शुक्रवार, 11 अप्रैल 2014

[ नागरिक पत्रिका ] = 12 मार्च 2014 11 मार्च 2014

* समझौता ही करना पड़ता है राजनीति में | सब अपना चाहा मिल नहीं जाता | तो इस चुनाव में भी जनता को समझौता ही करना पड़ेगा | तो क्यों न मजबूरी में से कुछ ताकत निकाल ली जाय | इस चुनाव से ही शुरू कर दें ज्यादा से ज्यादा संख्या में स्त्रियों और दलितों को लोक सभा में भेजना | यदि अभी कोई इन्हें योग्य या अपरिपक्व ही मानें तो भी यह तो मानना पड़ेगा की चलो ये वहाँ पहुंच कर कुछ सीखेंगे ही |
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अब इसी माहौल के मद्देनजर मेरे प्रस्ताव का मूल्यांकन किया जाय तो पता चल सकता है कि  वह कितना सटीक और उत्तम है | राजनीतिक रूप से प्रगतिशील और लगभग आधी सदी आगे की बात | शुरू अभी से करना है कि हिन्दुस्तान का शासन दलितों और केवल दलितों को दे दिया जाय | वरना यह इस्लामी शासन में तब्दील हो जायगा | हो न हो , खतरा तो है और बड़े झगड़े झंझट हैं | इसे समाप्त होना चाहिए | सवर्णों को भी शासन का अधिकार छोड़ देना चाहिए | यह त्याग उन्हें राष्ट्र हित में करना ही चाहिए जिसका उल्लेख , दावा वे निशदिन गाया करते हैं | समय आ गया है कि वह अपना राष्ट्रप्रेम धरती पर व्यवहार में उतार कर दिखाएँ | यह उनकी आध्यात्मिकता भी होगी और मानवता के लिए उनका धार्मिक अवदान भी | सत्ता का मोह नहीं छोड़ेंगे अंधे धृतराष्ट्र की भांति और इसी तरह सामंतवाद चलाते रहेंगे तो एक बार फिर राष्ट्र का पतन होगा | उनका छद्म राष्ट्रवाद धरा का धरा रह जायगा | असली सास्कृतिक राष्ट्रवाद तो दलितों के हाथ में ही सुरक्षित होगी, इसे जानना और मानना होगा | ऐसा मेरा सूक्ष्म अध्ययन और प्रतीति है |
और देखते जाईये यह बार बार हर घटना के बाद सत्य ही सिद्ध होता जा रहा है | कभी आजम खां कुछ कहेंगें, कभी पाक जिंदाबाद के नारे लगेंगे | भारत का दलित सबको दुरुस्त कर देगा | सवर्णों के त्याग से ही देश बनेगा, उसे ऐसा करना ही चाहिए | अतः वोट केवल दलित ( उम्मीदवार या पार्टी ) को दें |
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पकिस्तान जिंदाबाद के नारों से क्या यह नतीजा निकाला जाय कि दोनों देशों में भाई चारा बढ़ रहा है ? हमारे नागरिकों के लिए हिन्दुस्तान - पाकिस्तान में कोई भेद नहीं है | हिन्दुस्तान जिंदाबाद की जगह यदि पाकिस्तान जिन्दाबाद भी कह दिया जाय तो चलेगा | लेकिन तर्क यह है कि इसी पैमाने पर यदि पाकिस्तान जिंदाबाद के बजाय हिन्दुस्तान जिन्दाबाद ही कह दिया जाय तो यह भी तो पाकिस्तान जिंदाबाद तक पहुँच जायगा !
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दार्शनिकों को झूठ भी बोलना चाहिए, आवश्यकतानुसार | सत्य के ज्ञाता तो वह अवश्य हों , लेकिन उसे गुप्त रखते हैं | बताते थोडा झूठ में लपेटकर हैं | इतिहास गवाह है, इन्होने सदा  ऐसा किया और अपना कर्तव्य निभाया | स्वयं तो परम सत्य जाना लेकिन तत्कालीन जनता की भलाई के लिए झूठ मूठ ईश्वर का ईजाद किया, भगवान के दर्शन कराये, उनका डर फैलाया  | नैतिक व्यवस्था कायम करने के लिए धर्म बनाये, मोटे मोटे ग्रन्थ लिखे | और इनके लिए उन्होंने कितना झूठ गढ़ा कि यदि सचमुच कहीं स्वर्ग - नर्क होता तो ये रौरव नर्क में सड़ रहे होते | लेकिन नहीं , वे प्रतिष्ठित हैं , गुरु हैं , संत हैं, साधु हैं, पूज्य हैं | क्योंकि उन्होंने अपने कालक्रम में जनहित में झूठ बोला | वे समझदार दार्शनिक थे | उन्हें पता था कि शुद्ध सत्य बोलना वैज्ञानिकों का काम है | उनकी ज़िम्मेदारी आइन्स्टीन से ज्यादा है जिनके प्रयोग का दुष्परिणाम हिरोशिमा - नागासाकी को भुगतना पड़ा | वह ज्ञान दार्शनिक के हाथ लगा होता ( हो सकता है लगा ही हो लेकिन उदघाटित न किया हो ) तो वह दुर्घटना वह बचा ले जाता अपने ' सफ़ेद ', पवित्र झूठ के सहारे |
अब यही देखिये जानता तो मैं भी बहुत कुछ हूँ आपके बारे में | लेकिन मैं आपसे कहूँगा - आप बहुत ही अच्छे इंसान हैं, आपके शुद्ध विचारों और सुकर्मों से विश्व का भविष्य अवश्य उज्जवल होगा , और आप अपने सद्प्रयासों में पूर्ण सफल होंगे |    
लेकिन यह झूठ नहीं है |
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रामदेव , रविशंकर जी की विवशता है कि वह भाजपा को ही वोट देने का प्रचार करेंगे | उनकी प्रवृत्ति और संस्कार ही ऐसे हैं कि वे सवर्ण पार्टी छोड़ मायावती को वोट देने को कह ही नहीं सकते | यह तो हम हैं जो कहते हैं बसपा को वोट दो , या फिर किसी दलित अथवा स्त्री उम्मीदवार को |
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