मैं मनुष्यों का साथ कम चाहता हूँ क्योंकि यह बोलते बहुत हैं । और बोलते भी हैं तो बहुत ज़्यादा बोलते हैं ।
अन्य जीवों, पशु पक्षी, वनस्पतियों के साथ रहो तो वह भले सुनें न सुनें लेकिन बोलते तो कम हैं ।
उग्रनाथ'नागरिक'(1946, बस्ती) का संपूर्ण सृजनात्मक एवं संरचनात्मक संसार | अध्यात्म,धर्म और राज्य के संबंध में साहित्य,विचार,योजनाएँ एवं कार्यक्रम @