरी ओर देखो
सर उठाकर
मेरी आँखों में देखो -
क्या मैंने तुम्हारा नाम पूछा ?
क्या मैंने तुम्हारी जाति,
धर्म, और तुम क्या करते हो
तुम्हारा पेशा पूछा ?
तुम कहाँ से आये हो,
तुम्हारी राष्ट्रीयता का सबूत माँगा ?
किसी ईश्वर-भगवान को मानते हो
ऐसा कुछ ? नहीं न !
मैंने तुम्हे छुआ भी तो नहीं,
मैंने जाना क्या कि तुम स्त्री हो या पुरुष ?
बिल्कुल नहीं |
फिर तुम मुझे क्यों बताते हो तुम कौन हो ?
मुझसे क्यों पूछते हो मैं कौन हूँ ?
क्या तुम जानते नहीं ?
मेरे पास बैठो
मेरी तरफ देखो |
****
मैं मरूँगा नहीं
मैं अपनी माँ के पास जाऊँगा
'मृत्यु माँ ' के पास,
धीरे से उसकी उँगली पकड़ लूँगा
वह चौंक कर मुझे देखेगी
और अपनी छाती से चिपका लेगी।
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मैं बुद्धिजीविता मेभी सबसे पीछे रहने की कोशिश करता हूँ । क्योंकि यदि कभी बुद्धिजीवियों की सफाये कीबात आई, जैसा कि इतिहास में बहुतसी जगहों पर होचुका है , तो मैं सबस बाद में मारा जाऊँ ।
चुपचाप रहिये, चुपचाप सहिये !
आतंकवाद पर न कुछ बोलिये न कोई विरोध कीजिये । आपके ऐसा करने से कुछ होगा भी नहीं । बड़ी बड़ी सरकारें नाकाम हो रही हैं तो हम आप किस खेत के मूली हैं ? लेकिन जो मैं कह रहा हूँ वह करने से आतंकवाद nullyfy हो जायगा । जब आतंक से कोई पत्ता नहीं हिलेगा, इस्लाम को कोई नाम न मिलेगा तो कोई आतंकवादी IS में शामिल न होगा । आखिर उन्हें भी एक adventure, एक वाहवाही खबर की सुर्खियाँ चाहिए होती है हर युवा की तरह ! जब वही नहीं, कोई हलचल नहीं, कोई तमाशा नहीं तो क्या फायदा अपनी जान देने से ?
और फिर वह जैसा भी निर्णय करें वह जानें, हमारी समझ से तो इसे ignore करना ही बेहतर ।

धर्मविहीन कोई आतंकवाद नहीं होता । हिन्दू मुस्लिम नक्सल में भेद व्यर्थ है । आतंकवादी का अवश्य एक उभयनिष्ठ, common धर्म, दृढ़ संकल्प होता है - किसी बात - व्यक्ति - विचार पर अटूट आस्था !

ईश्वर को मानोगे और मुसलमान से घृणा, आतंकवादियों को गाली दोगे ! यह तो छद्म है मित्र, जो ज्यादा दिन नहीं चलेगा । आपकी यही सोच आज की परेशानी का सबब है । आप मुसलमान से ज्यादा आस्तिक हो क्या जो उसकी आलोचना अपनी आस्तिकता को बचाकर करते हो ? तो या तो नास्तिक बनो , और यदि आस्तिक बनते हो तो आप कहीं न कहीं मुसलमान ही हो । भ्रम में न रहो, न हम दुनियावालों को धोखे में रखने की चेष्टा करो । या तो आप ईमान वाले मुसल्लम ईमान हैं अथवा फिर ईमान न रखने वाले नास्तिकजन । बीच की सारी बातें लफ़्फ़ाज़ियाँ हैं । सबके मूल में जाओ और सोचो ! तुम्हारा और उनका मूल एकमात्र ईश्वर है ।

ध्यान में रखने की बात है । निकट भविष्य में यह होने वाला है कि यदि आप किसी से दबे नहीं, झुके नहीं, प्रताड़ना नहीं सही, उससे नीचा होना स्वीकार नहीं किया तो आपका यह व्यवहार आप द्वारा उस व्यक्ति पर अन्याय और अत्याचार मान लिया जायगा । और इस अपराध के लिए आप पर क़ानूनी कार्यवाही भी असंभव नहीं ।

यह भला अच्छे भले नेताओं के चरित्र क्यों बदल जाते हैं ?
आप नहीं जानते ! जैसे जाड़े में टोपियाँ लगाने से बाल बिगड़ जाते हैं । 


PS जनवरी फरवरी NASTIK

PS जनवरी फरवरी NASTIK

एक तरह से देखें तो हम नास्तिक लोग अमर ही हैं । जब हमें ऊपर जाना ही नहीं है, न स्वर्ग-नर्क में वास करना है , तो हमारे मरने का क्या मतलब ?

वह कहते हैं, ज़रा दूसरे धर्म की भी बात करो ! मैं कहता हूँ अपने धर्म को भी देख लिया करो !

ईश्वर के विरुद्ध न बोलूँ ?
क्या आप चाहते हैं मैं मनुष्य के खिलाफ़ खड़ा हो जाऊँ ?

ईश्वर एक शब्द है । लगभग सारी भाषाओँ में उपस्थित एक भाव वाचक संज्ञा । ऐसी किसी भाषा की हमें सूचना नहीं है जिसमें यह शब्द न हो । ज़रूर हम नास्तिकों की भाषा में यह नहीं है, तो हम दूसरी भाषाओँ से काम चलाते हैं उन भाषा भाषियों से संवाद के निमित्त ! हर भाषा में इसका पर्यायवाची उपलब्ध है । अलबत्ता जैसा अन्य तमाम शब्दों के साथ ऐसा होता है, एक भाषा का दूसरी भाषा में ईश्वर का पर्यायवाची बिल्कुल वही अर्थ नहीं बताता जो अर्थ उसकी मूल भाषा में होता है । और हास्यास्पद विडम्बना यह कि हर भाषा इस शब्द को अपनी भाषा में मौलिक बताती है और अन्य भाषाओँ में इसके पर्यायवाची को गलत !

यदि आप आतंकवाद से नफरत करते हैं, और इस बात के लिए नाराज़गी मुसलमानों के ऊपर ही हो तो भी ज़रा उस अल्लाह के बारे में सोचिये जिसने उन्हें बनाया | आखिर दोष की कुछ ज़िम्मेदारी तो निर्माता की बनेगी न ? और तब, फिर पलटकर तनिक अपने ईश्वर के बारे में तो सोचेंगे ही जिसने आपको बनाया ! दोनों एक हैं क्या ? है, तो फिरआपका ईश्वर भी दोषी है और आप भी | ईश्वर, और उसपर अंधविश्वास पर प्रश्न उठाये बिना न मुसलमान की आलोचना की जा सकती है, न आतंकवाद की |

ऊपर वाले 
ऊपर ही रहना 
नीचे हम हैं

ब्राह्मण दलित को आदमी नहीं समझता, हिन्दू ईसाई-मुसलमान को मनुष्य नहीं मानता, मुसलमान यहूदी को आदमी नहीं समझता, ईसाई मुसलमान को आदमी नहीं समझता, मुसलमान काफिर को आदमी नहीं समझता - & - & -
मैं इनके ही आदमी होने पर संदेह व्यक्त करता हूँ |

हो सकता है गलत हो , लेकिन कुछ काम प्रतिक्रियास्वरूप विरोध में करना सही तो लगता है ! बल्कि वही एकमात्र उपाय प्रतीत होता है । जैसे मैं दाढ़ी- बाल सोमवार,बृहस्पति या शनिवार को ही बनवाता हूँ ।

ईश्वर को कोई नहीं मानता तो मैं भी नहीं मानता ! जाँचकर देखिये कौन मानता है ईश्वर को ? सब मनमानी करते हैं, उसके मन की कोई नहीं सुनता |

PS जनवरी फरवरी DINMAAN

PS जनवरी फरवरी DINMAAN

पत्रकारिता को सत्ता से घुलमिलाना नहीं चाहिए !

मुझे पता नहीं था । केवल नाम भर सुना था । इधर जानकर आश्चर्य हुआ जानकर कि JNU जैसा भी विश्वविद्यालय हमारे देश में था । अब तो खैर, नहीं रहने पायेगा !

मुझे यह बात मानने में पर्याप्त आपत्ति है कि भारत की कोई नस्ल स्वभावशः बिगड़ैल और आतंकी हो । चाहे वह जाट हों, पटेल, गुर्जर, नक्सली, या अन्य, या मुस्लिम ! 
मुझे पूरा संदेह है, कहीं राजनीति ही इन्हें ऐसा तो नहीं बना रही ?


कैसा समाज बनाना चाहते हो भाई ?
जिसमें मनुष्य या तो आत्महत्या करे, या फिर जेल जाए !
कैसा समाज बनाना चाहता है यह राष्ट्र ?


हम क्यों किसी देश पर गर्व करें ? कोई देश मुझ पर करे तो करे !

जो सियासत घोलती है,
उस ज़हर में क्यों घुलें हम ?


मच्छरदानी
हैं देश की सीमाएँ 
बाड़ नहीं है !


हम क़ायल
तुम्हारी आज़ादी के 
तुम हमारी ।


अतिव्याप्त है 
राजनीतिक रोग 
नाम की चाह !


आस्तिक ही था 
मन को नहीं भाया
स्वार्थ- पाखण्ड !


दिमागों में भरा
ज़हर तो निकले
तो बात करें !


नाम के लिए काम करोगे,
नाम न होगा काम न होगा !


मुझे इस बात का बाकायदा शक था ,
मैंने खाया, किसी और का हक था |


सच का जो काम करेगा,
सच उसका काम करेगा !


मुझे सबसे अकुशल काम लगता है व्यवहार कुशलता।!

यदि किसी देश में द्रोही ज्यादा पैदा हो रहे हों, तो माता को अपनी कोख, घर-आँगन भी देख लेना चाहिए !

प्रेम करना मुझे गुलामी जैसी बात लगती है । वाहियात लोगों की वाहवाही करना !

ब्राह्मण दलित को आदमी नहीं समझता, हिन्दू ईसाई-मुसलमान को मनुष्य नहीं मानता, मुसलमान यहूदी को आदमी नहीं समझता, ईसाई मुसलमान को आदमी नहीं समझता, मुसलमान काफिर को आदमी नहीं समझता - & - & -
मैं इनके ही आदमी होने पर संदेह व्यक्त करता हूँ |


देश की हड्डी जितनी चूसनी हो उतनी जोर से बोलो जय भारत माता की !
और यदि किसी की पिटाई करनी हो तो जोर का शोर मचा दो , यह नारे लगा रहा था पाकिस्तान जिंदाबाद की !