सोमवार, 1 सितंबर 2014

[ नागरिक पत्रिका ] = 24 जुलाई से - - 31 अगस्त 2014 = सारी बातें

[ नागरिक पत्रिका ] =  24 जुलाई  से - - 31 जुलाई 2014 = कुछ विचार
* ज़रूरत :- स्वास्थ्य के लिए निश्चय ही दवाएं , टॉनिक वगैरह आदमी की ज़रूरतें हैं | उसी प्रकार , असंभव नहीं कि पूजा - पाठ , पाखंड , उत्सव भी इंसान की ज़रूरत हो ! बस समझने की बात यह है कि दवा लेने वाला यह जाने तो कि वह बीमार है ! टॉनिक पीने वाला यह माने तो कि वह कमजोर है !

* अद्भुत विडम्बना है कि अत्यंत संवेदनशील , मनुष्य के प्रति करुणावान , मानवता के प्रेमी आध्यात्मिक अभिरुचि वाले लोग ही अंततः विश्व , प्रकृति , और ईश्वर कि सेवा में नास्तिक हो जाते हैं !


* ( कविता नुमा )

बिना विनम्र बने
कैसे सफल होगे ?
बिना घुटने कुछ मोड़े
दौड़ना तो दूर ,
चलोगे ही कैसे
तने हुए पाँव लिए ?

कैसे मंजिल प्राप्त करोगे ?
शिखर पर चढ़ोगे कैसे ?

कैसे बिना शीश झुकाए
देखोगे मुझको ?
देखो मैं कितना
छोटा तो हूँ तुमसे !
अहंकार में |
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* विश्वास रखो
अगर विश्वास है
हें हें न करो !

केवल हाइकु = 24 जुलाई से - - 28 अक्तूबर 2014

* मन तो हुआ
इतना वैज्ञानिक
तन छूटा रे !

मना न करो
रंगदारी देने से
मारे जाओगे !

क्या कर लोगे
क्या कर सकते हो
तुम अकेले ?

खुश रहो तो
मैं भी खुश रहूँगा
तुम्हारे साथ |

प्यार के साथ
थोड़ा मनोरंजन
सेक्स ही हाथ |

औरत मर्द
साथ साथ जियेंगे
साथ रहेंगे |

सफाई नहीं
सफाई का ढोंग तो
मेरे खून में |

बाप गरीब
महतारी गरीब
बेटा तो धनी !

भूल जाते जो
दुःख भरे वे दिन
दुःख पाते हैं !

मुझसे लिया
मेरे बेटे बेटी ने
केवल धन |

हाँ यकीनन
नहीं चाहता हूँ मैं
दुःख ही दुःख !

जान लीजिये
मूर्तियाँ भी व्यक्ति हैं
मान लीजिये ,
पागल कर देतीं
अपने भी प्रेम में !

अब क्या कहूँ
मुझे हो क्या गया है
मुझे क्या पता !

यह आदमी
है ही इस लायक
कि मारा जाए !

सबका हाल
बस एक हवाल
मुसद्दी लाल |

सारे संकट ,
परेशानी की जड़
है यह बुद्धि !

प्रेम करता
बावजूद इसके
वह अंधी है !

हो सकता है
हो क्यों नहीं सकता
बिल्कुल होगा !

थोड़ी ही सही
इज्ज़त हो तो सही
उन सबकी !

सदा सर्वदा
कुछ बाकी रहेगा
अपरिचय !

मैंने बहुत
कम जगह ली है
धरती माँ की !

न कोई चाह
न कोई अभिलाषा
जीवन सुखी |

अपना काम
करते रहना है
कुछ हो न हो !

धर्म के लिए
ज़िंदगी न लो, न दो
जान जहान |

मेरा इशारा
ऊपर की ओर है ,
कौन है वहाँ  ?

मुक्त होकर
फिर मैं तुम्हारे ही
गले लगूंगा !

बोलती बंद /
लोगों का व्यवहार /
परखता मैं |

कुछ सच है /
पूरे प्रकरण में
कुछ झूठ है |

जब वह शै /
मेरे भाग्य में नहीं /
पीछे क्यों भागें ?

सटीक बातें /
सही समय पर /
जुबां न आतीं |

चाहते भी हैं /
नहीं भी चाहते /
बीच झूलते |

चल रहा है /
थोड़ा ऊँचा या नीचा /
सबका काम |

सच पूछो तो /
जो हो रहा है, सब /
अमानवीय |

पैसा चाहिए ! 
तो कितना चाहिए ? 
बताओ सही ।

एक गौरैया /
बैठी जो डाल पर /
झुकी है शाख़ |

कहाँ पहुँचे ?
पता नहीं कहाँ से ?
चल रहे हैं |

चित्त भूमि की /
खेती करता हूँ मैं /
यही संस्कृति |

मेरे जुड़ाव /
नहीं छोड़ते मुझे /
गाँव देश से |

कुछ सत्य है /
हर किसी के पास /
कुछ झूठ हैं |

आप बुलाएँ /
न आऊँ तो कहिये /
बुलाइए तो |

विद्या ददाति /
विनय - समन्वयं /
सर्व समानं |

बन गये हैं /
पत्थरों के ईश्वर /
अक्ल पत्थर |

विश्वास रखो 
अगर विश्वास है 
हें हें न करो !

लौट के बुद्धू 
कहाँ कहाँ होकर 
घर को आये |
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