में बीच -बचाव का काम ये करते थे | अब नया काम यह आ गया है की अशांति -असंतोष कैसे बनी रहे | अयोध्या पर इतना गलत फैसला आया और कहीं कुछ हुआ नहीं , यह चिंता की बात है |कितना तो उदास है मौसम ! कुछ शोर -शराबा होता , कुछ खून बहता , कुछ लाशें गिरतीं तो मौसम खुशनुमा होता | वह भी " शांति के नाम " पर ,[ जैसे इनके लिए कहा जा सकता है कि ये " क्रांति के नाम " पर क्रांतियाँ करते रहे हैं ] इतना बड़ा जुल्म मुसलमान सह ले , इन्हें कैसे सहन हो सकता है | अतः ये घूम -घूम कर उन्हें उकसा या जागृत कर रहे हैं | मुसलमान तो उकस नहीं रहा है अलबत्ता हिन्दू उकस
सकता है | चलिए कुछ तो रंगीनी आयेगी मौसम में | वर्ना यदि ऐसे ही शांति बनी रही तो इनकी मोमबत्तियों , पोस्टरों ,
जुलूसों का क्या होगा !
इनका एकमात्र मुद्दा है कि वह बाबरी मस्जिद थी और वहाँ मस्जिद ही बननी चाहिए | इनका यह उद्देश्य कतई नहीं है
कि कैसे कोई सुलह , कोई समझौता करा कर मामले को समाप्त किया जाये | या एक इसी समस्या में सदियों तक देश
उलझा रहेगा ? यहाँ का न्यायालय यदि कोई सकारात्मक सन्देश [ सन्देश ही है यह , निर्णय नहीं है]देता है तो उस शुभ काम को आगे बढ़ाते जो कि इनसे हो सकता था ,क्योंकि इन्हें मुस्लिमों का विश्वास प्राप्त था | इन्हें यह पसंद नहीं | इन चूतियों [यह भाषा अब साहित्य में मान्य होने लगी है , तथापि इसे 'मूर्ख' के रूप में पढ़ें ] को यह नहीं पता कि यदि फैसला मस्जिद के पक्ष में ही हो जाये तो कौन माई का लाल होगा जो
उसे अमल में लाएगा ? लेकिन नहीं , ये अपनी हांके जा रहे हैं | अपनी हाजिरी लगाए हुए हैं जिससे इतिहास इन्हें याद रखे और कभी मुआफ न करे |
लेकिन मूल प्रश्न यह है कि क्या सेकुलरों की सचमुच यह ज़िम्मेदारी हो गयी है कि शान्ति कैसे स्थापित न हो पाए ?
१ - आज का अयोध्या निर्णय भले पूरा न्यायायिक न हो, कुछ पोइटिक पोलिटिकल हो, पर इससे अच्छा निर्णय और कुछ हो नहीं सकता. किसी भी विवाद में सब को सब तो नहीं मिल सकता, सबको कुछ छोड़ना पड़ सकता है. इसी में देश की भलाई है . वर्ना करते रहिये विवाद , १५२८ में मस्जिद कहाँ बनी, क्यों बनी, कैसे बनी. मूर्तियाँ वहां कैसे बैठीं , ताला क्यों खोला गया , गुम्बद क्यों तोड़े गए , राम कौन थे, आस्था क्या चीज है इत्यादि ?
क्या कभी देश को सुकून नहीं दिया जायेगा ? क्या यह भूल जाएँ की यह इंडिया है , और इससे बंट कर पाकिस्तान बन चुका है - जो इस्लामी देश है |
हमें गर्व है, की भारत हिन्दू नहीं सेकुलर देश है . लेकिन इसका नाजायज़ फायदा मुसलमानों को हर बात पर उठाने का दंभ नहीं भरना चाहिए .. वर्ना उन्हें आखिरकार नुकसान उठाना पड़ सकता है | इस विवाद में कोई नहीं जीता कोई नहीं हारा , लेकिन थोड़ी सी हार को महापराजय मानने की मानसिकता देश को चैन नहीं लेने देगी . इसे हिन्दुओं को स्वीकार करना चाहिए, भले उन्हें उनका वांछित पूरा नहीं मिला . इसे मुसलमानों को भी स्वीकार करना चाहिए , क्योंकि उनका सारा नहीं छीना गया . प्रसन्नता का विषय है की इस हल पर न्यायालय की मुहर अंकित हुई है |
[नागरिक ३०/९ / २०१०]
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THE END
[नागरिक ३०/९ / २०१०]
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