शुक्रवार, 15 मई 2015

नागरिक फेसबुक 11 /5 / 15

नागरिक फेसबुक 11 /5 / 15
* ( Education ) शिक्षा , अपने आप में एक दबाव है , और साहित्य एक कुशल दिशा निर्देशक , सामाजिक रूप से सभ्य और शिष्ट बनाने और बनाये रखने के लिए |

* अपनी पत्नी ( पति ) के मन को स्वयं समझना चाहिए | अपने धर्म के मर्म को भी इसी तरह !

* हठधर्मी , प्रयोगधर्मी !
क्या यह भी कोई धर्म है ? इसलिए इन गुणवाचक शब्दों को हिन्दू मुस्लिम धर्म से अलग ही रखिये | और इनकी आंड में धर्म को गुणवान बताने का झूठ न फैलाइए |

* पूछता हूँ | मैं कहना चाहता था कि nonsense , मूर्खतापूर्ण , वाह्यात , फ़िज़ूल , बकवास आदि शब्द तो असंवैधानिक अथवा अशिष्ट की श्रेणी में नही आते | क्या मैं गलत हूँ ? 

* हम मूर्ख जनता हैं या समझदार नागरिक , आपको हमें स्वीकार करना ही पड़ेगा , ससम्मान | यह हमारा हक है | 

* एक बात और मेरी समझ में आ रही है | हम गलत करते हैं जो धर्म सत्ता को गरियाते गरियाते सामान्य धार्मिक जन को भी अपमानित करने लगते हैं | ठीक है कि वह धर्मों के चंगुल में हैं , लेकिन उन्हें उनके प्रतिष्ठान से अलग करने की नीति हमें अपनानी चाहिए , वरना हमें हमारे जन कहाँ से मिलेंगे ? हमें मनुष्यों से तो सहानुभूति और प्रेम रखना ही पड़ेगा , मानो वह मरीज़ हों | जो धार्मिक सत्ताधारी और किताबी प्रवक्ता हों , उन्ही से मुठभेड़ करनी चाहिए | जनता को सत्ता से अलग करना चाहिए , धर्म में भी , राजनीती में भी | यही रणनीति है | 

* देवी देवता कैसे पैदा हुए , उन्होंने क्या किया , इसे उछालकर हम क्या हासिल करेंगे ? जब वे सामान्य मनुष्य कि तरह नहीं जन्मे तो किस तरह जन्मे इससे हमें क्या मतलब ? या किसी पैगम्बर ने क्या किया , इससे हमें क्या मतलब ? यह उनका व्यक्तिगत / अंदरूनी मामला है | याद रखें और मानव स्वभाव को समझें | उसे चिढ़ाकर , उसका मज़ाक उड़ाकर आप उसका सान्निध्य नहीं पायेंगे | और वही तो हमें पाना है , वही हमारा लक्ष्य है | इसीलिए हम उनसे अलग नास्तिक और मानववादी हैं | वह इनका शोषण करते हैं , हम इन्हें आज़ाद करना चाहते हैं | यही तो ? यदि हम अभी हिन्दू मुसलमान बने हैं तब तो घटनाओं कि शल्यक्रिया करें , समझ में आता है | वरना हमसे क्या मतलब पुरानी बातो को खोदने से जिनका आज कोई महत्व नहीं है | अब तो हम केवल वर्तमान बुराइयों की तरफ ही इशारा करेगे |

* Oh, human being ! ओ रे मनुष्य !
ईश्वर के कामों के लिए ईश्वर को दोष क्यों दें , जब वह है ही नहीं ?

लोग तो कहते ही हैं, मुझे भी लगता है मनुष्य एक जीव है, अन्य जीवधारियों की भाँति । लेकिन मैं इसे जानवर नहीं कहूँगा । क्योंकि इसके पास मस्तिष्क है, भेंड़चाल से अलग अपनी राह बनाने के लिए ।

(Feeling negative)
मुझसे हिंदुस्तान नाराज़ है , क्योंकि मैं ज़िम्मेदारी और कर्तव्यशीलता के मायनों में कह देता हूँ कि हिंदुस्तान के वश का कुछ नहीं है करना । 
यह तो बता चूका हूँ कि यह परीक्षाएँ नहीं आयोजित या सम्पन्न कर सकता, सिपाही की हो या प्राइमरी मास्टरों की, यह भर्तियां नहीं कर सकता । तो और क्या करेगा ?
अब और सुनिए । यह रेलवे प्लेटफार्म पर गाड़ियों के टिकट नहीं बाँट सकता, लगी रहे लंबी लम्बी लाइनें ।
यह अपने आडिटोरियम (राय उमानाथ बली) की कुर्सियाँ भी ठीक नहीं लगवा सकता । पीठ इतनी ऊँची कि यदि recline हो बैठिये तो आधा स्टेज अदृश्य ।
हमारा भारत कुछ नहीं कर सकता ।


क्या हुआ ? कहाँ क्या हुआ ? कहीं कुछ नहीं हुआ । न पेरिस में, न बोको हरम में, न कराँची में, न कहीं और न कहीं । कहीं कुछ नहीं हुआ । बेकार चिंता करते हो । मरना जीना तो लगा ही रहता है । 
लेकिन कहना यह है कि आगे से इस्लाम की, और इस्लाम ही क्यों, किसी भी धर्म की प्रशंसा और गुणगान में कोई मित्र कोई शब्द लिखने का कष्ट मत करना । वरना हिंसा ही सही, इतने हिंसक तो हम हैं ही कि, हम आपको अविलम्ब, फ़ौरन केवल अमित्र नहीं, ब्लॉक कर देंगे ।

* भारत में यह तो हो ही सकता है |
 कुर्सी रोड पर ही SBI बेहटा सबोली का ब्रांच दुसरे भवन में शिफ्ट हो गया है | आज जाना हुआ | कुछ ख़ास नहीं | बस एक counter पर देखा कि बगल के काउंटर के पीछे बड़ा सा शिव जी का चित्र लगा हुआ था , और काउंटर के बगल के partition wall पर दुर्गा जी का चित्र |
सोचा , आप लोगों को सूचित कर दूँ |

feeling गड़बड़ |
मेरा अनुभव बड़ा गड़बड़ होने वाला है | जिन लोगों के पास धार्मिक भावना होती है , उनके पास सामान्य प्रेम भावना नहीं होती |

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